मानसून सत्र : झमाझम बारिश के बावजूद पेगासस की गर्मी ने बढ़ाया संसद का पारा


पेगासस जासूसी  मामले ने सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। मुद्दे का फायदा उठाते हुए विपक्ष के कई नेताओं ने इस मसले को उठाने के लिए नोटिस दिया। अब तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक, पेगासस साॅफ्टवेयर का इस्तेमाल कथित रूप से प्रमुख नेताओं एवं पत्रकारों का फोन टैप करने के लिए किया गया है। इसीलिए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट कहा कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है।



संसद और पेगासस दो अलग-अलग भाषाओं और देशों  के शब्द हैं। संसद भारत का और शुद्ध हिंदी भाषा का शब्द है, जिसका इस्तेमाल भारत की एक ऐसी शीर्ष नियामक संस्था के नाम के रूप में किया जाता है, जो कि एक केन्द्रीय विधायी निकाय है। मतलब यह कि संसद देश की वह संस्था है, जहां देश के अलग-अलग इलाकों से जीत कर आये सैकड़ों जनप्रतिनिधि राष्ट्र के कुशल संचालन के लिए न केवल विधान बनाते हैं, बल्कि नीतियां  भी बनाते हैं और उसके बाद एक कार्यकारी संस्था के रूप में सरकार राष्ट्रहित में उन कानूनों और विधान को लागू करती है।

लेकिन ऐसे में जब सरकार संविधान के दायरे में संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को ईमानदारी से लागू करने में असफल रहती है, तब देश का सुप्रीम कोर्ट सरकार को उसकी गलती की याद भी दिलाता रहता है। संसद के बाद दूसरा शब्द, जो आजकल बहुत चर्चा में है, वह है इजरायल का पेगासस। पेगासस के मायने क्या होते हैं, यह तो कोई भाषा वैज्ञानिक ही अच्छी तरह से बता पायेगा, लेकिन भारत में आजकल इसका इस्तेमाल जासूसी के जिस सन्दर्भ में हो रहा है, उसके मुताबिक पेगासस एक ऐसी स्पाइवेयर निर्माण कंपनी है, जिसके स्पाइवेयर का इस्तेमाल देश व दुनिया की सरकारें अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की जासूसी करने के काम में करती हैं।

दरअसल, यह स्पाइवेयर स्मार्ट मोबाइल फोन उपकरण के जरिये वांछित व्यक्ति से सम्बंधित तमाम सूचनाएं सरकार को उपलब्ध करा देता है। बात जब जासूसी की हो, तब यह तो समझ में आता है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था किसी प्रतिद्वंद्वी की जासूसी कराती है और यह सामान्य व्यवहार का ही अंग माना जाता है, लेकिन भारत के सन्दर्भ में पेगासस के उपकरण द्वारा कराई गई भारत सरकार की कथित जासूसी की कारवाई इसलिए चर्चा में आ गयी, क्योंकि इस जासूसी में सरकार के आलोचक राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के साथ ही कुछ ऐसे लोगों के नाम भी शामिल हैं, जो सरकारी पार्टी के थिंक टैंक कहे जाने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी गहरे से जुड़े हैं।

यही नहीं, ऐसे भी कई लोगों की जासूसी इस इजरायली उपकरण के माध्यम से करने की बात सामने आई है, जो पहले केंद्र की सरकार में मंत्री थे। इसके अलावा, केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कुछ ऐसे लोगों के नाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं, जो पहले भी मंत्री थे और आज भी हैं। कुछ नाम ऐसे भी हैं, जो पहले मंत्री नहीं थे, लेकिन मौजूदा मंत्रिमंडल में शामिल हैं। सूची लम्बी है और सभी के नाम देने का कोई फायदा भी नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इजरायल की एक कंपनी के सॉफ्टवेयर उपकरण ने भारत की संसद के माॅनसून सत्र के पहले ही दिन विगत सोमवार 19 जुलाई 2021 को इतना हंगामा खड़ा कर दिया कि संसद के दोनों सदनों की कार्रवाई उस दिन का पूरा कामकाज किये बिना अधबीच ही पूरे दिन के लिए स्थगित कर  देनी पड़ी।

इस बार संसद के मॉनसून सत्र का दैवीय संयोग भी कुछ ऐसा पड़ा था कि जिस दिन (19 जुलाई) संसद का यह सत्र शुरू होना था, उसके एक दिन पहले माॅनसून की पहली झमाझम बारिश भी देश की राजधानी समेत पूरे उत्तर भारत में हुई और संसद सत्र के पहले दिन भी ये माॅनसूनी बादल गरजते- बरसते ही रहे। आम तौर पर संसद के मॉनसून सत्र के दौरान ऐसे दैवीय संयोग बहुत कम ही देखने को मिलते हैं। ऐसा भी नहीं है कि माॅनसून सत्र के दौरान बारिश न होती हो, क्योंकि बारिश भी होती है, लेकिन सत्र की पूर्व संध्या पर स्वागत के अंदाज में शुरू हुई बारिश अगले दिन तक बदस्तूर बनी रहे, ऐसे संयोग अतीत में बहुत कम ही देखने को मिले हैं।

इस बारिश ने दिल्ली समेत पूरे भारत को उमस भरी दमघोंटू गर्मी से निजात जरूर दिलाई। पानी की फुहार के साथ आने वाली सुहानी बयार ने मौसम में थोड़ी ठंडक भी पैदा की, लेकिन संसद के दोनों सदनों का पारा इजरायली  पेगासस की गर्मी ने कुछ ज्यादा ही चढ़ा दिया था।  ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस पेगासस जासूसी  मामले ने सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। मुद्दे का फायदा उठाते हुए विपक्ष के कई नेताओं ने इस मसले को उठाने के लिए नोटिस दिया। अब तक प्राप्त जानकारी के मुताबिक, पेगासस साॅफ्टवेयर का इस्तेमाल कथित रूप से प्रमुख नेताओं एवं पत्रकारों का फोन टैप करने के लिए किया गया है। इसीलिए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट कहा कि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में है।

कई मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद सत्र के पहले दिन अपनी मंत्रिपरिषद के नए सदस्यों का परिचय भी संसद के दोनों सदनों में नहीं करवा पाए। भरात के संसदीय इतिहास में संभवतः ऐसा भी पहली बार ही हुआ होगा कि संसद के दोनों सदनों में किसी मुद्दे पर विपक्ष के हंगामे के चलते प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट के नए सदस्यों का परिचय न करवा सके हों और उनको मंत्रियों की सूची बगैर परिचय के सदन पटल पर रखनी पड़ी हो। माॅनसून की बारिश के दैवीय संयोग के साथ ही नए मंत्रियों की सूची सदन पटल पर रखने का यह संयोग भी इस बार संसद सत्र के दौरान देखने को मिला।

पेगासस और संसद जैसे शब्दों के सन्दर्भ में जब हम भारत और इजरायल के आपसी संबंधों की चर्चा करते हैं, तो एक तरह के खट्टे-मीठे अनुभवों का अहसास भी होता है। एक जमाना था, जब सोवियत संघ की मौजूदगी में दुनिया दो ध्रुवीय थी और भारत सोवियत खेमे का महत्वपूर्ण सदस्य हुआ करता था। तब भारत, अमेरिका का पिछलग्गू समझे जाने वाले इजरायल से अपनी दूरी बना कर रखना ही उचित समझता था।

ये बात अलग है कि तब भी भारत की दक्षिणपंथी पार्टियां अपने अमेरिका परस्त होने के कारण इजरायल की हमदर्द हुआ करती थीं। आज वक्त बदला है। ये पार्टियां भारत की सत्ता में हैं और इजरायल भारत की सत्ता विरोधी ताकतों के खिलाफ जासूसी करने की भूमिका में आ गया है। जब सदन में इस कथित जासूसी को लेकर हंगामा हो रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपनी बात कुछ इस तरह रखनी पड़ी थी कि विपक्ष के कुछ लोगों को यह रास नहीं आ रहा है कि दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग और महिला मंत्रियों का यहां परिचय कराया जाए। तब उन्होंने विपक्षी दलों के रवैये को महिला एवं दलित विरोधी मानसिकता  करार दिया था।

(लेखक दैनिक भास्कर, नोएडा संस्करण के संपादक हैं।)