ईंधन के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले तमाम उत्पादों में डीजल ही एकमात्र ऐसा उत्पाद है जिसका देश के हर तरह के आम और गरीब नागरिक से बहुत करीब का रिश्ता होता है। डीजल काम तो अमीरों के भे बहुत आता है लेकिन समाज का यह तबका डीजल के बगैर भी अपना काम दूसरे विकल्पों से निकाल सकता है लेकिन गरीब के लिए डीजल रोजमर्रा की जिन्दगी का एक अहम और अनिवार्य हिस्सा बन चुका है।
खेत-खलिहान में काम आने वाले ट्रैक्टर, सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाले जेनरेटर, लम्बी दूरी तक माल ढुलाई के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले ट्रक और यात्री बसों से लेकर रेल और माल गाड़ियों तक ज्यादातर सार्वजनिक वाहनों में डीजल का ही इस्तेमाल होता है इसलिए डीजल आम आदमी के जीवन को बहुत करीब से और बहुत जल्दी प्रभावित करता है। डीजल के दाम आम उपभोक्ता पदार्थों की कीमतों को तुरंत प्रभाव से प्रभावित करते हैं।
आम उपभोक्ता पर पड़ने वाले इस प्रभाव की मार राजनीतिक रूप से भी बहुत भारी पड़ती है। बात हिंदुस्तान की ही नहीं दुनिया के हर मुल्क की है और दुनिया के भारत जैसे जिन देशों में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव के माध्यम से सरकार बनाने और गिराने की व्यवस्था वजूद में है, वहां तो पेट्रोलियम पदार्थों की आसमान छूती कीमतें राजनीति को बहुत गहरे से प्रभावित करती भी हैं। अतीत में कई बार ऐसा हो भी चुका है जब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हुई वृद्धि ने विपक्षी दलों के नेताओं को सरकार का विरोध करने के नए- नए तरीके भी उपलब्ध करा दिए थे।
ऐसा एक किस्सा 11-12 नवम्बर 1973 के आसपास का भी है जब तत्कालीन प्रधान मंत्री को पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में आश्चर्यजनक वृद्धि के साथ इसलिए भी विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा था क्योंकि तब इंदिरा गांधी ने पेट्रोलियम संरक्षण के एक प्रतीक के रूप में अपनी सरकारी कार के स्थान पर घोड़े की बग्घी से संसद भवन आयीं थीं।
इसी दिन से संसद के 6 सप्ताह तक चलने वाले शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई थी और विपक्ष को भी संसद भवन परिसर में इंदिरा गांधी के इस कदम का विरोध करने का एक मौका भी मिल गया था। उस समय पेट्रोल एवं डीजल के बढ़ते दामों को देख कर विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग की थी। कई नेताओं ने इसका अलग अलग तरीके से विरोध किया था। अटल बिहारी वाजपेई और अन्य दो विपक्षी सांसद बैलगाड़ी से संसद पहुंचे थे तो कई दूसरे नेता साइकिल से संसद भवन पहुंचे थे। अटल बिहारी और कई नेता इंदिरा गांधी के बग्गी में यात्रा करने का विरोध कर रहे थे।
भारत में तब यह तेल संकट मध्य पूर्व देशों द्वारा भारत को कच्चे तेल के निर्यात में भारी कटौती कर देने के कारण उत्पन्न हुआ था। इसके चलते इंदिरा की सरकार को तेल में 80 फ़ीसदी तक की वृद्धि करने का फैसला इसलिए भी लेना पड़ा था ताकि लोग पेट्रोलियम पदार्थों की खरीद कम कर दें। पेट्रोलियम पदार्थों की इसी मूल्य वृद्धि के बहाने ही देश के विपक्षी द्लों ने तब तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को राजनीतिक कटघरे में खड़ा कर दिया था।
लगभग पांच दशक बाद पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का मामला इस बार एक बार फिर बड़ी तेजी से उफान पर है लेकिन विपक्ष मौन है। ये वही विपक्ष है तो 1973 के उस दौर में सत्तासीन था और उस समय का मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनसंघ अपने परिवर्तित भारतीय जनता पार्टी के रूप में आज केंद्र और देश के आधे से अधिक राज्यों में सत्तासीन है। हैरानी की बात तो यह है कि बुधवार 24 जून तक लगातार पेट्रोलियम के दामों में हुई वृद्धि का न सत्तापक्ष पर कोई असर पड़ा है न विपक्ष पर। कहीं कोई हलचल ही नहीं है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का आलाम यह कि देश के ज्यादातर राज्यों में पेट्रोल और डीजल के दाम एक बराबर हो गए।
देश की राजधानी दिल्ली में तो डीजल के दामों में एक तरह की आग सी लग गई है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश और हरियाणा के गाजियाबाद, नोएडा, बागपत, सोनीपत, बहदुरगढ़, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों के मुकाबले दिल्ली में डीजल 8 रुपये महंगा हो गया।
यह सब गड़बड़ घोटाला हुआ इसलिए क्योंकि बुधवार 24 जून तक लगातार 18वें दिन डीजल की कीमत में बढ़ोतरी हुई और बुधवार को डीजल की कीमतों में हुई 48 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि के साथ ही देश में पहली बार डीजल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा हो गई। दरअसल हुआ ये कि पिछले 18 दिनों में पेट्रोल के दाम में जहां 8.50 रुपये की बढ़ोतरी हुई वहीं डीजल की कीमत में 10.49 रुपये प्रति लीटर का इजाफा हुआ। इस तरह रेट के मामले में डीजल ने पेट्रोल को इतिहास में पहली बार पीछे धकेल दिया।
इसकी दूसरी वजह ये है कि मई के पहले हफ्ते में भारत सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर भारी एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई। पेट्रोल पर प्रति लीटर उत्पाद शुल्क 10 रुपये बढ़ाया गया, जबकि डीजल पर प्रति लीटर उत्पाद शुल्क 13 रुपये बढ़ाया गया। यहां भी डीजल के महंगा होने की राह तैयार की गई।इसके बावजूद ये सवाल उठाना स्वाभाविक है कि डीजल के दाम केवल दिल्ली में ही पेट्रोल से ज्यादा कैसे हो गए अन्य राज्यों में क्यों नहीं तो इस सवाल का सीधा सादा जवाब यही है कि दिल्ली के समझदार मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी स्थानीय सरकार ने कोरोना और दूसरे बहानों से पेट्रोलियम पदार्थों पर स्थानीय टैक्स की मार पहले से ही इतनी तेज कर रखी है किडीजल के दाम तो बढ़ने ही थे।
उधर केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने का एक अच्छा तर्क यह खोज लिया है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में हुई वृद्धि के चलते ये मूल्य वृद्धि करनी जरूरी हो गई थी। केंद्र सरकार के इस तर्क को अगर मान भी लें तो उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि जब कोरोना प्रकोप के चलते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें नीचे गिर गईं थीं तब हमारे यहाँ तेल की कीमतें कम क्यों नहीं हुईं? दिल्ली में डीजल पेट्रोल से महंगा इसलिए भी हुआ क्योंकि दिल्ली सरकार ने पिछले महीने ही पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाए थे। पेट्रोल की कीमत में 1.67 रुपये प्रति लीटर और डीजल 7.10 रुपये प्रति लीटर की दर से वृद्धि की गई थी।
गौरतलब है कि देश में कोरोना के प्रकोप को देखते हुए लगभग ढ़ाई महीने तक लॉकडाउन लागू रहा। इस कारण सरकार का खजाना खाली हो गया था। इसके बाद सरकार के पास पेट्रोल-डीजल एकमात्र ही ऐसा सोर्स था, जहां से वो अच्छा राजस्व प्राप्त कर सकती थी। जीएसटी और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में तो कोरोना लॉकडाउन की वजह से भारी गिरावट आई है। अप्रैल में सेंट्रल जीएसटी कलेक्शन महज 6,000 करोड़ रुपये का हुआ, जबकि एक साल पहले इस अवधि में सीजीएसटी कलेक्शन 47,000 करोड़ रुपये का हुआ था। इस कारण सरकार को लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने पड़े।
सरकार लम्बे समय से पेट्रोल और डीजल की कीमत के अंतर को कम करना चाह रही थी। इसके पीछे का कारण यह है कि पेट्रोल और डीजल की लागत एक समान होती है। डीजल पहले इसलिए सस्ता था, क्योंकि इस पर सरकार सब्सिडी देती थी। डीजल पर सब्सिडी देने के पीछे सरकार की कल्याणकारी सोच थी। दरअसल, 2014 से पहले यूपीए सरकार में डीजल पर सब्सिडी को बोझ काफी ज्यादा हो गया था। इसी कारण पिछले लंबे वक्त से पेट्रोल और डीजल की कीमत को एक समान करने की बात हो रही थी। पिछले कुछ वक्त में मोदी सरकार ने पेट्रोल से ज्यादा डीजल पर टैक्स लगाया है। डीजल की कीमत बढ़ने से आम आदमी पर चौतरफा मार पड़ेगी।