
भारतीय कूटनीति को आने वाले समय में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारत अगर संतुलन की कूटनीति से दूर गया तो परिणाम गंभीर होंगे। निश्चित तौर पर रूस क्वाड के रुप में मिनी नाटो बनाए जाने के प्रयासों से प्रसन्न नहीं है। यह हमारी गलतफहमी है कि क्वाड का विरोध सिर्फ चीन कर रहा है। रूस किसी भी कीमत पर क्वाड को सैन्य एलांयस के रुप में नहीं देखना चाहता है।
12 मार्च को क्वाड देशों के प्रमखों की वर्चुअल बैठक हुई। क्वाड सिक्युरिटी डॉयलाग में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। इसमें जापान और आस्ट्रेलिया के प्रमुख भी शामिल हुए। इस वर्चुअल बैकक पर चीन के साथ-साथ रूस भी नजर गड़ाए बैठा था। क्योंकि इंडो पैसेफिक में इस एलांयस के बढते प्रभाव से रूस प्रसन्न नहीं है। रूस को जापान औऱ आस्ट्रेलिया से बहुत उम्मीद नही रखता है। लेकिन भारत को दबाव में लेने की हैसियत रखता है।
क्वाड की बैठक के बाद रूस ने अपनी ताकत दिखायी। मास्कों में अफगानिस्तान में शांति बहाल करने को लेकर बैठक बुलायी। इस बैठक में चीन और पाकिस्तान को खासा महत्व रूस ने दिया। रूस ने साफ संकेत दिए कि अगर इंडो-पैसेफिक में भारत क्वाड को लेकर ज्यादा आक्रमक हुआ, तो इसके गंभीर परिणाम होंगें। यह बैठक क्वाड की वर्चुअल बैठक के बाद हुई थी। हालांकि मास्कों की बैठक में अमेरिका भी शामिल हुआ। लेकिन चीन और पाकिस्तान खासे सक्रिय थे। रूस ने यही संकेत दिए है कि अफगानिस्तान में रूस आज भी मौजूद है। अगर भारत क्वाड के साथ जाएगा तो अफगानिस्तान में भारतीय हितों को रूस नुकसान पहुंचा सकता है।
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति फंसती नजर आ रही है। चीन का दबाव भारत पर बरकरार है। क्वाड भारत की मजबूरी है। लेकिन एक बड़ा खेल डिफेंस सेक्टर का भी है। भारत एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद रूस से कर रहा है। भारत ने खरीद के लिए अग्रिम राशि भी रूस को दी है। लेकिन इस खरीद पर अमेरिका नाराज है। अमेरिका लगातार रूस से एस-400 मिसाइल खरीद को रद्द करने का दबाव बना रहा है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड जेम्स ऑस्टिन हाल ही में भारत दौरे पर आए थे। उनके दौरे के दौरान अमेरिकी सांसदों ने रक्षा मंत्री ऑस्टिन से आग्रह किया कि वे भारत पर एस-400 खरीद के फैसले को रद्द करने के लिए दबाव बनाए। दरअसल अमेरिकी रक्षा मंत्री ऑस्टिन का भारत दौरे बहुउद्देशीय था। क्वाड और इंडो पैसेफिक उनके एजेंडे में था। लेकिन साथ ही भारत का रक्षा खरीद बाजार भी उनके एजेंडे में शामिल था।
अमेरिकी रक्षा मंत्री अमेरिका के हथियार लॉबी से जुडे हुए है। रक्षा मंत्री बनने से पहले वे हथियार कंपनियों के लिए काम करते रहे है। उनके लिए लॉबिंग भी करते रहे है। भारतीय प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के साथ हुई उनकी हुई बैठक में रक्षा सहयोग बढाना एजेंडे में शामिल था। रक्षा सहयोग बढाने का एक मतलब अमेरिकी हथियारों की खरीद भी होता है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री के भारत दौरे के दौरान ही अमेरिकी सांसद दवारा रूस से एस-400 मिसाइल की खरीद का मसला उठाना भी अमेरिकी कूटनीति का एक खेल था, जिसके माध्यम से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की गई। क्योंकि अमेरिका लगातार एस-400 मिसाइल की खरीद को अमेरिका के “काउंटरिंग अमेरिका एडवरसरीज थ्रू सेंक्शन एक्ट” का उल्लंघन बताता रहा है। उधर अमेरिकी रक्षा मंत्री के भारत दौरे पर रूस की नजर थी। क्योंकि रूस भारतीय सेना के लिए जरूरी हथियारों का बड़ा सप्लायर है।
मास्कों में अफगानिस्तान में शांति को लेकर बैठक हुई। इस बैठक में अफगान सरकार के प्रतिनिधि पहुंचे। तालिबान के प्रतिनिधी मौजूद थे। चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधि बैठक में खासे सक्रिय थे। रूस ने बैठक में चीन और पाकिस्तान को खासा तव्वजो दिया। हालांकि रूस को यह पता है कि अफगानिस्तान में भारत का अरबों डालर का निवेश है। अगानिस्तान के अंदर भारत एक पक्ष है, इस सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
पिछले बीस सालों में अफगानिस्तान के निर्माण में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। लेकिन रूस अपने खेल में लगा हुआ है। निश्चित तौर पर रूस भारत को संदेश दे रहा है कि भारत इंडो- पैसेफिक में अमेरिका के साथ ज्यादा सहयोग बढाने की स्थिति में रूस भारत का अफगानिस्तान में नुकसान कर सकता है। इसमें कोई शक नहीं है कि रूस आज भी अफगानिस्तान में मजबूती से मौजूद है। रूसी की इंटेजिलेंस एजेंसिया आज भी अफगानिस्तान में खासी सक्रिय है। उनकी खासी पकड़ है।
जून 2020 में न्यूयार्क टाइम्स ने खुलासा किया था अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी सैनिको सहित अमेरिका के सहयोगी देशों के सैनिकों पर हमले की साजिश रूसी इटेंलिजेंस एजेंसी ने रची थी। रूसी इंटेलिजेंस एजेंसी ने तालिबान के कुछ लोगों को पैसे दकर अमेरिकी सैनिकों पर हमले करवाने की साजिश रची थी।
दरअसल हर मजबूत देश अपने खेल में लगा हुआ है। जो बाइडेन ने सत्ता सम्हालते ही 12 मार्च को क्वाड की वर्चुअल बैठक मे भाग लिया। यह जो बाइडेन का अपना खेल था। दरअसल इस बैठक के बाद ही 18 और 19 मार्च को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन की बैठक चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अलास्का में हुई। इस बैठक से पहले अमेरिका ने चीन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए क्वाड को मजबूत करने पर बल दिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने क्वाड के वर्चुअल बैठक में भाग लिया। यही नहीं चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने जापान और दक्षिण कोरिया का दौरा भी किया। चीन ने इस दौरे पर नजर बनाए रखी। चीन की प्रतिक्रिया लगातार आती भी रही। यही नहीं जो बाइडेन ने रूस पर दबाव बनाने के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन को हत्यारा तक कह डाला। अब इस जियोपॉलिटिक्स में भारत खासा फंस गया है।