कोविड-19 और संसद का सेंट्रल हाल


कोरोना दौर में भी संसद का मानसून सत्र इस बार भी आयोजित किया जाएगा। अभी तारीख तय नहीं हुई है कि कबसे मानसून सत्र की शुरुआत होगी और यह सत्र कब तक चलेगा। लेकिन इतना तय है कि चाहे पूरे महीने का न भी हो, तो भी एक पखवाड़े यानी दो सप्ताह तक को मानसून सत्र की कार्रवाई होगी ही। ख़ास बात यह है कि इस साल मानसून सत्र में संसद के दोनों सदनों-लोकसभा और राज्यसभा की बैठकें एक साथ नहीं होंगी बल्कि एक दिन की दो पालियों में पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा की बैठक हुआ करेगी। ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि कोरोना की वजह से संसद को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करना होगा और यह तभी हो सकता है जब एक समय में संसद भवन के दोनों सदनों का सेंट्रल हाल में बैठक आयोजित किया जाये।

राज्य सभा की बैठकें लोकसभा और राज्य सभा कक्षों में और लोकसभा की बैठकें इन दोनों सदनों के साथ ही केन्द्रीय कक्ष में आयोजित करने की योजना दोनों सचिवालयों ने मिल कर बनाई है। संसद का मानसून सत्र अगले महीने यानी सितम्बर के पहले सप्ताह से शुरू होने की संभावना है। कम समय में संसद के दोनों सदनों में ज्यादा से ज्यादा कामकाज संपन्न हो सके इसके लिए एक कोशिश यह भी की जा रही है कि मानसून सत्र में प्रश्नकाल और शून्यकाल की कार्र्वाई स्थगित रखी जाये। वैसे अभी तह यह बात विचार के स्तर पर ही है, हो सकता है अंतिम समय में प्राश्नकाल करवाने पर सहमति बन भी जाए। मालूम हो कि संसद के दोनों सदनों की कारवाई आम तौर पर सुबह 11 बजे प्रश्न काल से ही शुरू होती है। एक घंटे की इस कार्रवाई के बाद ही जरूरत और अध्यक्ष की अनुमति से शून्य काल की कार्रवाई का आयोजन होता है और इसके बाद ही सदन में विभिन्न संसदीय नियमों के तहत चर्चा तथा अन्य कार्रवाई की जाती है।

संसद भवन परिसर में सेंट्रल हाल की महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक भूमिका रही है। देश के आजाद होने के बाद जब तक देश की संसद का गठन नहीं हुआ था तब देश के अपने संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा की बैठकों का आयोजन संसद भवन के इसी कक्ष में हुआ था। डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में करीब तीन साल तक हुई व्यापक चर्चा के बाद ही संविधान सभा ने डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति के प्रस्ताव को स्वीकृति देकर देश के अपने संविधान के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था।

संविधान सभा के अलावा संसद के किसी सदन की बैठक का आयोजन अभी तक संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में संभवतः नहीं हुआ है। अपवाद स्वरूप आपात स्थिति में ऐसा कोई आयोजन अतीत में कभी हुआ हो इसकी भी कोई अधिकृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस लिहाज से यह देश के संसदीय इतिहास का ऐसा पहला अवसर होगा जब संसद के किसी सदन की नियमित कार्रवाई के लिए इसका उपयोग किया जा रहा हो। ऐसा करना परिस्थितिजन्य विवशता भी है क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन करते हुए लोकसभा के सभी 500 से ज्यादा सदस्यों को एक साथ एक सदन में बैठा कर संसद की कारवाई का संचालन नहीं किया जा सकता।

इसलिए लोकसभा के साथ ही राज्य सभा और सेंट्रल हाल का भी इस कार्य के लिए उपयोग किया जाएगा। राज्य सभा की बैठक के लिए सेंट्रल हाल की जरूरत शायद इसलिए नहीं पड़ेगी क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्य सभा के सदस्यों के मुकाबले लगभग दो गुनी है। इसलिए इस सदन की बैठक के लिए तीसरे कक्ष की जरूरत नहीं पड़ेगी। गौरतलब यह भी है संसद के सत्र की कार्रवाई के दौरान सदन के सभी सदस्यों के साथ ही केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्य भी मौजूद रहते हैं। केन्द्रीय मंत्री संसद के किसी एक सदन के ही सदस्य हो सकते हैं लेकिन अपने मंत्रालय से सम्बंधित जानकारी सांसदों को देने की गरज से केन्द्रीय मंत्री किसी भी सदन में जा जरूर सकते हैं।

सेंट्रल हाल में संसद के किसी सदन की बैठक अब तक चाहे न हुई हो लेकिन जब कभी संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का आयोजन करना हो, किसी विदेशी मेहमान को भारतीय संसद को संबोधित करना हो, किसी विशेष अवसर पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को किसी आयोजन के लिए इस कक्ष की जरूरत होती है तब ऐसे कार्यक्रम भी इस कक्ष में अवश्य आयोजित किये जाते रहे हैं। इसके अलावा नई लोकसभा के गठन के मौके पर तथा हर साल बजट सत्र की शुरुआत में राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के सांसदों की संयुक्त बैठक को इसी कक्ष में संबोधित करते हैं।

संसद भवन परिसर में यही वो कक्ष है जहां आज से 74 साल पहले 1947 में 14-15 अगस्त की दरम्यानी रात को ब्रिटिश सरकार की गुलामी का प्रतीक ब्रितानी झंडा यूनियन जैक नीचे उतार दिया गया था और उसके स्थान पर भारत की आजादी के प्रतीक तिरंगे झंडे को फह्राराया गया था। इसी के साथ ही इसी स्थान पर उस दिन अंग्रेजों ने पंडित जवाहरलाल नेहरु को देश की सत्ता भी सौंप दी थी। देश की आजादी का पहला जश्न भी इसी सेंट्रल हाल में ही मनाया गया था। इसी कक्ष में 9 दिसम्बर 1946 को देश के संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा और प्रारूप समिति की बैठकों का सिलसिला भी शुरू हुआ था। संविधान निर्माण के लिए बैठकों का यह सिलसिला करीब तीन साल तक चला था और 26 नवम्बर 19 49 को यह काम पूरा हुआ। इसी दिन भारत के संविधान को संविधान सभा की स्वीकृति मिली और इसके दो माह बाद ही 26 जनवरी 1950 को आजाद भारत का अपना संविधान लागू भी हो गया था।

एक समय तक इस कक्ष का इस्तेमाल केन्द्रीय संसदीय सभा और कौंसिल ऑफ़ स्टेट्स के पुस्तकालय के रूप में भी होता था। संसद भवन परिसर में यही एक वो स्थान है जहां संसद के दोनों सदनों- राज्यसभा और लोकसभा के सांसद आपस में कई महत्वपूर्व मसलों पर चर्चा करते हैं। अतीत में अनेक कई ऐतिहासिक पलों का गवाह रह चुके सेंट्रल हॉल का लॉन भी अपने आप में कई मायनों में खास है। गौरतलब है कि भारतीय संसद की भवन संरचना को सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने की थी। इसके निर्माण में 6 साल का समय लगा था और कुल 83 लाख रुपये की लागत में यह बन कर तैयार हुआ था। संसद भवन की नींव का पहला पत्थर 12 फरवरी 1921 को रखा गया था। एक जमाने तक देश का सुप्रीम कोर्ट भी संसद भवन के इसी सेंट्रल हाल में ही हुआ करता था।