कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा मीडिया में चर्चा का विषय बन चुकी है। कांग्रेस ने घोषणा की है कि यह पदयात्रा होगी जो 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू होकर 150 दिनों में कश्मीर पहुंचेगी। पदयात्रा के दौरान 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए करीब 3500 किलोमीटर का रास्ता तय किया जाएगा। यात्रा के प्रचार-प्रसार और सफलता के लिए, जाहिर है, कांग्रेस ने सभी उपाय किए हैं, और आगे करेगी। उनमें एक उपाय नागरिक संगठनों सहित विशिष्ट नागरिक समाज सदस्यों, बुद्धिजीवियों, लेखकों आदि को यात्रा में शामिल करने का है। इस सिलसिले में 22 अगस्त को दिल्ली में बुलाई गई एक बैठक में 150 नागरिक संगठन शामिल हुए। बैठक में शामिल कुछ नागरिक समाज सदस्यों/ऐक्टिविस्टों के नाम भी मीडिया में आए। जो नागरिक समाज सदस्य/एक्टिविस्ट वहां नहीं बुलाए गए, या नहीं पहुंच पाए, या पहुंचे लेकिन मीडिया में उनका नाम नहीं आया – ऐसे लोगों की बेचैनी अपनी पहचान को लेकर बढ़ गई बताते हैं। यात्रा में शामिल होने के इच्छुक ऐसे लोग चर्चा में आने के रास्ते तलाश रहे हैं। यह भी बताया गया है कि दरअसल कुछ नागरिक समाज सदस्यों की पहल और सलाह पर ही कांग्रेस ने यह बैठक बुलाई थी, जिसमें राहुल गांधी ने कुछ देर उपस्थित रह कर लोगों के साथ चर्चा की।
भारत जोड़ो यात्रा के नागरिक समाज के सदस्यों से जुड़े पहलू पर विचार करने की जरूरत है। शुरू में ही इसका एक संदेश यह जाता है कि कांग्रेस की अपने संगठन के बल पर यात्रा को प्रभावी बनाने की तैयारी नहीं है। अगर वह समझती है कि नागरिक समाज के सदस्य यात्रा के दौरान माहौल बनाने के काम आएंगे, तो ऐसा होता नहीं दिखता। क्योंकि इनमें ज्यादातर लोग वे हैं जिन्होंने ‘भ्रष्टाचार विरोध के घाट’ पर कांग्रेस के खिलाफ तिलक लिया था; जिन्होंने आम आदमी पार्टी बनने पर कांग्रेस की राजनैतिक परिदृश्य से हमेशा के लिए विदाई की घोषणाएं की थीं; और एक महोदय ने तो सीधे कांग्रेस की मौत की मूठ चलाई थी। कांग्रेस विचारधारात्मक और संगठानिक स्तर पर खुद अपने पतन की तमाशाई है। लेकिन कांग्रेस के अस्तित्व-संकट में उसके खात्मे की मनोकामना करने वाले और श्राप देने वाले लोगों की भूमिका दूसरे नंबर पर आती है। इस मामले में मोदी के ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ अभियान का तीसरा स्थान माना जाएगा। आसानी से समझा जा सकता है कि ऐसे लोग कांग्रेस के पक्ष में कैसा और क्या माहौल बनाएंगे। अगर कांग्रेस समझती है कि ज्यादा से ज्यादा मोदी-विरोधी नागरिक समाज सदस्यों को इकट्ठा कर लेने से कांग्रेस की ताकत और यात्रा का प्रभाव बढ़ जाएंगे, तो वह भी संभव होता नहीं दिखता। संभावना उलटे यही है कि, जैसा कि अब तक होता रहा है, इससे मोदी को और खाद-पानी मुहैया होगा।
अभी तक कांग्रेस ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि भारत जोड़ो यात्रा का ‘भारत’ नया अर्थात निगम-भारत है, या संविधान-सम्मत वास्तविक भारत – जो निगम-भारत के निर्माण में दिन-रात मरता-खपता और उसके हाशियों पर जीवन बसर करता है? कहने की जरूरत नहीं कि यह निगम-भारत को जोड़ने की यात्रा है। यह भी कहने की जरूरत नहीं कि निगम-भारत पहले से ही लोहा-लाट मजबूती के साथ आपस में एकजुट है। उसके निर्माता और संरक्षकों ने उसे किसी भी आक्रमण के खिलाफ अभेद्य बनाया हुआ है। 13 सालों से सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस निगम-भारत को अपने पक्ष में एकजुट करना चाहती है। एक राजनीतिक पार्टी के रूप में उसकी यह आकांक्षा और प्रयास स्वाभाविक हैं। इस नाते और भी ज्यादा कि वह नब्बे के दशक में निगम-भारत की बुनियाद डालने वाली पार्टी है।
यात्रा में शामिल होने के इच्छुक नागरिक समाज सदस्यों ने भी 22 अगस्त की बैठक में निगम-भारत और वास्तविक भारत का सवाल नहीं उठाया। नागरिक समाज के सदस्य निगम-भारत के नागरिक समाज के सदस्य हैं। विश्व समाज मंच (वर्ल्ड सोशल फोरम) से लेकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन/आम आदमी पार्टी तक वे बार-बार खुद ही यह सिद्ध कर चुके हैं। आज वे फिर से कांग्रेस के साथ एकजुट हो रहे हैं। कल कांग्रेस को पीछे धकेल कर आरएसएस/भाजपा के साथ सत्ता की लड़ाई में अरविंद केजरीवाल आगे आने की कोशिश करेगा, तो वे उसके साथ एकजुट होंगे। कोई क्षेत्रीय क्षत्रप अपनी राजनीतिक सत्ता सुरक्षित करने की नीयत से आरएसएस/भाजपा का रणनीतिक विरोध करेगा तो वे उसके साथ एकजुट होंगे। इस तरह निगम-भारत के लिए ऐसे लोगों की सेवाएं हमेशा उपलब्ध रहेंगी। ये सभी प्रछन्न नवउदारवादी होते हैं; और वर्तमान सांप्रदायिक फासीवाद नवउदारवाद का उपोत्पाद (बाइ-प्रोडक्ट) है। दरअसल, इन लोगों ने अहद किया हुआ है कि देश के लोगों को देश के राजनीतिक यथार्थ से सीधे सामना नहीं करने देना है। इसीलिए वास्तविक भारत पर उनकी दावेदारी में कभी दम नहीं रहा। जब किसी देश/समाज के नागरिक समाज की भ्रामक भूमिका के चलते राजनीति से विचारधारा और प्रतिबद्धता का दान-पानी उठ जाता है, तो वहां नित्य-प्रति इसी तरह के विद्रूप प्रस्तुत होते हैं!
कांग्रेस ने यात्रा का आयोजन किया है, यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है। निगम-भारत में भी लोकतंत्र का कोई न कोई रूप बने रहना जरूरी है। यह राजनीति के लिए भी अच्छा है। नवउदारवादी कारपोरेट राजनीति ने अपने पहले चरण में अराजनीतिकरण की प्रवृत्ति को तेज किया था। सन 2010 के आस-पास से शुरू होने वाले दूसरे चरण में उसने कुराजनीतिकरण की प्रवृत्ति को जन्म देना शुरू किया, जिसे जल्दी ही नरेंद्र मोदी और उनके लघु रूप अरविंद केजरीवाल ने परवान चढ़ा दिया। राजनीतिक पार्टियों की भारत या प्रदेश- विशेष में पदयात्राएं होंगी, तो नागरिकों के सही यानि संविधान-सम्मत राजनीतिकरण की संभावनाएं हमेशा बनी रहेंगी।
हालांकि, कांग्रेस की इस यात्रा को निगम-भारत के अर्थ में भी भारत-यात्रा कहना मुश्किल है। 28 में से केवल 12 राज्य और 8 में से केवल 2 केंद्र-शासित प्रदेश यात्रा के रास्ते में पड़ेंगे। भारत-यात्रा के इस पहलू की तरफ ध्यान दिलाने पर एक कांग्रेस नेता ने कहा है कि दक्षिण से उत्तर की यात्रा के बाद पूर्व से पश्चिम की यात्रा का आयोजन किया जा सकता है। अगर कांग्रेस प्राथमिक रूप से अपने जमीनी कार्यकर्ताओं के बूते पर पूरे भारत की पदयात्रा का आयोजन करती है, और लोगों के साथ सीधे संवाद बनाने का काम करती है, तो उसे निश्चित ही नए जमीनी कार्यकर्ता और सहानुभूति रखने वाले (सिंपथाईजर) मिलेंगे। इससे कांग्रेस के तेजी से हो रहे क्षरण पर कुछ रोक लग सकती है। संकटग्रस्त कांग्रेस के लिए यह उपलब्धि सीधे राजनीतिक फायदे से बड़ी होगी।
यात्रा के दौरान उठाए जाने वाले मुद्दों -डर, कट्टरता और पक्षपात की राजनीति, आजीविका नष्ट करने वाली अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, बढ़ती असमानता – में कुछ भी नया नहीं है। ये मुद्दे कांग्रेस और कुछ अन्य भाजपा-विरोधी पार्टियों के वक्तव्यों और प्रेसवार्ताओं में, धर्मनिरपेक्ष खेमे के सोशल मीडिया पर, कुछ लघु पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर बने रहते हैं। बिना किसी सुझाव अथवा प्रस्ताव के यात्रा में शामिल होने वाले नागरिक समाज के सदस्य कह सकते हैं कि यात्रा के जरिए इन मुद्दों का ज्यादा सी ज्यादा लोगों तक पहुंचना बड़ी उपलब्धि होगी। लेकिन ऐसा कहना जनता में और ज्यादा भ्रम की सृष्टि करना होगा। 150 दिन बीतते देर नहीं लगेगी। भारत जोड़ो यात्रा के बावजूद निगम-भारत कारपोरेट-कम्यूनल गठजोड़ से नियंत्रित और संचालित होता रहेगा।
राहुल गांधी ने कहा है कि यह पदयात्रा उनके लिए तपस्या है और वे लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। तपस्या एक अर्थ-गर्भित शब्द है। राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति के लिए अपनी पार्टी के पक्ष में जनता को लामबंद करने की कवायद का महत्व बताने के लिए अन्य कई शब्द हो सकते हैं। इस कवायद के लिए तपस्या शब्द का प्रयोग करने से उसका अर्थ-संकोच होता है। यह शब्द अपने अर्थ के कुछ करीब पहुंच सकता है अगर भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस की तरफ से लिखित पर्चे बांटे जाएं – कांग्रेस की केंद्र की सत्ता में वापसी होने पर पिछले 30 सालों में नवाउदारवादी नीतियों के तहत शिक्षा, श्रम, कृषि, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों व अन्य राष्ट्रीय परिसंपत्तियों को लेकर जितने कानून बनाए गए हैं, वे निरस्त किए जाएंगे; सभी नीतियां और कानून देश के संविधान में उल्लिखित ‘राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों’ की रोशनी में बनाए जाएंगे; कानूनन किसी भी राजनीतिक पार्टी/नेता को धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी; और नवउदारवादी दौर में क्षतिग्रस्त संस्थाओं का प्रभावी ढंग से पुनर्निर्माण किया जाएगा ताकि एक भी नागरिक की संविधान-प्रदत्त स्वतंत्रता और अधिकार का हनन न हो सके।
ऐसा होने पर लंबे प्रयासों के बाद बेरोजगारी और आर्थिक असमानता से निजात पाई जा सकेगी। साथ ही आरएसएस/भाजपा का ठोस प्रति-आख्यान (काउन्टर नेरटिव) निर्मित किया जा सकेगा। तब अलग से नागरिक संगठनों को न्यौता देने की जरूरत नहीं होगी। जो सच्चाई में संविधान-सम्मत समाजवादी, लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष भारत की बहाली चाहते हैं, वे अपने आप यात्रा में शामिल होंगे।
(समाजवादी आंदोलन से जुड़े लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और भारतीय उच्च संस्थान, शिमला के पूर्व फ़ेलो हैं)