ईरान का क्षेत्रफल लगभग 1,648,195 वर्ग किलोमीटर है अर्थात वह भारत के क्षेत्रफल लगभग 3,287,263 वर्ग किलोमीटर का आधा है। यह सिर्फ ईरान का आकार समझाने के लिए है कि वह कोई छोटा मोटा मुल्क नहीं बल्कि आधा भारत के आकार का देश है।
18 जून रात 9.00 बजे तक की प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस युद्ध में ईरान ने इज़राइल पर 400 से अधिक मिसाइलें दागी हैं जिनमें ईरान की फतह-1 हाइपरसोनिक मिसाइलें भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सैकड़ों ड्रोन (UAVs) लॉन्च किए और प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 104 जगहों पर मिसाइलों और ड्रोन हिट हुए।
इसके बावजूद कि ईरान लगातार पिछले 46 सालों से तमाम वैश्विक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और उस पर सबसे पहला प्रतिबंध ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद 1979 में अमेरिका ने तब लगाए जब ईरान ने अमेरिकी दूतावास के सभी राजनयिकों को गिरफ्तार करके देश के अलग अलग जेलों में बंद कर दिया।
अमेरिका ने ईरान पर व्यापक प्रतिबंध लगाए जिसमें तेल व्यापार , किसी भी तरह का व्यापार और वित्तीय लेन-देन पर रोक शामिल थी। इस प्रतिबंध के कारण पूरे विश्व ने ईरान से हर तरह के व्यापारिक और आर्थिक संबंध समाप्त कर लिए।
इन प्रतिबंधों से कुछ छूट मिली ही थी और लोग ईरान से व्यापार करना शुरू ही किए थे कि 1995 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ईरान के साथ व्यापार पर पुनः पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया और दुनिया ने ईरान से हर तरह के व्यापारिक संबंध फिर तोड़ लिए।
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2006 में प्रस्ताव 1737 के तहत परमाणु हथियारों और सामग्री की बिक्री पर रोक के लिए ईरान पर पहले औपचारिक प्रतिबंध लगाए गए और तमाम देशों ने ईरान से परमाणु हथियारों से संबंधित कोई भी व्यापार करना बन्द कर दिया।
इसके बाद सुरक्षा परिषद ने 2007 से 2010 तक 1747, 1803, 1929 जैसे प्रस्ताव पारित किए जिनमें ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम और पारंपरिक हथियारों की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध शामिल थे जिनका उद्देश्य ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों को समाप्त करना था।
मिसाइलों पर निगरानी के लिए यह प्रतिबंध 2023 तक बरकरार रहे और 2023 में JCPOA से जुड़े मिसाइल प्रतिबंधों की अवधि सन 2023 तक चली।
2015 मे ईरान और अमेरिका के बीच हुए जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) समझौते के बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित कई प्रतिबंध हटाए तो 2018 में राष्ट्रपति बनते ही डोनल्ड ट्रम्प ने JCPOA से इकतरफा हटने का फैसला किया और ईरान पर नए सख्त प्रतिबंध फिर से लागू किए, जिसमें तेल निर्यात, बैंकिंग, और अन्य क्षेत्र शामिल थे।
डोनल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में, ईरान के परमाणु कार्यक्रम और मिसाइल विकास से जुड़े नए प्रतिबंध लगाए गए। और मई 2025 में अमेरिका ने ईरान के रक्षात्मक नवाचार और अनुसंधान संगठन (SPND) से जुड़े तीन वरिष्ठ परमाणु अधिकारियों और एक कंपनी फूया पार्स प्रोस्पेक्टिव टेक्नोलॉजिस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया।
क्या मुसीबत है ? क्या दुश्मनी है भाई ईरान से? ईरान की जनता ने 1979 में क्रांति करके अपने को इस्लामिक स्टेट घोषित किया इसलिए? तो फिर कहो ना कि तुम्हारी लड़ाई धार्मिक है ? परमाणु और मिसाईल वगैरह तो बहाना है।
क्या समस्या है “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान” नाम से ?
किसी देश की जनता का जनमत था “इस्लामिक क्रांति” और Islamic Republic of Iran बनाना तो आपको क्या समस्या है ? जनता का मत ही तो लोकतंत्र का आधार होता है?
ईरान में घटी एक एक घटना इस्लामिक कट्टरवाद का उदाहरण बताकर इस तरह दुनिया भर में फैलाई गई जिससे ईरान और इस्लाम बदनाम हो, कभी हिजाब को लेकर तो कभी बाल को लेकर।
इसके बावजूद कि इनके अपने खुद के देशों में इससे वीभत्स घटनाएं घटती ही रहती हैं, रोज़ घटती हैं, कभी घोड़ी चढ़ने के नाम पर तो कभी मूछ रखने के नाम पर मगर चर्चा और भर्त्सना ईरान की होगी और उसी से सस्ता तेल भी लिया जाएगा और भुगतान पैसे से नहीं बल्कि सामान से किया जाएगा।
कहने का अर्थ यह है कि जब से ईरान में इस्लामिक क्रांति आई है और ईरान Islamic Republic of Iran बना है तबसे दुनिया उसके पीछे पड़ी है, तब से ईरान पर कोई ना कोई प्रतिबंध लगता रहा है मगर इस सबके बावजूद उसने अपनी मिसाइल कार्यक्रमों और परमाणु कार्यक्रमों को जिस तरह बढ़ाया और एक शक्ति बना इसके लिए उसे बधाई देनी ही चाहिए।
जिस इज़राइल पर एक कंकड़ मारना असंभव था उस इज़राइल के ईरान ने परखच्चे उड़ा दिये और तेल अवीव को खंडहर बना दिया और अमेरिका भी सिर्फ गीदड़ भभकी देता फिर रहा है।
ध्यान दीजिए कि पूरे मिडिल ईस्ट में ईरान के पास सबसे बड़ा बैलिस्टिक मिसाइल भंडार है प्राप्त जानकारी के अनुसार इसकी संख्या 3000 से अधिक हैं जिसमें एक से एक ख़तरनाक मिसाइलें हैं।
इनमें इनमें लंबी दूरी की मिसाइलें, हाइपरसोनिक मिसाइलें, और सटीक मार करने वाली मिसाइलें शामिल हैं। ईरान ने खैबार शेकन और सेज्जिल जैसी उन्नत मिसाइलें बनाईं तो फतह-1 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलों का विकास किया जिसने इजराइल के आयरन डोम जैसे रक्षा तंत्र को भेद कर भोथरा बना दिया।
दरअसल ईरान ने अपनी प्राकृतिक ताकत का भरपूर इस्तेमाल किया और अपने तमाम मिसाईल और परमाणु कार्यक्रम पत्थरों के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के ज़मीन स्तर से भी 200-300 फिट नीचे मिसाइलों के निर्माण और भंडारण सुविधाओं का इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जिन्हें “सुप्त ज्वालामुखी” कहा जाता है।
इतना सब कुछ ईरान ने अपने 46 सालों के प्रतिबंध के बावजूद किया, सोचिए कि उस पर प्रतिबंध नहीं लगे होते तो वह क्या करता। इसीलिए ईरान से अमेरिका तक उससे घबराता है। और प्रतिबंध से बचे होने के बावजूद ऐसा साहस गल्फ़ देशों में और कोई देश नहीं कर सका।