
जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त होने के बाद नजरबंद किये गये फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अब नजरबंदी से बाहर आ चुके हैं। जब से ये दोनों नेता बाहर आये हैं तब से कुछ न कुछ बयान दे रहे हैं। कभी अलग अलग तो कभी साझा प्रेस कांफ्रेस करके। उनका ताजा बयान एक साझा प्रेस कांफ्रेस के जरिए आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि वो भाजपा के खिलाफ हैं, उन्हें भारत के खिलाफ न समझा जाए। अब्दुल्ला ने ये बयान उस मीटिंग के बाद दिया जो महबूबा मुफ्ती के घर पर आयोजित की गयी थी।
जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए समाप्त होने की अफवाहों के बीच बीते साल 2019 में फारुख अब्दुल्ला के घर पर एक बैठक हुई थी जिसमें नेशनल कांफ्रेस, पीपुल्स कांफ्रेस, पीडीपी, कांग्रेस और सीपीएम के नेता शामिल हुए थे। इस बैठक में तय हुआ था कि कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा लेकिन इस मीटिंग के अगले ही दिन पांच अगस्त को संसद से जम्मू कश्मीर में धारा 370 को समाप्त कर दिया गया।
जम्मू कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति के बाद कश्मीर के सभी प्रमुख नेताओं को तत्काल नजरबंद कर दिया गया। नजरबंदी का असर ये रहा कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 के प्रमुख प्रावधानों की समाप्ति के बाद भी जम्मू कश्मीर कमोबेश शांत रहा। लेकिन कुछ महीनों बाद ही पहले फारुख अब्दुल्ला, फिर ओमर अब्दुल्ला और सबसे आखिर में इसी महीने 13 अक्टूबर को महबूबा मुफ्ती की नजरबंदी समाप्त कर दी गयी। इन प्रमुख नेताओं या कुछ अन्य नेताओं की रिहाई भले हो गयी हो लेकिन अभी भी अलगाववादियों की नजरबंदी जारी है।
नजरबंदी समाप्त होने के बाद पहला विवादित बयान दिया फारुख अब्दुल्ला ने जब उन्होंने ये कहा कि “कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के लिए वो चीन की मदद भी लेने को तैयार हैं।” इस बयान पर बवाल मचा तो उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेस की ओर से सफाई दी गयी कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। लेकिन विवादित बयान अकेले फारुख अब्दुल्ला या उनके बेटे ओमर अब्दुल्ला ही नहीं दे रहे।
13 अक्टूबर की रात रिहा होने के बाद अगले ही दिन महबूबा मुफ्ती ने एक आडियो संदेश जारी करके कहा कि “दिल्ली दरबार ने गैर कानूनी, गैर लोकतांत्रिक और गैर कानूनी तरीके से हमसे छीन लिया, उसे वापस लेना होगा। बल्कि उसके साथ-साथ कश्मीर के मसले को हल करने के लिए जद्दोजहद जारी रखनी होगी, जिसके लिए हजारों लोगों ने अपनी जानें न्योछावर की। मैं मानती हूं कि यह रास्ता आसान नहीं है, मुझे यकीन है कि हौसले से यह दुश्वार रास्ता भी तय होगा। आज जब मुझे रिहा किया गया है, मैं चाहती हूं कि जम्मू-कश्मीर के जितने भी लोग देश की जेलों में बंद हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाए।’
महबूबा मुफ्ती यहां तक बोल गयीं कि जब तक कश्मीर में धारा 370 वापस नहीं हो जाता तब तक वो कश्मीर के झंडे के अलावा कोई झंडा नहीं पकड़ेंगी। निश्चित तौर पर फारुख अब्दुल्ला हों या महबूबा मुफ्ती उन्होंने जम्मू कश्मीर में धारा 370 में संशोधन को स्वीकार नहीं किया है। इसमें जहां फारुख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के बंटवारे को अस्वीकार करते हैं तो महबूबा मुफ्ती “कश्मीर समस्या” के समाधान को भी साथ में जोड़ रही है। इसीलिए दोनों जब 24 अक्टूबर को महबूबा मुफ्ती के निवास गुपकर रोड पर मिले तो “संघर्ष” की बात दोहरायी है।
ये संघर्ष न सिर्फ कश्मीर में धारा 370 के लिए होगा बल्कि इन दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए अपने आप को बचाये रखने का भी संघर्ष होगा। कश्मीर में अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने के लिए फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दोनों के लिए धारा 370 और 35ए मजबूत आधार दे रहे थे। इसके भरोसे वो अलगाववादियों का थोड़ा ही सही, मुकाबला कर लेते थे।
लेकिन एक झटके में दोनों प्रावधानों की समाप्ति ने इन दोनों ही राजनीतिक दलों से सामने अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। इसीलिए अब “कश्मीर समस्या” से अलग हटकर धारा 370 की बहाली के लिए आगे आये हैं। इसके लिए एक औपचारिक संगठन भी बना लिया गया है जिसके अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को बनाया गया है। सीपीएम के इकलौते विधायक युसुफ तारीगामी इस समूह के संयोजक बनाये गये हैं।
यह संघर्ष इन राजनीतिक दलों के राजनीतिक अस्तित्व के लिए भले ही महत्वपूर्ण हो लेकिन जम्मू कश्मीर के लिए ये एक सियासी संघर्ष बन पायेगा, इसमें संदेह है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त होने के बाद लद्दाख जम्मू कश्मीर से अलग हो चुका है। लद्दाख का जम्मू कश्मीर से ये अलगाव उसके लिए वरदान बनकर आया है।
लद्दाख के बीजेपी सांसद ने ही नहीं बल्कि जनता ने भी केन्द्र शासित प्रदेश बनने पर खुशी जताई है। जहां तक जम्मू का सवाल है तो जम्मू कश्मीर की अलगाववादी राजनीति के साथ न कल था और न आज है। 370 और 35ए की समाप्ति के बाद जम्मू में अब तक आठ लाख लोगों को निवास प्रमाणपत्र जारी हो चुका है। क्या ये आठ लाख लोग चाहेंगे कि 370 और 35ए समाप्त करके उनका स्थाई निवास प्रमाणपत्र उनसे दोबारा वापस ले लिया जाए?
वैसे भी इस समय जम्मू कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश है और उसे दोबारा पूर्ण राज्य बनाने में समय लगेगा। इसलिए गुपकर डिक्लेरेशन के नाम पर संघर्ष समिति बनाने से पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस को राजनीतिक अवसर भले दे दें लेकिन जम्मू कश्मीर अब साल भर में आगे की ओर जितनी छलांग लगा दी उसे वापस 5 अगस्त 2019 के पहले ले जाना मुश्किल ही नहीं असंभव है।
अच्छा होगा कि कश्मीर के राजनीतिक दल भी अब 370 की रट त्याग दें क्योंकि कश्मीर के दबाव समूहों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर ऐसे प्रावधान करवा लिये हैं जिससे कम से कम कश्मीर का जनसंख्या संतुलन नहीं बिगड़नेवाला और न ही कश्मीर की “सभ्यता और संस्कृति” को कोई खतरा होने वाला है।