बेरोजगारी के खिलाफ झारखंड सरकार की अभिनव योजना

जहां उच्च गुणवत्ता वाले कौशल की जरूरत नहीं है वहां तो श्रमिकों को नियोजित किया ही जा सकता है। हेमंत सरकार ने ऐसे ही कुछ प्रयोग किए हैं। सरकार के कुछ प्रयोग तो तात्कालिक हैं लेकिन कुछ प्रयोग बेहद दूरगामी हैं, जिसपर हेमंत बड़ी तसल्ली से काम कर रहे हैं। सरकार का ग्रामीण विकास विभाग इस दिशा में न केवल सक्रियता दिखा रहा है अपितु कुछ इमानदार प्रयास भी देखने को मिल रहा है।

आर्थिक विश्लेषकों के थिंकटैंक, ‘‘सेंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी’’ के आंकड़े के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण प्रवासी मजदूरों की वापसी से झारखंड में एक महीना में 12 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी है। इस बेरोजगारी से पार पाने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने अभिनव प्रयोग किए हैं। यदि उनका यह प्रयास रंग लाया तो प्रदेश के नौजवानों को दूसरे राज्यों में जाकर काम के लिए भटकना नहीं पड़ेगा उन्हें अपने राज्य में ही अच्छी नौकरी मिल जाएगी। मुख्यमंत्री सोरेन योजना सफल भी होती दिख रही है।

आपको बता दें कि झारखंड में कल-कारखानों की संख्या कम नहीं है। पड़ोसी बिहार की तुलना में झारखंड इस मामले में थोड़ा अलग है, बावजूद इसके बेरोजगारी यहां ज्यादा है। इसका मुख्य कारण कुशलता का अभाव है। झारखंड में जिस प्रकार के कारखानें हैं उसमें उच्च गुणवत्ता के प्रशिक्षित कामगारों की जरूरत होती है और झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की कमी है। फिलहाल इतनी जल्दी इन मानव श्रम को कुशल बनाना आसान नहीं है।

जहां उच्च गुणवत्ता वाले कौशल की जरूरत नहीं है वहां तो श्रमिकों को नियोजित किया ही जा सकता है। हेमंत सरकार ने ऐसे ही कुछ प्रयोग किए हैं। सरकार के कुछ प्रयोग तो तात्कालिक हैं लेकिन कुछ प्रयोग बेहद दूरगामी हैं, जिसपर हेमंत बड़ी तसल्ली से काम कर रहे हैं। सरकार का ग्रामीण विकास विभाग इस दिशा में न केवल सक्रियता दिखा रहा है अपितु कुछ इमानदार प्रयास भी देखने को मिल रहा है।

अभी हाल ही में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मनरेगा, मानव दिवस सृजन, नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना, वीर शहीद पोटो हो खेल योजना, मनरेगा भुगतान, राशन वितरण और कोरोना महामारी संक्रमण जांच की प्रगति से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के दौरान कहा था कि झारखंड में जो भी प्रवासी मजदूर वापस लौट कर अपने प्रदेश आए हैं उन्हें मुकम्मल काम मिलेगा। हमारे रहते कोई भूखा नहीं मरेगा। 

अपने इसी संकल्प को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री ने सर्वप्रथम अपने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि बाहरी प्रदेश के जो मजूदर झारखंड में काम कर रहे थे और फिलहाल काम छोड़कर अपने गृह प्रदेश चले गए हैं उनके स्थान पर प्रदेश के बेरोजगारों को काम पर लगाया जाए। मुख्यमंत्री ने बोकारो उपायुक्त से कहा कि विभिन्न उद्योगों में कार्यरत छह हजार मजदूर बाहर चले गए हैं। इन उद्योगों के प्रतिनिधियों से बात कर उनकी जगह पर वापस लौटे श्रमिकों को कार्य से जोड़ने का प्रयास करें। प्रति पंचायत 250-300 श्रमिकों को प्रतिदिन कार्य देने एवं 10 लाख श्रमिकों को कार्य उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।

यही नहीं प्रदेश में करीब 20 हजार एकड़ गैर मजरुआ व रैयती भूमि पर सरकार ने बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत फलदार पौधा लगाने का लक्ष्य तय किया है। सभी उपायुक्तों को इस बात पर ध्यान देने को कहा गया है। यह मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। योजना के माध्यम से आने वाले समय में ग्रामीणों को उन फलदार वृक्षों का पट्टा दिया जाएगा। योजना के तहत बागवानी सखी योजना में महिलाओं के समूह को पांच एकड़ भूमि पर फलदार पौधा के संरक्षण की जिम्मेवारी सौंप जाएगी और इस आधार पर प्रदेश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित किया जाएगा।

इस मामले में झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत व्यापक तौर पर मजदूरों और प्रवासी मजदूरों को काम देने की योजना तैयार की है। मुख्यमंत्री ने इस सम्बन्ध में तीन नयी योनाओं की घोषणा की है और इन योजनाओं को पूरा करने के लिए विभाग ने ‘पानी रोको,पौधा रोपो कार्यक्रम’ की शुरुआत की है। इसके माध्यम से प्रतिदिन 10 लाख मजदूरों को काम देने के लक्ष्य रखा गया है। सभी मजदूरों को सही समय पर काम मिले और उसका वाजिब दाम समय पर मिल पाए इसी के लिए विभाग ने सोशल ऑडिट यूनिट के माध्यम से समवर्ती सामजिक अंकेक्षण का काम भी प्रारंभ किया है। 

सामन्यतः मनरेगा के तहत कार्य पूरा हो जाने के पश्चात ही सामजिक अंकेक्षण का कार्य ग्राम सभा के माध्यम से संपन्न कराने की अधिनियम में व्यवस्था की गयी है, परन्तु चल रहे कार्य की निगरानी का प्रावधान भी ग्रामीण विकास विभाग द्वारा किया गया है, जिसमें सोशल ऑडिट यूनिट के स्रोत व्यक्ति के साथ-साथ स्थानीय ग्राम निगरानी समिति के सदस्य, मजदूर मंच के प्रतिनिधि और स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि भी शामिल होते है।

बीते 1 जून से 11 जुलाई तक राज्य के 2152 पंचायतों में यह कार्य प्रारंभ कर दिया गया है। जिसमें प्रवासी मजदूरों का जॉब कार्ड बनाने, उनके काम के आवेदन को तैयार करने को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। मनरेगा के तहत प्रारंभ किये गए 1 लाख से अधिक कार्यों का भौतिक सत्यापन किय जस रहा है और मशीन तथा ठेकेदार की संलिप्तता न हो इस पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है। जिस गांव में काम नहीं चल रहा है, उसकी सूची प्रतिदिन विभाग को सौंपी जा रही है और यदि किसी मजदूर का जॉब कार्ड उसके पास नहीं होकर किसी और के पास रख लिया गया हो तो उसकी सूचना भी विभाग को प्रतिदिन देने की व्यवस्था की गयी है।

First Published on: June 13, 2020 6:37 PM
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