कांग्रेस सत्ता में आयी तो पुन: जम्मू कश्मीर में धारा 370 लागू कर देगी?

संजय तिवारी
मत-विमत Updated On :

संसद में एक बहस में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के नेताओं को चुनौती देते हुए कहा था कि अगर उन्हें लगता है कि हमने धारा 370 हटाकर गलत किया है तो सामने आये और देश को बताये कि क्या वह सत्ता में वापस आयी तो धारा 370 वापस बहाल कर देगी? जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35ए को समाप्त होकर सालभर हो गये लेकिन ये सवाल एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है कि क्या सचमुच कांग्रेस ऐसा करेगी?

22 अगस्त को श्रीनगर के गुपकर रोड स्थित फारुख अब्दुल्ला के निवास पर छह पार्टियों की एक बैठक हुई। बैठक में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेस के अलावा महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, कांग्रेस, पीपुल्स कांन्फ्रेन्स, सीपीएम और अवामी नेशनल कांफ्रेस के नेता शामिल हुए। इस बैठक के बाद एक बयान जारी किया गया जिसे गुपकर डिक्लेरेशन-2 कहा गया है। इस डिक्लेरेशन पर फारुख अब्दुल्ला के अलावा महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीए मीर, सीपीएम के यूसुफ तारिगामी, पीपुल्स कांफ्रेस के सज्जाद लोन और अवामी नेशनल कांफ्रेस के उपाध्यक्ष मुजफ्फर शाह के हस्ताक्षर हैं। इस डिक्लेरेशन में कहा गया है कि “हम ये कहना चाहते हैं कि हम (पहले) गुपकर डिक्लेरेशन के साथ पूरी तरह खड़े हैं। हम जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35ए की बहाली के लिए कठोर संघर्ष करेंगे। हम जम्मू कश्मीर में राज्य की बहाली के लिए संघर्ष करेंगे और हमें जम्मू कश्मीर का बंटवारा किसी भी रूप में स्वीकार नहीं है। हमारे बिना हमारे लिए कुछ नहीं हो सकता।”

इस बैठक से पहले पिछले साल 4 अगस्त 2019 को भी अब्दुल्ला आवास पर एक बैठक हुई थी जिसमें महबूबा मुफ्ती सहित इन सभी दलों के नेता शामिल थे। उस समय कहा गया था कि “हमें ऐसा लग रहा है कि केन्द्र सरकार कश्मीर में धारा 370 हटाना चाहती है। अगर ऐसा कुछ होता है तो हम उसे अस्वीकार करेंगे।” इस बैठक के अगले ही दिन केन्द्र सरकार ने राज्यसभा में प्रस्ताव लाकर जम्मू कश्मीर से न सिर्फ धारा 370 को महत्वहीन कर दिया बल्कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख को अलग अलग करके दो केन्द्र शासित प्रदेश बना दिये। इस घटना पर स्थानीय नेता कोई क्रिया करते या प्रतिक्रिया देते इससे पहले ही जम्मू कश्मीर के सभी प्रमुख नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। करीब सालभर बाद अब अब्दुल्ला परिवार आजाद है लेकिन महबूबा मुफ्ती अभी भी नजरबंद हैं।

नजरबंदी समाप्त होने के बाद फारुख अब्दुल्ला कुछ समय तक शांत रहे लेकिन अब उन्होंने बोलना शुरु कर दिया है। फारुख अब्दुल्ला की राजनीतिक मजबूरी है कि वो धारा 370 को स्वीकार करते हुए न दिखें ताकि कश्मीर घाटी में वो थोड़े बहुत ही सही, प्रासंगिक बने रहें लेकिन कांग्रेस की ऐसी कौन सी मजबूरी है जो वह धारा 370 के लिए फारुख अब्दुल्ला के साथ खड़ी हो गयी है? क्या सचमुच ऐसा संभव हो सकता है कि अगर केन्द्र में कांग्रेस सत्ता में वापस लौटे तो वह कश्मीर में धारा 370 पूर्ण रूप से बहाल कर दे और 35ए को भी पूर्व की भांति लागू कर दे?

इस बात की संभावना समाप्त नहीं हुई है। धारा 370 को कश्मीर से समाप्त करने का कांग्रेस ने कभी स्वागत नहीं किया। अलग अलग कारणों से ही सही उसने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का विरोध ही किया। उसने ये तो नहीं कहा कि भाजपा ये गलत कर रही है लेकिन उसने भाजपा के तरीके पर जरूर सवाल उठाया। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने राज्यसभा में मोदी सरकार के प्रस्ताव का विरोध ही किया था। कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति का स्वागत नहीं किया, जिसने किया वो स्वयं भाजपा में चला गया।

ये इस बात का साफ संकेत है कि कांग्रेस फिलहाल इस मामले पर मौन है। वो राष्ट्रीय राजनीति के माहौल को देखते हुए चुप जरूर है लेकिन स्थानीय स्तर पर अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर धारा 370 को वापस लाने की कसमें खा रही है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना बनी रहेगी कि अगर किसी दिन कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सत्ता में आयी तो वो उसी रास्ते से कश्मीर में धारा 370 की बहाली कर देगी जिस रास्ते से बीजेपी ने उसे समाप्त किया है। अगर ऐसा नहीं है तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को इस बारे में कांग्रेस पार्टी का पक्ष जरूर स्पष्ट करना चाहिए।

जहां तक स्थानीय राजनीति और लोगों का सवाल है तो उनको धारा 370 की समाप्ति के बाद बदलाव का अहसास होना शुरु हो चुका है। श्रीनगर में केएफसी ने अपना पहला आउटलेट अभी इसी महीने चालू किया है जो स्थानीय लोगों को जमाने के साथ चलने का अहसास करा रहा है। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने केएफसी की फोटो डालकर खुशी जाहिर किया है। आनेवाले वर्षों में निश्चित रूप से बंद निकाय की तरह हो चुके जम्मू कश्मीर में स्वतंत्र बाजार की मुक्त हवा जरूर बहेगी जो स्थानीय मन मानस को बदलेगी। समय के साथ स्थानीय लोगों को भी इस बात का प्रत्यक्ष अनुभव होगा कि बंद निकाय की जिंदगी उनके लिए ज्यादा बेहतर थी या फिर ये फिर मुक्त जीवन। निश्चित रूप से इससे अलगाववादी राजनीति करनेवालों की ताकत कमजोर होगी।

जम्मू कश्मीर को बंद निकाय बनाकर भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बना चुके कश्मीर के नेताओं को चाहिए कि धारा 370 को राजनीतिक मुद्दा बनाने से बेहतर है कि वो बदलाव की बयार को स्वीकार करें और जम्मू कश्मीर में नयी राजनीति की शुरुआत करें जो समावेशी और समपूर्ण भारत के साथ एकाकार हो। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो समय के साथ ये राजनीतिज्ञ अप्रासंगिक होते चले जाएंगे। फिर इन राजनीतिक दलों को ये भी सोचना होगा कि क्या लद्दाख फिर से जम्मू कश्मीर में मिलने को तैयार होगा या फिर जम्मू इस बात का समर्थन करेगा कि धारा 370 की पुन: बहाली हो जाए?