
एक्सप्रेसवे उन्हीं देशों से आयात किया हुआ एक एक शब्द हैं जहां से मोटरवाहन उद्योग पूरी दुनिया में फैला। यूरोप अमेरिका में एक्सप्रेसवे ऐसी सड़क को कहते हैं जिस पर प्रवेश और निकास नियंत्रित रहता है। इन सड़कों के आसपास कोई बाजार या बसावट नहीं होती। तेज गति वाहनों के लिए ऐसे एक्सप्रेसवे सुरक्षित रहते हैं जिस पर 100 या 120 की गति से गाड़ियां फर्राटा भर सकती हैं।
भारत में इस तरह का पहला एक्सेस कन्ट्रोल्ड एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण (एनएचएआई) ने वर्तमान प्रयागराज के पास बनाया था। अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत जब नेशनल हाइवे नंबर 2 का जब चौड़ीकरण का काम शुरु हुआ तो तत्कालीन इलाहाबाद बाइपास के रूप में 100 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे बनाया गया था। यह पूरी तरह से एक्सेस कन्ट्रोल्ड हाइवे था जिसे पहली बार आधिकारिक रूप से एक्सप्रेसवे का दर्जा दिया गया।
हालांकि इसके पूर्व मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का निर्माण महाराष्ट्र के तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री नितिन गडकरी ने करवाया था लेकिन वह राष्ट्रीय स्तर पर एक्सप्रेसवे इसलिए नहीं माना गया क्योंकि उसपर प्रवेश और निकास पूरी तरह से नियंत्रित नहीं था। वह एक फोर लेन हाइवे था।
इलाहाबाद एक्स्प्रेसवे के बाद वड़ोदरा अमदाबाद एक्सप्रेसवे बना। इसके बाद नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे, यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे, ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे, हैदराबाद रिंगरोड एक्सप्रेसवे बनाये गये और संचालित हैं। इन सभी सड़कों को यूरोपीय मानक के मुताबिक बनाया गया है जिस पर गाड़िया बेरोक-टोक 100 से 120 की गति से फर्राटा भर सकती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश को छोड़ दें तो बाकी राज्यों में एक्सप्रेसवे का वैसा जुनून दिखाई नहीं देता।
इस समय केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी द्वारा जरूर दो महत्वाकांक्षी एक्सप्रेसवे परियोजनाओं पर कार्य करवाया जा रहा है। इसमें से एक है दिल्ली मुंबई एक्सप्रेसवे और दूसरा है मुंबई नागपुर एक्सप्रेसवे। कहने की जरूरत नहीं है कि स्वयं महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले नितिन गडकरी के लिए ये महत्वाकांक्षी परियोजनाएं हैं जिसे वो हर हाल में 2023 तक पूरा करना चाहते हैं। दोनों ही परियोजनाओं पर बहुत तीव्र गति से कार्य भी चल रहा है।
महाराष्ट्र में औद्योगिक गतिविधियों को देखते हुए कहा भी जा सकता है कि ये महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और हरियाणा के विकास में महत्वपूर्ण मील पत्थर साबित होंगे। लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहां औद्योगिक गतिविधियों से ज्यादा महत्वपूर्ण खेती है, वहां के लिए क्या एक्सप्रेसवे उसी तरह वरदान साबित होंगे जैसे महाराष्ट्र गुजरात में हो सकते हैं?
उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे प्रदेश है। आज भारत में सर्वाधिक 850 किलोमीटर से ज्यादा एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश में ही है। इसमें यमुना एक्सप्रेसवे, आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे, मेरठ एक्सप्रेसवे, प्रयागराज बाइपास एक्सप्रेसवे शामिल हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे और गंगा एक्सप्रेसवे पर भी तेजी से काम कर रही है।
इन सभी एक्सप्रेसवे में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर कार्य पूरा होने की दिशा में है। इन एक्सप्रेसवे को संचालित करने के लिए बनी राज्य सरकार की संस्था यूपीडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी अवनीश अवस्थी का दावा है कि 26 जनवरी 2021 तक पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को संचालित कर दिया जाएगा और 1 अप्रैल से नियमित टोल वसूली शुरु हो जाएगी।
पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था जो लखनऊ से बलिया को जोड़ने के लिए तैयार हुआ था। अखिलेश यादव ने ही आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे को रिकार्ड समय में तैयार करवाया था। उसके बाद उनकी योजना लखनऊ से बलिया तक एक्सप्रेसवे बनाने की थी। लेकिन वो योजना बनाकर ही चले गये। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत हुई और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने।
योगी आदित्यनाथ ने न केवल पूर्वांचल एक्सप्रेसवे को जोर-शोर से शुरु किया बल्कि मायावती के कार्यकाल में घोषित गंगा एक्सप्रेसवे को भी पुनर्जीवित कर दिया। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे से ही बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य भी चल रहा है जो चित्रकूट को सीधे लखनऊ और दिल्ली से जोड़ देगा। योगी आदित्यनाथ का कहना है कि इस एक्सप्रेसवे के बन जाने से न केवल बुन्देलखण्ड इलाके में औद्योगिक गतिविधियां बढेंगी बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्या उत्तर प्रदेश में सचमुच इतने एक्सप्रेसवे की जरूरत है? ये सवाल सुनकर अच्छी सड़कों का महत्व समझने वालों को आश्चर्य होगा लेकिन इस सवाल के महत्व को नहीं नकार सकेंगे। उत्तर प्रदेश एक सघन आबादी वाला राज्य है जहां आज भी मुख्य कारोबार खेती किसानी है। उत्तर प्रदेश एक ऐसा सौभाग्यशाली प्रदेश है जहां गंगा यमुना का विशाल डेल्टा बनता है। खेती की सबसे उपजाऊ जमीन उत्तर प्रदेश और बिहार में ही है जहां साल में तीन फसल तक उपजाई जा सकती है। क्या ऐसे राज्य में हजारों हेक्टेयर खेती योग्य भूमि सिर्फ एक्सप्रेसवे के नाम की जा सकती है?
उत्तर प्रदेश सरकार का आंकड़ा देंखे तो पूर्वांचल एक्सप्रेसवे और बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे के लिए 8,000 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की गयी है। ये 8000 हेक्टेयर जमीन उसी गंगा यमुना डेल्टा का हिस्सा है जहां साल में तीन फसल लेने की संभावना है। इसके अलावा अभी खेती की सबसे उर्वर भूमि पर गंगा एक्सप्रेसवे प्रस्तावित है जो मेरठ हापुड हाइवे से निकलकर प्रयागराज बाईपास तक पहुंचेगा।
600 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे के लिए भी 6,556 हेक्टेयर जमीन की जरूरत होगी जिसका अधिग्रहण अगले साल से शुरु कर दिया जाएगा। इस तरह अगर देखें तो तीन एक्सप्रेसवे के लिए राज्य सरकार करीब 15 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण कर रही है। क्या उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए ये उचित है कि बढती आबादी के बोझ तले दबा राज्य अपनी कीमती खेती की जमीन सड़क निर्माण के लिए इस्तेमाल कर ले?
अगर खेती के आंकड़ों से देखें तो एक हेक्टेयर में न्यूनतम 6 से 7 टन धान पैदा होता है। इस लिहाज से अगर 15 हजार हेक्टेयर जमीन को देखें तो 90 हजार टन से एक लाख टन धान की पैदावार हो सकती है। इसी तरह एक हेक्टेयर में औसत 20 से 30 क्विंटल तिलहन की पैदावार होती है। इस हिसाब से जितनी जमीन उत्तर प्रदेश में तीन एक्सप्रेस वे के लिए अधिगृहित की गयी है उतनी जमीन पर 3 लाख से 4.5 लाख क्विंटल तिलहन पैदा करने की संभावना हमेशा के लिए समाप्त हो गयी है। इन आंकड़ों को देखते हुए उत्तर प्रदेश जैसे उपजाऊ जमीन वाले राज्य के लिए ये एक्सप्रेसवे क्या फायदे का सौदा कहे जा सकते हैं? शायद नहीं।
औद्योगीकरण और बड़ी संख्या में स्थायी निर्माण उपजाऊ जमीन में न लाभकारी है और न ही स्वागतयोग्य। नीति आयोग हो या राज्य की सरकारें, उन्हें ऐसे मेगा प्रोजेक्ट के लिए जिस एक बुनियादी बात का ध्यान रखना होता है वो ये कि ऐसे प्रोजेक्ट से हमारा लाभ क्या होगा, और नुकसान कितना होगा?
महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां अनुपजाऊ जमीन ज्यादा है वहां औद्योगीकरण और एक्सप्रेसवे स्वागतयोग्य हो सकते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे कृषि भूमि वाले राज्य में एक्सप्रेसवे के नाम पर 15 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण प्रसन्न नहीं, बल्कि चिंतित करनेवाला मामला बन जाता है। वह भी तब जब हमें ठीक से ये भी पता न हो कि इन एक्सप्रेसवे का उपयोग कितना होगा?