पिछले दिनों खेल जगत से आई दो खबरों ने हरेक भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। पहली खबर थी कि ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा ने इस साल का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए लुसाने डायमंड लीग भी जीत लिया। नीरज चोपड़ा ने 87.66 मीटर भाला फेंककर पहला स्थान हासिल किया। चोट के बाद भी वापसी करते हुए नीरज चोपड़ा ने दूसरा डायमंड लीग जीता। इससे पहले दोहा डायमंड लीग में उसने 88.67 मीटर भाला फेंका था। दूसरी खुशी दी भारत की फुटबॉल टीम ने।
भारत ने कुवैत को हराते हुए नौवीं बार सैफ फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम पर कर लिया । दोनों ही टीमें 90 मिनट के बाद भी एक्स्ट्रा टाइम तक 1-1 के स्कोर पर बराबर थीं । ऐसे में मैच का नतीजा पेनल्टी शूटआउट से निकला, जहां भारत ने अपने घरेलू दर्शकों के बीच कुवैत को 5-4 से हराया। इससे पहले सेमीफाइनल में भी भारत ने लेबनान को पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हराया था।
भारत को खेल के मैदान में चौतरफा मिल रही सफलताएं साबित करती हैं कि भारत में खेलों पर सरकार और निजी क्षेत्र पर्याप्त ध्यान दे रहा है। ये दोनों खेलों के विकास पर इनवेस्ट भी कर रहे हैं। ये कोई बहुत पुरानी बातें नहीं हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजनों में भारत की लगभग सांकेतिक उपस्थिति ही रहा करती थी। हम हॉकी में तो बेहतर प्रदर्शन कर लिया करते थे, पर शेष खेलों में हमारा प्रदर्शन प्राय: औसत ही रहता था।
हमारे खिलाड़ियों- अधिकरियों की टोलियां बड़े खेल आयोजनों में जाकर खाली हाथ वापस आ जाया करती थी। हिन्दुस्तानी खेल प्रेमियों की निगाहें तरस जाती थीं, एक अदद पदक को देखने के लिए। पर गुजरे एक दशक से स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हम बैडमिंटन जैसे खेल में विश्व चैंपियन बनने लगे हैं, हमारा धावक ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतता है और क्रिकेट में तो हम विश्व की सबसे बड़ी शक्ति हैं ही। हमारी बेटियां वेटलिफ्टिंग तथा कुश्ती जैसी स्पर्धाओं में देश की झोली पदकों से भर देती हैं।
हम बड़े खेल आयोजन भी कर रहे हैं। हमने पिछले साल चेन्नई में 44वें शतरंज ओलंपियाड का आयोजन किया। जो पहली बार भारत में हुई। शतरंज ओलंपियाड चेन्नई से 50 किलोमीटर दूर मामल्लापुरम में हुआ और इसमें रिकॉर्ड खिलाड़ियों ने भाग लिया। नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में भारत को गोल्ड मेडल दिलवाया। उनकी उपलब्धि पर सारा देश गर्व कर रहा है। हमने 2022 में थॉमस कप जीता था। लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, एच एस प्रणय और सात्विक साईराज, रंकी रेड्डी-चिराग शेट्टी ने जो धैर्य और दृढ़ संकल्प दिखाया उसने उस धारणा को धराशायी कर दिया कि भारतीय खेलों के लिए नहीं बने हैं।
लंबे समय से हम भारतीयों ने अपने मन में इन भ्रांतियों को पनपने भी दिया। कहा जाता रहा है कि भारतीयों में वह जीतने वाला दम-ख़म नहीं होता। हम सिर्फ देश में ही अच्छा खेलते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेकार साबित होते हैं। अफसोस कि हमने खुद दूसरों को अपने ऊपर हंसने का पूरा मौका दिया है। हमने इस साल उड़ीसा में विश्व हॉकी चैंपियनशिप को भी आयोजित किया। अब हम विश्व कप क्रिकेट चैंपियनशिप की भी मेजबानी करने जा रहे हैं।
2023 क्रिकेट विश्व कप आईसीसी क्रिकेट विश्व कप का 13वां संस्करण होगा, जिसे अक्टूबर और नवंबर 2023 के दौरान आयोजित किया जाना है।यह पहली बार होगा जब प्रतियोगिता पूरी तरह से भारत में आयोजित की जानी है। पिछले तीन संस्करणों 1987, 1996 और 2011 में भारत आंशिक रूप से मेजबान था। मूल रूप से, टूर्नामेंट 9 फरवरी से 26 मार्च 2023 तक खेला जाना था।लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण जुलाई 2020 में, तिथियों को अक्टूबर और नवंबर में स्थानांतरित कर दिया गया। याद कीजिए कि हमने कुछ साल पहले फीफा अंडर 17 विश्व कप का भी आयोजन किया था।
बहरहाल, ये कहना पड़ेगा कि भारत खेलों में चौतरफा स्तर पर आगे बढ़ रहा है। हमारे खिलाड़ी महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज कर रहे हैं। हम अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन भी सफलतापूर्वक तरीके से आयोजित कर रहे हैं।
पर मुझे एक बात कहने दें कि हमें अपने बड़े-विशाल स्टेडियमों का सही से इस्तेमाल करने पर फोकस करना होगा। मतलब ये कि इनमें युवा उदीयमान खिलाड़ी आराम से आकर अभ्यास कर सकें। देश की राजधानी दिल्ली में 1951 के पहले एशियाई खेलों के बाद 1982 में एशियाई खेल हुए और फिर 2010 में कॉमनवेल्थ खेल आयोजित किए गए। इनके आयोजन पर हजारों करोड़ रुपया खर्च हुआ ताकि विभिन्न स्टेडियम आदि बन सकें।
1982 के एशियाई खेलों के सफल आयोजन के लिए जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदिरा गांधी स्टेडियम, करणी सिंह शूटिंग रेंज वगैरह का निर्माण हुआ था। कॉमनवेल्थ खेलों के समय पहले से बने स्टेडियमों को नए सिरे से विकसित किया गया। पर इतने भव्य आयोजनों के बाद भी दिल्ली से विभिन्न खेलों में श्रेष्ठ खिलाड़ी नहीं निकल पाए। दिल्ली को लघु भारत भी कहा जा सकता है।
यहां देशभर के भारतीय नागरिक रहते हैं। यह स्थिति अफसोस जनक है कि दिल्ली से भारत को नामवर खिलाड़ी नहीं मिल रहे हैं। इसके साथ ही एक राय ये भी है कि राजधानी में जो बड़े-बड़े स्टेडियम बने उनमें खिलाड़ियों को आराम से प्रैक्टिस की सुविधा नहीं मिल पाती। यह स्थिति फौरन खत्म होनी चाहिए। देश के बाकी सभी शहरों- महानगरों में बने स्टेडियमों को खिलाड़ियों स दूर रखने का क्या मतलब है।
मुझे एक बार राजधानी के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कुछ अफ्रीकी नौजवान मिले। वे सब भारत में पढ़ रहे थे। वे अफ्रीकी नौजवान स्टेडियम के बाहर व्यायाम कर रहे थे। मैंने उनसे कहा कि हम बेहतर खिलाड़ी इसलिए नहीं निकाल पाते क्योंकि हमारे यहां विश्व स्तरीय स्टेडियम नहीं है। मेरी बात को सुनकर वे दो-तीन अफ्रीकी मुस्कराते हुए जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम की तरफ इशारा करते हुए कहने लगे- ‘इस तरह का शानदार स्टेडिय़म आपको सारे अफ्रीका में कहीं भी नहीं मिलेगा। हमारे खिलाड़ी जीतते हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वे मैदान में जीत के जज्बे के साथ उतरते हैं।’ संयोग से अब हमारे खिलाड़ियों के पास जीत का जज्बा और सुविधाएं दोनों हैं। उन्हें अब बस शिखर को छूना है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)