एक की नासमझी और पूरे समुदाय से नफरत

आज की सबसे बड़ी धर्म आज्ञा अथवा फतवा यही है कि हम सरकार व चिकित्सकों के द्वारा नियमों का पालन करें। सरकार के गलत निर्णयों की समय आने पर खूब आलोचना करेंगे।

हम लोगों में से किसी की भी नासमझी व मूर्खता न केवल पूरे समुदाय को नफरत व परहेज का पात्र बना देती है, वहीं पूरे मुद्दे को ही बदल देती है। ऐसा सब कुछ निज़ामुद्दीन दिल्ली में स्थित तब्लीगी मरकज़ के वाकये से हुआ है। इसको यह कह कर दुरुस्त नहीं किया जा सकता कि फलां मंदिर, तीर्थस्थल अथवा स्थान पर भी तो यात्री फंसे है। तब्लीगी मरकज़ के इस घटनाक्रम ने उन सभी लोगों को भी बचाव के दायरे में ला दिया है जो मुस्लिम हितों के पैरोकार थे तथा हर बात के लिये उन्हें ही जिम्मेवार ठहराने के घृणात्मक आरोपों के विरुद्ध उन इल्ज़ामों का विरोध कर स्वयं मुस्लिम परस्त सुनने का काम करते थे। सब काम सरकार के खाते में डालना हमें हमारी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकता। सब को अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। हमें यहां भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की भी उदारता का स्वागत करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा कि आज समय दोषारोपण का नहीं अपितु उसे ठीक करने का है।

मुझे गर्व है कि मेरा जन्म एक राष्ट्रवादी आर्य समाजी- कांग्रेसी परिवार में जन्म हुआ। आल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन जैसे सशक्त देशभक्त संगठन में मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई तथा स्व. निर्मला देशपांडे, अरुणा आसिफ अली, मोहित सेन जैसे प्रगतिशील लोगों का सम्पर्क मिला और अब स्वामी अग्निवेश तथा डॉ. एसएन सुब्बाराव जैसे व्यक्तित्वों के सानिध्य में काम करने का अवसर मिला रहा है। यही कारण है कि साम्प्रदायिकता, जातीयता एवम क्षेत्रीयता जैसे विषैले ज़िषाणु हमें कभी भी संक्रमित नहीं कर पाए है। 

मुझे कार्ल मार्क्स, लेनिन और भगतसिंह जैसे अनीश्वरवादी चिंतकों के न केवल विचार को पढ़ने का अवसर मिला बल्कि मुझे उनके जन्म व कार्यस्थलों पर भी जाने का अवसर मिला। उनके विचारों से सहमत होने के बावजूद भी मैं अपने बाल्यावस्था के आर्य समाजी संस्कारो से मुक्त न हो सका। मेरी पत्नी उदयपुर(राजस्थान) के एक पौराणिक वैष्णव परिवार से है। जब मैं अपने आर्य समाजी स्वभाव को न छोड़ सका अतः अपनी पत्नी के संस्कारों को भी छोड़ने का मैने कभी दुराग्रह नही किया। उनकी आस्था का सम्मान करते हुए मैंने कभी भी उनके साथ किसी देवालय अथवा किसी अन्य धार्मिक स्थान पर जाने की मनाही नहीं की। यह मेरी समझ रही कि मैंने जाने में तो उनका साथ दिया परन्तु वहां भी अपनी आस्था का पालन किया।

शायद इस हमारे पारिवारिक संस्कारो का ही प्रभाव है कि मुझे न केवल इस देश से अपितु इस देश मे रहने वाले हर निवासी से प्यार है। जब भी कोई धर्म अथवा जाति के नाम पर किसी के प्रति घृणा फैलाने का काम करता है तो स्वयं को उस के विरुद्ध खड़ा पाया है। इसीलिए सन 1984 में सिख विरोधी दंगो में खालिस्तान समर्थक देशद्रोही, 1992 मे बाबरी मस्जिद विध्वंस पर रामद्रोही, 2002 में गुजरात जनसंहार के विरोध के कारण पाकिस्तान परस्त व अब धर्म विरोधी राष्ट्रद्रोही सम्मान सूचकों से सम्मानित होता रहा हूं। 

मेरा परिवार नियमित यज्ञ प्रेमी है। ऐसा मेरी व्यक्तिगत आस्था है। जिसे मैं किन्ही भी तर्को-कुतर्को के बावजूद भी नहीं छोड़ पाया हूं। मेरी मूर्ति पूजा में कतई आस्था नहीं है पर मैं अपनी मूर्तिपूजक पत्नी व नास्तिक पुत्र से कभी भी झगड़े पर नही उतरा।

आज के इस संकट के समय में एक ही धर्म है कि हम मानव जाति को कोरोनो की महामारी से हर प्रकार से बचाएं। इसकी कोई अभी तक दवाई ईजाद नहीं हुई है। अनुभवी चिकित्सकों की एक ही सलाह है कि एकांतवास का पालन करें। बहुत प्रसन्नता की बात है कि सभी धर्म संस्थान आज बन्द होकर आस्थावान लोगों को घरों में ही प्रार्थना-पूजा-इबादत की सलाह दे रहे हैं। इसके बावजूद ऐसे भी लोग है जो इसके विपरित चुप-चाप ऐसे कार्य भी कर रहे है जो किसी भी दृष्टि से हितकारी नहीं।

आज की सबसे बड़ी धर्म आज्ञा अथवा फतवा यही है कि हम सरकार व चिकित्सकों के द्वारा नियमों का पालन करें। सरकार के गलत निर्णयों की समय आने पर खूब आलोचना करेंगे। जरूर सवाल पूछेंगे की घण्टे-घड़ियाल, थाली-ताली पिटवाने का क्या परिणाम निकला? अयोध्या में राम लला की मूर्ति स्थापित करवाने में मुख्यमंत्री जी को क्या जल्दी थी अथवा मध्यप्रदेश में सरकार गिरा कर तुरत शपथ ग्रहण में भारी संख्या में भीड़ जुटाने की क्या प्रमुखता थी? कर्नाटक में मुख्यमंत्री जी एक विवाह समारोह में सरकारी निर्देशों की अवलेहना करने क्यों पुहंचे?  

हां! यह भी की नमस्ते ट्रम्प के नाम पर लाखों लोगों को इस बीमारी के संक्रमण के बावजूद क्यों इकठ्ठा किया गया?  बिल्कुल सवाल पूछेंगे की जब 30 जनवरी को केरल में पहले केस का पता चल गया था तो फिर 22 मार्च तक क्यों लापरवाही बरती गई? यह भी मजदूरों की घर वापिसी के लिये क्यों समयानुसार व्यवस्था नहीं की गयी और की भी गयी तो ऐसी ढुलमुल क्यों ?  पर आज नहीं समय आने पर। आज का राष्ट्रधर्म यही है कि हम घरों में रहे, प्रवासी मजदूरों को पलायन करने से रोकें। गरीब व भूखे को रोटी का इंतज़ाम करें। वरना शास्त्र आदेश है कि “बुभिक्षतम किं न करोति पाप पूंसाम”- भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता ?

First Published on: April 1, 2020 9:13 AM
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