पहली पुण्यतिथि पर सुषमा स्वराज की याद के मायने

सुषमा स्वराज के बारे में एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अपनी भाषा और भाषणों से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया था। भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, विचारों में निष्ठा,अकाट्य तर्क और तथ्य, उनको एक लोकप्रिय वक्ता बना देते थे।

समय कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के निधन को भी देखते ही देखते एक साल पूरा हो गया। विगत 6 अगस्त को उनकी पहली पुण्यतिथि थी लेकिन राजनीति के दूसरे हंगामों के चलते देश को उन्हें याद करने का मौका ही नहीं मिल सका। सुषमा भाजपा की नेता जरूर थीं लेकिन उन्हें पार्टी के सीमित दायरों के बाहर भी जनता का पूरा प्यार और सम्मान मिला था। सुषमा स्वराज ने केंद्र के मंत्री, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की मुख्यमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में काम करने का अनुभव हासिल करने के साथ ही सरकार और संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभालने का काम भी बखूबी किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित राजग सरकार की विदेश मंत्री के रूप में काम करना एक तरह से एक मंत्री के रूप में किया गया उनका अंतिम कार्य था। 

सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य कारणों के चलते 2019 का लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान पहले ही कर दिया था। सुषमा भारत की संभवतः पहली ऐसी विदेश मंत्री थीं जिन्होंने विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हुए भी देश के आमजन के साथ सीधा संपर्क स्थापित किया था। आमतौर पर विदेश मंत्री के बारे में यह धारणा बना ली जाती है कि उसे विदेश के मामलों के अलावा देश के मामलों से किसी तरह का लेना देना नहीं होता। सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री की इस धारणा को तोड़ते हुए देश के नागरिकों को पासपोर्ट बनाने में आ रही दिक्कतों, वीजा की परेशानियों का समाधान करने में मदद करने के साथ ही विदेशों में फंसे भारतीयों की सकुशल देश वापसी और पड़ोसी देशों के गरीब नागरिकों को इलाज के लिए भारत का वीसा दिलवाने जैसे कामों में मदद कर विदेश मंत्री की छवि ही बदल दी थी। उनके निधन के बाद भारत के विदेश मंत्री फिर पुराने ही तौर तरीकों में व्यस्त हो गए।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री का कार्यभार संभालने वाली भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को उनकी पहली पुण्यतिथि पर याद करते हुए उनके पति स्वराज कौशल और बेटी बांसुरी स्वराज ने ट्विटर पर भावुक संदेश लिखे तो वहीं दूसरी तरफ उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सैयद अकबरुद्दीन ने भी उन्हें याद किया। उप राष्ट्रपति नायडू ने लिखा, ‘मैं अभी भी इस तथ्य को मानने में असमर्थ हूं कि उन्हें स्वर्ग गए एक साल का समय बीत गया है।’

सुषमा स्वराज के बारे में एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अपनी भाषा और भाषणों से पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया था। भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, विचारों में निष्ठा, अकाट्य तर्क और तथ्य, उनको एक लोकप्रिय वक्ता बना देते थे। उप राष्ट्रपति के शब्दों में ही कहें तो कहा जा सकता है कि ‘सुषमा जी की हिंदी सुनने और सभी के समझने लायक होती थी। उनके शब्दों का चयन प्रायः शुद्ध होता था फिर भी उनका भाषण इतना सहज और सरल लगता था कि श्रोता मंत्र मुग्ध हो कर सुनते थे। संस्कृत के प्रति उनका विशेष आग्रह होता, वे अपनी शपथ संस्कृत में ही लेती थी। 

हरियाणा की निवासी होने की वजह से हरियाणवी हिंदी पर उनका अधिकार होना तो स्वाभाविक था, लेकिन कर्नाटक में चुनाव लड़ते समय कन्नड़ भाषा में उनके धाराप्रवाह भाषण उनको सचमुच बहुभाषा-भाषी बनाते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी दिवंगत केंद्रीय मंत्री को याद करते हुए लिखा, ‘सुषमा जी को उनकी पहली पुण्यतिथि पर याद कर रहा हूं। उनके असामयिक और दुर्भाग्यपूर्ण निधन से कई लोग दुखी हुए हैं। उन्होंने निस्वार्थ भाव से भारत की सेवा की और वे विश्व मंच पर भारत के लिए एक मुखर आवाज थीं।’ 

सुषमा स्वराज के राजनीतिक करियर की शुरुआत तो आपातकाल के दौरान हो चुकी थी। वह पूरी तरह से राजनीति में तब आईं जब 1977 में वह हरियाणा से विधायक चुनी गईं। उस वक्त वह ताऊ चौधरी देवी लाल की सरकार में श्रम मंत्री बनीं थीं जो सबसे कम उम्र की मंत्री होने का रिकॉर्ड था। वह 25 साल की उम्र में ही मंत्री बन गई थीं। इसके बाद उनके नाम हरियाणा भाजपा की सबसे कम उम्र की अध्यक्ष बनने का रिकॉर्ड भी है। साल 1990 में सुषमा स्वराज पहली बार सांसद बनीं। गौरतलब है कि वह 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री इसके बाद साल 1998 में उन्हें दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई और वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।

हालांकि दिल्ली में उनकी सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई।1999 में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से चुनावी रण में उतारा गया। रणनीति थी विदेश बहू के सामने भारतीय बेटी को उतारना। यहां सुषमा स्वराज ने चुनाव नहीं जीत पाईं लेकिन उनके आत्मविश्वास और परिश्रम में कोई कमी नहीं हुई। इसके कुछ समय बाद वह राज्य सभा के लिए सांसद चुनी गईं और 2000 में बाजपेयी सरकार में एक बार फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्री की जिम्मेदारी मिली।

2004 में भाजपा की सरकर चली गई लेकिन इस दौरान सुषमा स्वराज का कद राष्ट्रीय नेताओं में काफी बढ़ चुका था। 2009 के चुनाव में वह भाजपा की प्रधानमंत्री पद की दावेदार बनीं। लेकिन कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने से वह नेता प्रतिपक्ष बनीं। 2014 तक नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद 2014 में जब एनडीए की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ आई तो सुषमा स्वराज विदेश मंत्री बनीं। बतौर विदेशमंत्री उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ऐसे किया कि उन्हें अब तक का सबसे सफल विदेश मंत्री माना जाता है।  

First Published on: August 8, 2020 7:51 AM
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