
फरवरी के अंतिम सप्ताह में भारतीय डिज़िटल दुनिया में यह ख़बर छायी रही कि सरकार सोशल-मीडिया कंपनियों पर लगाम कसने के लिए एक कड़ा नियमन लेकर आयी है। इसे “सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थांनों के लिए दिशा-निर्देश और डिज़िटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 “ का नाम दिया गया है। कहा गया कि जिन कंपनियों की नकेल कसने में यूरोपीय देशों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, उसे भारत की मौजूदा मज़बूत सरकार ने आख़िरकार झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
वास्तविकता क्या है?
25 फरवरी, 2021 को जारी उपरोक्त नये नियम के तहत सोशल-मीडिया चलाने वाली कंपनियों व ओटीटी प्लेटफॉर्म को इंटरमीडियटरी (मध्यवर्ती संस्थान) माना गया है तथा उनसे महज़ ‘स्व-नियमन’ की उम्मीद की गयी है। जैसा कि इसे जारी करते समय प्रेस कांफ्रेन्स में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर ने भी कहा, “हमने कोई नया क़ानून नहीं बनाया है। हमने मौजूदा आईटी अधिनियम के तहत (सिर्फ़) इन नियमों को बनाया है। हम इन नियमों का पालन करने के लिए इंटरमीडियटरी प्लेटफॉर्मों पर भरोसा कर रहे हैं। (हमारे) इस दिशानिर्देश का फोकस उनके आत्म-नियमन पर है”।
वस्तुत: ये नियम मध्यवर्ती प्लेटफॉर्मों पर नकेल कसने से अधिक अपनी जनता को भयभीत करने, सामाजिक-सांस्कृतिक और राजीनितिक स्तर पर मूलगामी सवाल उठाने वालों को क़ाबू में रखने के लिए हैं। इससे बहुसंख्यक भारतीय जनता को, जो भी, जैसी भी अभिव्यक्ति की आज़ादी अब तक प्राप्त है, वह भी अनेक रूपों में बाधित होगी। साथ ही इन नये नियमों के तहत कुछ ऐसे प्रावधान किए गये हैं जिनसे मौजूदा सरकार के समर्थक, धर्मांध, नफ़रत फैलाने वाले लोगों को लाभ होने की संभावना है।
क्या हैं नये नियम? इन नियमों का व्यावहारिक सार निम्नांकित है :
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को किसी भी कथित आपत्तिजनक, शरारती पोस्ट या संदेश को सबसे पहले किसने लिखा इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। यानी, संदेश को शुरू करने वाले उस व्यक्ति की पहचान करनी होगी, जिस पर कार्रवाई की जा सके। इनमें ऐसा कोई भी संदेश शामिल है, जिससे धार्मिक भावना आहत होती हो, सरकार की नीतियों की ऐसी आलोचना होती हो जिससे ‘देश की सुरक्षा और संप्रभुता’ को ख़तरा हो। इसमें किसी आन्दोलन के आह्वान से संबंधित संदेशों को भी ‘देश की सुरक्षा को ख़तरा’ बताकर शामिल किया जा सकेगा।
- अगर कोई अश्लील सामग्री पोस्ट करता है तो उसकी भी जानकारी सरकार को देनी होगी। इसमें हर प्रकार की अश्लील, बाल-यौन शोषण संबंधी तथा कामोद्दीपक सामग्री शामिल होगी। इसके तहत उन यौन-व्यवहार में अल्पसंख्यक समूहों को भी कटघरे में खड़ा किया जा सकेगा जो सेक्स-संबंधी प्रचलित धारणाओं से इतर गतिविधियों में तुष्टि पाते हैं तथा इंटरनेट के माध्यम से गुमनाम रहकर समान रुचि वाले साथी की तलाश करते हैं।
- अगर मध्यवर्ती कंपनी किसी का एकाउंट डिलीट करती है या कोई कंटेंट हटाती है तो उसे यूज़र को बताना होगा उसका कंटेंट क्यों हटाया जा रहा है। इसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा बैन किए जाने की घटना को देखते हुए उठाया गया क़दम माना जा रहा है। पिछले दिनों भारत में भी अनेक दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के एकाउंट इन कंपनियों ने सांप्रदायिक पोस्ट के कारण डिलीट किये थे। सरकार अब ऐसे मामलों में प्रकारांतर से हस्तक्षेप कर सकेगी।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के लिए अनिवार्य होगा कि वे उन सभी लोगों को ‘सत्यापित उपभोक्ता’ की तरह प्रदर्शित करे जो अपनी पहचान सत्यापित करवाना चाहते हों। सत्यापित उपभोक्ताओं को ये कंपनियाँ सामान्यत: ब्लू टिक देती रही हैं। लेकिन यह सिर्फ़ ‘पहचान के सत्यापन’ का मामला नहीं होता है बल्कि इनमें प्राय: सिर्फ़ सेलेब्रेटी जगह पाते रहे हैं और अनेक प्रकार का वैचारिक भेदभाव भी होता रहा है। लेकिन आम तौर पर कंपनियाँ उन लोगों को ब्लू टिक नहीं देतीं जिनकी पोस्ट्स को वे “अपने नियमों” के अनुसार आपत्तिजनक पाती रही हों। यह सच है कि इस मामले में भी अनेक गड़बड़ियों की शिकायतें रही हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में वैचारिक-दंगाइयों व अन्य प्रतिक्रियावादी लोगों को भी ब्लू टिक नहीं मिलती थी। लाखों फॉलोवर होने के बावजूद ब्लू टिक नहीं पाने वालों में ज़्यादातर मौजूदा सत्ताधारी दल के प्रत्यक्ष-परोक्ष ट्रोल हैं। इन नये नियमों से इनकी पहचान क़ायम होगी और प्रभाव बढ़ेगा। मौजूदा सरकार को चलाने वाले राजनीतिक समुदाय की अरसे से यह नीति और चाहत रही है कि बौद्धिक स्तर पर एक धुन्ध पैदा की जाए; जिससे उनकी अपनी कथित ‘बुद्धिजीवी’ बिरादरी (जो वस्तुत: बौद्धिक की जगह, अंधविश्वासी, ज्ञान-विरोधी, पोंगापंथी है) को समाज में बराबर का सम्मान हासिल हो सके।
- सोशल मीडिया पर उपरोक्त कथित आपत्तिजनक पोस्ट लिखने पर देश के नागरिकों को पाँच साल जेल होगी। यह आईटी एक्ट के तहत पहले से चला आ रहा नियम है, जिसका उल्लेख सरकार ने किया है। इस नियम के तहत सोशल मीडिया कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। प्रेस कांफ्रेन्स में इस संबंध में पूछे गये कई सवालों के उत्तर में मंत्री रविशंकर ने बड़ी सफ़ाई से जनता को भ्रमित करने की कोशिश की। उन्होंने बार-बार कहा कि इन नये नियमों का प्रावधान है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर ‘आईटी एक्ट’ लागू होगा और उसी के अनुसार उनकी जिम्मेवारी तय की जाएगी।
वास्तव में आईटी एक्ट, 2000 में धारा 79 में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ‘सेफ हार्बर’ का प्रावधान है। यानी, किसी भी यूज़र द्वारा पोस्ट की गयी सामग्री को होस्ट करने के लिए इन प्लेटफार्मों पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता है। नये नियम में यह अवश्य कहा गया है कि सेफ हार्बर का यह प्रावधान इन प्लेटफार्मों पर लागू नहीं होगा, अगर वे सरकार के आदेश पर किसी पोस्ट को डिलीट नहीं करते हैं या डिलीट करने के बाद उसे अपने कंप्यूटर में (या अन्य किसी माध्यम से) संरक्षित रखते हैं।
इस प्रकार, नये नियमों में भी इन प्लेटफार्मों की जिम्मेवारी सिर्फ़ सरकार के आदेश को मानने तक सीमित है (बल्कि जिन बातों से सरकार को परेशानी है, नए नियम उसे हमेशा के लिए नष्ट कर देने के लिए कहता है, ताकि बाद में किसी न्यायिक सुनवाई में अगर सरकार का निर्णय गलत साबित हो, तब भी प्लेटफार्म उसे पुनर्प्रकाशित न कर सकें)। नये नियमों के अनुसार भारतीय संविधान और इसकी दंड-संहिता की भावनाओं का पालन इन प्लेटफार्मों की जिम्मेवारी नहीं है, न ही इसके लिए उन्हें दोषी ठहराया जाएगा। उन्हें किसी पोस्ट के अतिरेक पूर्ण वितरण के लिए भी न दोषी ठहराया जा सकेगा, न दंडित किया जाएगा।
दूसरी ओर, इन नये नियमों में नागरिकों की प्राइवेसी की कोई चर्चा नहीं है, जो दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है, न ही यह स्थानीय मीडिया संस्थानों की मेहनत को हड़पने वाले इन मध्यवर्ती प्लेटफॉर्मों को किसी प्रकार के भुगतान के लिए बाध्य करता है।
सरकार इस बारे में पूरी तरह स्पष्ट भी है कि वह क्या चाहती है। मंत्री रविशंकर इसे ज़्यादा नहीं छिपाते। नये नियम जारी करते समय प्रेस कांफ्रेन्स के दौरान उन्होंने जो कहा उसका सार भी यही था कि सरकार टेकजाइंट्स का स्वागत करती है। वे यहाँ व्यापार करें, पैसा कमाएँ। हमारे नागरिकों का निजी डेटा बेचें, छोटे-बड़े देशी मीडिया संस्थानों द्वारा उत्पादित कंटेंट को हड़पें, पत्रकारों, लेखकों को झाँसे में रखकर उनकी मेहनत और प्रतिभा को बेचें, उन्हें एक दमड़ी तक न दें, ऐसी नीतियाँ बनाएँ, जिससे देश की नयी पीढ़ी स्क्रीन से बाहर न निकल सके, लेकिन वे सरकार के सही-ग़लत सभी निर्देर्शों का पालन करें। सरकार जिसकी पोस्ट हटाने के लिए कहे, उसे हटा दिया जाए, सरकार खान-पान की जिस आदत को देश के लिए ख़तरा माने, उससे संबंधित चीजे़ं पोस्ट करने वालों पर कार्रवाई हो। सरकार अगर देश को निजी हाथों में बेच रही हो तो उसका विरोध करने वाली पोस्ट्स को देश की सुरक्षा के हित में हटा दिया जाए।
दरअसल, सरकार ने फरवरी के दूसरे सप्ताह में अपने नागरिकों के ‘साइबर अपराध स्वयंसेवक (Cyber Crime Volunteers)’ यानी दूसरे शब्दों में साइबर जासूस बनने का रास्ता खोला था। ये नये क़ानून उसी क्रम की एक कड़ी हैं। नागरिकों के बीच से चुने हुए जासूस सरकार को उपरोक्त चीज़ों की सूचना देंगे, जिन्हें आधार बनाकर सरकार मध्यवर्ती प्लेटफॉर्मों को कार्रवाई करने के लिए कहेगी तथा समस्या पैदा करने वालों को दंडित करेगी। इन जासूसों के अलावा, नागरिकों की आज़ादी को सीमित करने के लिए अन्य प्रकार की व्यवस्था स्थापित करने का भी प्रावधान इस नये नियम में किया गया है।
यही कारण है कि फेसबुक और टि्वीटर ने इन नये नियमों का स्वागत किया है और कहा है कि “हम तो अरसे से माँग करते रहे हैं कि सरकार हमारे लिए गाइड लाइन जारी करे। अपने मित्र भारत के लिए हम उन पर अमल करने के लिए तत्पर हैं।”
(लेखक असम विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं।)