ग्रहण का सूतक: पूर्णमासी की रात को चन्द्र ग्रहण और अमावास्या को दिन में सूर्य ग्रहण

खगोलीय सन्दर्भ में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण जैसी दोनों घटनाओं के लिए सूर्य और चन्द्रमा परस्पर जिम्मेदार हैं। जब सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तब चन्द्रमा पृथ्वी से दिखाई नहीं देता तब चन्द्र ग्रहण का संयोग बनाता है। इसके विपरीत जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती है।

सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण दो ऐसी खगोलीय घटनाएं हैं जब इन दोनों का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता। सूर्य ग्रहण होने पर सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंचता और चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्रमा का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंचा। ऐसा हमेशा नहीं होता, कभी- कभी ही होता है और ऐसे संयोग भी कई दशक में एक बार आते हैं। इस संयोग के भी खगोलीय और वैज्ञानिक कारण हैं। इसी देश भारत के वाराहमिहिर और आर्यभट्ट जैसे महान खगोलशास्त्रियों ने अपनी वैज्ञानिक गड़ना के आधार पर यह खोज भी की कि अन्तरिक्ष में ऐसे संयोग क्यों और कैसे बनते हैं। यही नहीं, भारतीय खगोलशास्त्रियों ने तो यह भी पता लगा लिया कि भविष्य में कब सूर्य ग्रहण होगा और कब चन्द्र ग्रहण। इस आधार पर हमारे यहां पंचांग के माध्यम से कई बरस पहले सूर्य और चन्द्र ग्रहण की तिथियों तक की घोषणा कर दी जाती है। 

भारत की इस वैज्ञानिक खोज को आर्य भट्ट और वाराहमिहिर के बाद पूरी दुनिया में  मान्यता मिल गई है। यह एक विडंबना ही कही जायेगी कि एक तरफ भारत का ऐसा उन्नत प्रगतिशील और युग से आगे चलने वाला वैज्ञानिक चिंतन है जो अपने गणितीय आकलन से ग्रहों की गति और इस गति के चलते होने वाली तमाम खगोलीय गतिविधियों की एकदम सही जानकारी देने के लिए विख्यात है और दूसरी तरफ हमारे ही देश के कुछ लोगों के मानसिक पिछड़ेपन की यह मान्यता भी है कि ग्रहण के दौरान सूतक होता है और इस अवधि में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इस सप्ताह के पहले ही दिन सोमवार 21 जून को दोपहर के समय एक ऐसे ही खगोलीय संयोग से सूर्य ग्रहण की घटना हुई थी।

खगोलीय सन्दर्भ में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण जैसी दोनों घटनाओं के लिए सूर्य और चन्द्रमा दोनों ही एक दूसरे के लिए परस्पर जिम्मेदार हैं, इसे इस तरह भी समझ जा सकता है कि जब सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तब चन्द्रमा पृथ्वी से दिखाई नहीं देता इस तरह यह चन्द्र ग्रहण का संयोग बनाता है। इसके विपरीत जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता सूर्य ग्रहण की स्थिति बनती है। भारतीय पंचांग के अनुसार चन्द्र ग्रहण पूर्णमासी के दिन और सूर्य ग्रहण अमावास्या के दिन ही होता है। चन्द्र का सम्बन्ध रात से है इसलिए चन्द्र ग्रहण पूर्णमासी की रात को और सूर्य ग्रहण अमावास्या को दिन के समय ही होता है। 

भारतीय पंचांग में हर माह में एक -एक पखवाड़े के अंतराल में दो पक्षों का प्रावधान है। एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावास्या को होता है और शुक्ल पक्ष का दिन पूर्णमासी को होता है खगोल शास्त्र की मान्यता के अनुसार अन्तरिक्ष में ग्रहों की गतिविधियों का क्रम कुछ इस प्रकार चलता है कि सौर मंडल में पृथ्वी 224 घंटे में एक बार अपनी धुरी पर घूमते हुए सूर्य का चक्कर लगाती है। पृथ्वी के अपनी धुरी में घूमते हुए दिन और रात होते हैं और पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में पूरा एक साल लग जाता है और इसी से मौसम परिवर्तन होता है। इस बीच में चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर लगाता रहता है। इन हालात में वर्षों में एक बार कभी ऐसा भी होता है कि सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा के बीच में आ जाता है तो कभी चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। 

ये परिस्थितियां ही चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण कहलातीं हैं। सूर्य ग्रहण की स्थिति में दोपहर के समय पृथ्वी के उसी हिस्से में सूर्य का प्रकाश नहीं पड़ता जो हिस्सा चन्द्रमा की छाया से ढका होता है पृथ्वी के जिस हिस्से पर चंद्रमा की छाया पड़ती है,वहां सूरज की रोशनी पूरी या आंशिक तौर पर  नहीं आ पाती। इस दौरान सूरज, चांद और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण में सूरज पूरी तरह से चंद्रमा के पीछे छिप जाता है वहीं आंशिक और ऐनुलर (छल्लेदार अंगूठी की तरह) ग्रहण में सूर्य का एक भाग छिपता है।

सोमवार 21 जून 2020 का सूर्यग्रहण कई मामलों में अनूठा कहा जा सकता है। आर्यभट्ट प्रेक्षण एवं शोध संस्थान (एरीज) की गड़ना के मुताबिक यह ग्रहण भी वलय (रिंग) रूप में उत्तर भारत में सिर्फ 21 किमी चौड़ी एक पट्टी में ही नजर आया था। अन्यत्र यह आंशिक ग्रहण की तरह ही दिखाई दिया था। वलय की अधिकतम अवधि मात्र 38 सेकंड रही थी। इस सदी के बीते 20 वर्षों में भारत से 5 सूर्यग्रहण 2005, 2006, 2009, 2010 और 2019 में नजर आए थे उसके बाद यह छठा सूर्य ग्रहण था  इसके बाद भारत से इस शताब्दी में सिर्फ तीन सूर्यग्रहण और दिखाई देंगे वो  भी लंबे अंतराल के बाद। एरीज के मुताबिक भारत से नजर आने वाला अगला सूर्यग्रहण 20 मार्च 2034 को पड़ेगा, जो कि एक पूर्ण सूर्यग्रहण होगा और भारत इस दुर्लभ घटना का गवाह बनेगा। उसके बाद भारत से अगला सूर्यग्रहण 17 फरवरी 2064 को नजर आएगा और इस सदी का भारत से नजर आने वाला अंतिम सूर्यग्रहण 22 जून, 2085 को पड़ेगा। 

आमतौर पर सूर्य ग्रहण के बाद सूतक मुक्त होने के लिए स्नान करने, घर की सफाई कर धूप-अगरबत्ती जला कर घर को स्वच्छ रखने की बात कही जाती है और ग्रहण के दौरान भोजन न करने की बात भी कही जाती है और इसके पीछे धार्मिक कारण बताये जाते हैं जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है हां ! इसके कुछ वैज्ञानिक कारण अवश्य हैं। प्रसंगवश समझने वाली बात यह है जब। जब चंद्रमा के सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाने से सूर्य को ग्रहण की स्थिति बनती है तब वातावरण में विकिरण होता है इसलिए ग्रहण के दौरान भोजन करना नुकशानदायक हो सकता है ।

 

 

First Published on: June 23, 2020 6:07 AM
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