महात्मा गांधी एक विकल्प : स्टीफन हॉकिंग्स


आज पूरी दुनिया ऐसी जगह खड़ी हुई है जिसके सामने कोई विकल्प नहीं है। अभी मालूम नहीं कि जाएं किधर? एक लंबे समय से मंदी में फंसी हुई दुनिया जिसका विकल्प न तो पूंजीवाद के पास है और न साम्यवाद के पास है। न हमारे जैसे मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश के पास है।


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एक बहुत बड़े भौतिक शास्त्री स्टीफन हाकिंग्स ने एक पुस्तक लिखी है The Short History Of Time. इस पुस्तक में वे लिखते हैं कि अपने काम को हल्का करने के लिए आदमी ने मशीनें बनाएं, लेकिन अब मशीनें धीरे धीरे वह जगह लेती जा रही हैं जो दरअसल मनुष्य के अपने अभिकर्म के लिए बनी हुई थीं । वे कहते हैं कि मैं देख रहा हूँ कि वो वक्त आने वाला है जब मशीने आदमी को रिप्लेस कर देंगीं। हॉकिंग्स कहते हैं कि मैं इस खतरनाक चीज को आते देख रहा हूँ। वे कहते हैं कि इस दुर्भाग्य को अगर रोकना हो तो एक अबाउट टर्न की जरूरत है। पूरी तरह घूम जाने की जरूरत है। वे कहते हैं कि अगर ये अबाउट टर्न करना हो तो हमें महात्मा गांधी की ओर लौटना होगा। यह बड़ी हैरानी की बात है कि जिस वैज्ञानिक ने गांधीजी को न तो देखा और न ही पढा,वह व्यक्ति गांधी की ओर लौटने की बात कर रहा है।और गांधी को विकल्प बता रहा है।

हॉकिन्स लिखते हैं कि हम जब भी विकल्प की खोज करेंगे, हमें गांधी ही नजर आएंगे। क्योंकि गांधीजी ने अपने जीवन में जो कुछ किया है बाकी जितनी भी बातें कहीं हैं वे सब मिट जाएंगी। जितनी कहानियां उनके बारे में हैं वे सब भी काल के गाल में समा जाएंगी। रहने वाला इतना ही है कि गांधी नामक इस आदमी ने इतने सारे विकल्प हमारे सामने रख दिये और कहा कि इनमें से चुनकर देखो।

आज पूरी दुनिया ऐसी जगह खड़ी हुई है जिसके सामने कोई विकल्प नहीं है। अभी मालूम नहीं कि जाएं किधर? एक लंबे समय से मंदी में फंसी हुई दुनिया जिसका विकल्प न तो पूंजीवाद के पास है और न साम्यवाद के पास है। न हमारे जैसे मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश के पास है। हम सब एक ही जगह आकर खड़े हो गए हैं जैसे अंधेरी गुफा में खड़े थे जहां कोई रोशनी नहीं है और सोच रहे हैं किधर जाएं?

जितने तरह के शास्त्र हैं- शिक्षा का शास्त्र, राजनीति का शास्त्र अर्थव्यवस्था का शास्त्र वे सब उभरती हुई विश्व परिस्थिति में कोई भूमिका नहीं निभा पा रहे। पूंजीवाद ऐसे विरोधाभास पर खड़ा है जिसके आगे कोई भविष्य का जवाब नहीं है। मंदी स्थाई रूप लेती जा रही है। उत्पादन कितना करोगे? कहीं जाकर तो रुकोगे। जो दुनिया में उत्पादन हो रहा है वह जाएगा कहाँ? वह अटक जाएगा।

उत्पादन को खरीददार चाहिए। खरीददार को इस्तेमाल चाहिए। इस्तेमाल के लिए पैसा चाहिये। तो सारे तरफ के जवाब बन्द होते जा रहे हैं। बनी हुई मान्यताएं अब काम नहीं कर रहीं हैं। आपको चीजों को नए तरह से व्यवस्थित करने की जरूरत है । इसलिए हॉकिन्स नामका वैज्ञानिक कहता है कि यू टर्न लेना पड़ेगा। और अगर यू टर्न लोगे तो गांधी नामक इस आदमी पर शायद कोई विकल्प मिल सकता है।

दरअसल गति का जी मनोविज्ञान है वह हमारी सम्बेदना को खत्म कर देता है। दूसरों की तकलीफ दूसरों का मरना अपने अंदर भी मरने का कुछ हिस्सा जोड़ देता है। जब तक मनुष्य की सम्बेदना बनी नहीं रहेगी तब तक हम इस गति की दौड़ में हम उन सभी चीजों को खो देंगे जो भविष्य के लिए बचाकर रखनी जरूरी है।

हम समझ नहीं पाते हैं कि ये सारी दौड़ ये सारी होड़ ये सारा कम्प्यूटराइजेशन इसके पीछे की पूरी मेथोडोलॉजी आदमी को एक मशीन में बदलने में लगा हुआ है। गांधीजी जब मशीन का विरोध करते हैं तो उस मशीन का नहीं जो चल रही है बल्कि उसका विरोध करते हैं जिससे तुम बदलने वाले हो।

गांघीजी की कल्पना का समाज ओशिनिक सर्किल का समाज है जिसके केंद्र में आदमी है। उसकी जरूरत और आवश्यकताएं समाज धीरे धीरे मिलकर पूरी करेगा। जैसे समुद्र में हम एक छोटा सा पत्थर फेंकते हैं उससे एक लहर पैदा होती है और फिर उससे दूसरी लहर पैदा होती है और धीरे धीरे एक समुद्री सर्किल बन कर किनारे तक फैल जाती है यही ओसनिक सर्किल गांधी निर्मित करना चाहते थे।

(यह लेख गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत के भाषण पर आधारित है।)