चलिए देर आए दुरूस्त आए। कहीं पर तो स्वीकार किया कि पिछले 70 सालों में शासन करने वाले गैर भाजपा सरकारों ने कुछ किया। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने बांग्लादेश के नेशनल डे प्रोग्राम में स्वीकार किया कि बांग्लादेश की आजादी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के प्रयास और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका सर्वविदित है। यह प्रधानमंत्री मोदी के पुराने स्टैंड से बिल्कुल अलग है, जिसमें वे पिछली सरकारों के तमाम कार्यों को बिल्कुल नजरअंदाज करते हुए कहते है कि पिछले पांच सालों में ही इस देश में सबकुछ हुआ है।
भारत में अपने कार्यक्रमों मे भाषण के दौरान मोदी यही कहते रहे है कि पिछले सत्तर सालों में इस मुल्क पर शासन करने वालों ने कुछ नहीं किया। लेकिन बीते कुछ समय में मोदी ने अपनी गलती में सुधार किया है। उन्होने हाल ही में पंडित जवाहर लाल नेहरू की भी तारीफ की थी। अब इंदिरा गांधी की तारीफ के बाद देशवासी उम्मीद करते है कि मोदी पिछली सरकारों दवारा किए गए कई कामों को स्वीकार करेंगे।
हालांकि अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी बांग्लादेश की आजादी में अपना योगदान भी बता गए। उन्होंने खुलासा किया कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समर्थन में भारत में हुए सत्याग्रह में उन्होंने भी भाग लिया था। वे भी जेल गए थे। प्रधानमंत्री के इस दावे के बाद सोशल मीडिया पर उनका मजाक भी उड़ाया जा रहा है। हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम का समर्थन जनसंघ ने किया था। बांग्लादेश की आजादी के समर्थन में जनसंघ ने कुछ कार्यक्रम भी किए थे।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि बांग्लादेश की आजादी का श्रेय जनसंघ के तत्कालीन नेताओं ने कांग्रेस की सरकार को दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी की तारीफ की थी। बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम में इंदिरा गांधी की भूमिका को देख अटल जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा तक कहा था।
जनसंघ दवारा बांग्लादेश की आजादी के समर्थन में किए गए कार्यक्रमों के प्रमाण के तौर पर सोशल मीडिया पर अखबारों की कटिंग भी घुमायी जा रही है। दरअसल इस बात पर कहीं कोई विवाद नही है कि बांग्लादेश की आजादी को लेकर भारत में राजनीतिक दलों में एकजुटता थी। जनसंघ भी कांग्रेस सरकार के साथ थी। नरेंद्र मोदी ने सत्याग्रह किया था और जेल गए थे इस पर जरूर विवाद हो सकता है।
नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे का विरोध बांग्लादेश के कटटरपथी संगठनों ने किया है। मोदी के दौरे का विरोध करने वालों पर पुलिस ने फायरिंग भी की है। इसमें चार लोगों की मौत हो गई है। हालांकि भारतीय मीडिया में विरोध की खबरों को दबाया गया है। लेकिन वैश्विक मीडिया ने इसे कवर किया है। निश्चित तौर पर यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। भारतीय कूटनीति को यह विचार करना होगा कि आखिर भारत से कहां गलती हुई है, जिस कारण भारतीय प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध बांग्लादेश में हुआ है। कहीं यह सीएए और एनआरसी का परिणाम तो नहीं है?
निश्चित तौर पर भारत के पूर्वी राज्यों से संबंधित कुछ बड़े फैसले बांग्लादेश को प्रभावित करते है। खासकर वे फैसले जिससे मुस्लिम समुदाय प्रभावित होते है। सीएए और एनआरसी का सीधा प्रभाव पूर्वी भारत की मुस्लिम आबादी पर पड़ी है। इसमें बांग्लादेशी मुसलमान भी शामिल है। सीएए और एनआरसी का सीधा प्रभाव शेख हसीना की राजनीति पर भी पड़ा है। शेख हसीना को घरेलू मोर्चे पर खासा विरोध का सामना करना पड़ा है।
भारत में सीएए और एनआरसी लागू करने के सरकारी फैसले के बाद सेक्यूलर शेख हसीना पर बांग्लादेश में कटटरपंथी संगठनों का हमला बढ़ा है। यही कारण है कि शेख हसीना ने घरेलू मोर्चे पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए चीन से नजदीकी बढायी है। चीन से नजदीकी बढाने का एक बड़ा कारण सीएए और एनआरसी भी है। इसलिए भारत को साउथ एशिया में अपने जियोप़ॉलिटिक्स में बड़े नुकसान से बचने के लिए सावधानी से कदम उठाना होगा। इसमें कोई शक नहीं शेख हसीना भारत की खास समर्थक रही है।
बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन में भारत की भूमिका को शेख हसीना नजरअंदाज नहीं कर सकती है। शेख हसीना दवारा जमात-ए-इस्लामी और खालिदा जिया जैसे भारत विरोधी गठबंधन पर सख्ती का एक कारण यह भी रहा है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है पिछले कुछ समय में शेख हसीना के आसपास चीन समर्थक ल़ॉबी भी मजबूत हो गई है।
यही कारण है कि पिछले कुछ समय में चीन का प्रभाव शेख हसीना पर देखा गया है। चीन ने बांग्लादेश में आर्थिक निवेश तेज कर दिया है जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। जब भारत के अंदर सीएए और एनआरसी को लेकर आंदोलन शुरू हुआ तो शेख हसीना की परेशानी बढ़ी। इसका लाभ चीन और पाकिस्तान जैसे देश ने उठाने की कोशिश की। शेख हसीना ने भी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की बात की।
बीते कुछ समय में शेख हसीना ने पाकिस्तान से संबंधों को बेहतर करने के संकेत दिए है। यही नहीं शेख हसीना ने पाकिस्तान से संबंधों को बेहतर करने के संकेत देते हुए दिसंबर 2020 में ढाका स्थिति पाकिस्तानी दूतावास के उच्चायुक्त को अपने आधिकारिक निवास पर बुलाया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने शेख हसीना को संदेश दिया था कि वे बांग्लादेश के विकास से प्रभावित है और अपने दूतावास के अधिकारियों को बांग्लादेश के विकास गाथा से सीखने को कहा है।
इससे पहले बांग्लादेश की सरकार ने कई युद अपराधियों को फांसी पर चढ़ाया था। 2016 और 2017 में पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में खासी तल्खी आ गई थी। क्योंकि शेख हसीना 1971 के मुक्ति संग्राम के युद अपराधियों को किसी भी कीमत पर बख्शने को तैयार नहीं थी। लेकिन पाकिस्तान ने वक्त का नजाकत समझा। सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर जब भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव हुआ तो पाकिस्तान ने इसका लाभ लेने की कोशिश की।