देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु ने बौद्ध भिक्षुओं के व्यवहार के लिए निर्धारित पांच प्रमुख तत्वों – दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने, परस्पर अनाक्रमण करने, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, समान और लाभकारी सम्बन्ध बनाए रखने के साथ ही शांतिपूर्ण सहस्तित्व बनाए रखने की भावना के साथ वैश्विक स्तर पर भारत का वजूद बनाए रखने की भावना से एक सिद्धांत की स्थापना की थी। पंचशील के सिद्धांत के नाम से मशहूर इस सिद्धांत का पालन इस बारे में 31 दिसंबर 1953 और 29 अप्रैल 1954 को बैठकें हुई दो बैठकों के बाद अंततः पहली बार भारत-तिब्बत संबंधों के सन्दर्भ में चीन के साथ किये एक समझौते के तहत किया गया था बाद में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सन्दर्भ में भी इस सिद्धांत का कई दशक तक पालन किया जाता रहा है।
इस सिद्धांत का मकसद यही है कि समाज में सबको जीने का अधिकार है इसलिए अभी की आजादी का ख्याल रखते हुए अपना वजूद बनाए रखने के प्रयास किये जाएं। अपने वजूद की रक्षा करते हुए दूसरे का वजूद नष्ट करने की कोशिश किसी भी हालत में नहीं की जानी चाहिए। पड़ोसी देशों के साथ मित्रवत सम्बन्ध बनाए रखने के साथ ही पंचशील के इस सिद्धांत का बाढ़, सूखा, अनावृष्टि, अतिवृष्टि और समुद्री तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदा के साथ ही महामारी के दौर में भी अवश्य पालन करना चाहिए।
विगत छः महीने से जारी कोरोना महामारी से निपटने की जद्दोजहद में दुनिया के कई देशों ने ‘नारी शक्ति’ के नेतृत्व के चलते कोरोना को मात देने में जिस दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया है उससे कोरोना वायरस नाम का यह अदृश्य शत्रु हारता और अपना पिंड छुडा कर भागता हुआ नजर आने लगा है। ये देश आकार, विस्तार और आबादी के घनत्व के हिसाब से चाहे बहुत छोटे ही क्यों न हों पर कोरोना के खिलाफ अपने संघर्ष में इन देशों ने पंचशील के सिद्धांत जैसी ही सफल मिसाल कायम की है।
दुनिया के ये छोटे देश हैं फिनलैंड, आइसलैंड और डेनमार्क। ख़ास बात यह है कि इन तीनों छोटे देशों की कमान महिलाओं के हाथों में है और वो कठिन दौर में बहुत बेहतरीन तरीके से सत्ता का संचालन कर रही हैं। इन तीन छोटे देशों के साथ ही एक छोटा सा देश न्यूजीलैंड भी है जिसकी प्रधानमंत्री भी एक महिला ही हैं। इसके अलावा ताइवान और जर्मनी जैसे देशों के महिला नेतृत्व ने भी कोरोना के दौर में देश को नई दिशा दी है। फिनलैंड की प्रधानमंत्री साना मैरिन ने देशवासियों को इस बात के लिए तैयार किया कि ‘लॉकडाउन’ भले लंबा खींच जाए पर वे धैर्य और विवेक के साथ रहें। आज वहां स्थिति तकरीबन नियंत्रण में है।
आइसलैंड ने भी कैटरीन जोकोबस्दोतियर के नेतृत्व में कोरोना के खिलाफ बड़ी सफलता हासिल की है। कैटरीन ने इस बात को समझा कि बीमारी से बचना तो जरूरी है ही, इस दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति भी नहीं बिगड़नी चाहिए। उन्होंने आकर्षक आर्थिक पैकेज की घोषणा की। कारोबार करने वालों को कर्ज बांटे और जिनके आगे वेतन की तंगी से जूझने की नौबत थी उन्हें अगले ढाई महीने का वेतन एक साथ दिया गया।
कोरोना से सफलतापूर्वक लड़ने के लिए सबसे ज्यादा चर्चा में हैं न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डन जिन्होंने अभी कुछ दिन पहले ही अपने देश के कोरोना मुक्त होने का एलान किया था। दुनियाभर में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए न्यूजीलैंड के किए गए काम की तारीफ हो रही है।वहीं न्यूजीलैंड के लिए इस वैश्विक महामारी के खिलाफ जंग आसान नहीं रही। कड़े फैसलों और सरकार की दूरदर्शी सोच ने न्यूजीलैंड को इस महामारी से उबारा है। इसी तरह कोरोना का सामना सूझबूझ के साथ करने वाले देशों में ताइवान भी एक देश है। इस देश की महिला राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने 31 दिसंबर, 2019 को ही चीन के वूहान से लौटे हर नागरिक की जांच के आदेश दे दिए थे।
राष्ट्रपति द्वारा समय पर लिए गए फैसलों के चलते ताइवान कोरोना की मार से बच गया। वहीं जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल के मार्च में दिए गए एक बयान से जर्मनी कोरोना महामारी की बर्बादी से बाल -बाल बच गया क्योंकि उन्होंने यह कहा था कि जर्मनी की 70 फ़ीसदी आबादी यानी क़रीब छह करोड़ लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं। उनके इस बयान के साथ ही सरकार ने बचाव की पुख्ता तैयारियां शुरू कर दी थीं इसके परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं।
एंजेला मर्केल का ऐसा कहना और लोगों का ऐसा सोचना गलत नहीं था। 1989 से पहले तक एक रिसर्च साइंटिस्ट रह चुकी जर्मनी की संवैधानिक मुखिया को कई महीने पहले ही इस खतरे का आभाष हो चुका था और उन्होंने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए कोरोना की रोकथान के उपाय भी शुरू कर दिए थे। इसी कड़ी में बेल्जियम की प्रधानमंत्री सोफी विल्मेस, डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटी फ्रेडरिक्सन और फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सेना मारिन के नाम भी चर्चा में हैं। इन सभी महिला प्रशासकों ने कोरोना से लड़ाई जीतने में एक नया मुकाम हासिल किया है।
बेल्जियम में मौत का आंकड़ा 10 पर ही पहुंचा था कि सोफी ने बिना और वक्त गंवाए ‘लॉकडाउन’ का एलान कर दिया। उसके बाद मौत की दर 50 फीसद तक घट गई और विसंक्रमित होने की दर करीब 67 फीसद तक पहुंच गई। डेनमार्क पहला ऐसा देश रहा जिसने निजी कंपनी के कर्मचारियों को वेतन का कम से कम 75 फीसद देने की बात सुनिश्चित की। उधर 55 लाख की आबादी वाले देश फिनलैंड में सिर्फ 64 मौते हुई हैं और अधिकतम 3300 लोग संक्रमित हुए हैं।