सिर्फ मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं, एनडीए छोड़ किसानों के साथ आए अकाली दल

आखिर एकाएक क्या मजबूरी हो गई कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल मंत्रिमंडल से बाहर आ गई। क्योंकि कृषि क्षेत्र से संबंधित अध्यादेश तो नरेंद्र मोदी सरकार पहले ला चुकी थी। लेकिन हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा तब दिया जब कृषि क्षेत्र से संबंधित तीनों बिल लोकसभा में पास हो गए। हालांकि इससे संबंधित आर्डिनेंस तो सरकार पहले ही ला चुकी थी। फिर एकाएक अब क्यों हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दिया?

क्या अकाली दल को पंजाब में अपनी जमीन पूरी तरह से खिसकने का संदेश मिल गया? क्योंकि किसानों ने सुखबीर बादल के बादल गांव में उनके खिलाफ मोर्चा लगा रखा है। हालांकि हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया है। लेकिन केंद्र सरकार के प्रति अकाली दल की भाषा अभी भी डिफेंसिव है। मंत्रिमंडल से अपने एक सदस्य को वापस बुलाने के बाद भी अकाली दल केंद्र सरकार से टकराव लेने के मूड में नहीं है।

अकाली दल केंद्रीय मंत्रिमंडल से किसी भी कीमत पर नहीं निकलना चाहता था। लेकिन पंजाब की राजनीति ने अकाली दल को मंत्रिमंडल से निकलने को मजबूर किया। अगर वर्तमान परिस्थितियों में हरसिमरत कौर बादल मंत्रिमंडल से इस्तीफा नहीं देती तो पंजाब में अकाली दल की जमीन पूरी तरह से खिसक जाती। अकाली दल के जत्थेदार सुखबीर बादल को लगातार संदेश दे रहे थे कि गांवों में अब अकाली दल को डिफेंड करने में उन्हें मुश्किल आ रही है। किसान अकाली दल के बुरी तरह से खिलाफ हो चुके है। निचले कैडरों की सूचना के बाद बादल परिवार ने मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा दिलवाने का फैसला लिया। लेकिन इस्तीफे के बाद भी सवाल उठ रहे है।

अमरिंदर सिंह ने हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे को फिक्स मैच बताया है। दरअसल हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है। लेकिन अकाली दल अभी भी एनडीए का हिस्सा है। किसान मांग कर रहे है कि यदि अकाली दल किसानों का वास्तव में हितैषी दल है, तो शिवसेना की तर्ज पर एनडीए गठबंधन से बाहर निकले। अकाली दल पर एक और गंभीर सवाल उठाया जा रहा है। क्योंकि कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन अध्यादेशों की मंजूरी तो जून के पहले सप्ताह में दी गई थी। उस समय हरसिमरत कौर बादल कैबिनेट की सदस्य थी। उन्होंने उस समय कैबिनेट के सदस्य रहते आर्डिनेंस का विरोध क्यों नहीं किया ?

अकाली दल अजीब संकट में फंस गया है। अकाली दल को वर्तमान में प्रकाश सिंह बादल परिवार नियंत्रित करता है। बाकी क्षेत्रीए दलों के तर्ज पर प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर बादल, उनकी पत्नी हरसिमरत कौर बादल और हरसिमरत कौर बादल के भाई विक्रम सिंह मजिठिया ही पार्टी के सर्वेसर्वा है। उनके फैसले को कोई चुनौती देने वाला नहीं है। जो चुनौती देगा वो पार्टी से बाहर जाएगा। कुछ नेता चुनौती देने के चक्कर में पार्टी से बाहर गए भी।

लेकिन बादल परिवार के सामने अब अजीब संकट पैदा हो गया है। अगर कृषि क्षेत्र से संबंधित बिलों का बहुत ज्यादा विरोध बादल परिवार करेगा तो केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां इनके पीछे लग सकती है। इसका डर बादल परिवार को है। बादल परिवार जगनमोहन रेड्डी, ममता बनर्जी, उदव ठाकरे और अशोक गहलौत का हाल देख चुका है। बादल परिवार के करीबी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की राजनीति ही केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच ने खत्म कर दी।

किस तरह से उन्हें केंद्रीय जांच एजेंसियों ने इन नेताओं को घेरा इससे बादल परिवार वाकिफ है। ज्यादा विरोध की स्थिति में केंद्र सरकार बादल परिवार को भी घेरा जा सकती है, क्योंकि इस परिवार के होटल से लेकर परिवहन के क्षेत्र में कारोबार है। अकाली दल के नेता इस सच्चाई को स्वीकार करते है कि उन्हें परेशान करने के लिए इन्कम टैक्स और ईडी को पीछे लगाया जा सकता है। सुखबीर सिंह बादल के साले विक्रम मजिठिया से पहले भी ड्रग तस्करी के मामले में ईडी पूछताछ कर चुकी है।

लेकिन बादल परिवार के सामने दूसरा संकट और गंभीर है। अगर पंजाब की राजनीति में बादल परिवार को भविष्य सुरक्षित रखना है तो किसानों के हितों के लिए केंद्र से लड़ना होगा। नहीं तो अकाली दल का मुख्य वोट बैंक किसान हाथ से निकल जाएगा। अकाली दल वर्तमान में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में अकाली दल अप्रत्याशित रूप से पंजाब में विपक्षी दल भी नहीं रहा।

कांग्रेस सत्ता में आ गई। आम आदमी पार्टी विपक्ष में बैठ गई। अकाली दल तीसरे नंबर पर आ गया। अकाली दल के दो प्रमुख वोट बैंक सिख और किसान दोनों में आप ने सेंध लगाने की कोशिश की। दरअसल पंजाब में अकाली दल की राजनीति दिलचस्प है। क्योंकि पंजाब मे बहुसंख्यक किसान सिख है। वहीं बहुसंख्यक सिख किसान है। इसी वोट बैंक पर अकाली दल निर्भर करता है। जबकि इस वोट बैंक में कांग्रेस की भी हिस्सेदारी है। पिछले विधानसभा चुनाव में अकाली दल के सिख वोट बैंक में आम आदमी पार्टी ने भी सेंध लगायी।

अकाली दल के वोटरों का अकाली दल से मोहभंग हुआ है, इसमें कोई दो राय नहीं है। सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा और अकाली दल के बीच आंतरिक तालमेल के आऱोपों ने सिखों के बीच अकाली दल की साख गिरायी। वहीं अक्तूबर 2015 में अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार के कार्यकाल में पंजाब के बरगाड़ी में गुरुग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप के साथ बेअदबी ने अकाली दल की स्थिति और खराब की। बेअदबी के विरोध में लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी थी। इस फायरिंग में दो सिख नौजवान की मौत हो गई थी। इससे अकाली दल का वोटर ही अकाली दल से नाराज हुआ।

पंजाब की कांग्रेस सरकार कृषि क्षेत्र से संबंधित बिलों को लेकर अकाली दल को अच्छी तरह से घेरा है। कांग्रेस अकाली दल पर केंद्र से आंतरिक सौदेबाजी का आरोप लगा रही है। कांग्रेस के आरोपों से अकाली दल के वर्कर ग्रामीण इलाकों में रक्षात्मक हो गए है। वे अपने हाईकमान को बता रहे है कि गांवों में हालात खराब है, अकाली दल के किसान समर्थक भी अकाली दल से नाराज हो रहे है। दरअसल पंजाब में सरकारी मंडियां बहुत ही व्यवस्थित तरीके से काम करती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान और गेहूं की खरीद में पंजाब की सरकारी मंडियों का मुकाबला देश के दूसरे राज्यों की मंडियां नहीं कर सकती है। यही कारण है कि पंजाब के किसान और किसान संगठन मोदी सरकार के कृषि क्षेत्र से संबंधित बिलों का जोरदार विरोध कर रहे है।

 

 

 

First Published on: September 18, 2020 3:08 PM
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