संसद के पावस यानी मानसून सत्र को लेकर पिछले कई दिनों से चल रही अटकलों को विराम देते हुए केंद्र सरकार और संसद के दोनों सदनों के सचिवालयों ने परस्पर सहमति के आधार पर अंततः पावस सत्र की तिथियों का एलान कर ही दिया। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कोरोना महामारी से उपजी विपरीत और विषम परिस्थितियों में इस महीने की 14 तारीख यानी 14 सितम्बर से संसद का मानसून सत्र शुरू होने जा रहा है। विषम परिस्थितियों में होने वाले इस सत्र को “संसद का विषम काल” भी कहा जा सकता है। आमतौर पर संसद के कामकाज में प्रश्नकाल और शून्य काल का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है क्योंकि इन दोनों संसदीय नियमों के तहत सांसदों को क्रमशः प्रश्न काल के तहत विभिन्न विषयों जे जुड़े सवाल करने का अधिकार दिया जाता है और शून्य काल में सांसद तात्कालिक महत्व के ऐसे मुद्दों को सदन में उठा सकते हैं जो सदन के उस दिन के कामकाज (एजेंडा) का हिस्सा तो नहीं होते लेकिन इनसे कहीं न कहीं राष्ट्रीय और सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र से जुडी चिंताओं को आवाज मिलती है।
संसद की कारवाई शुरू होने पर सबसे पहले एक घंटे का प्रश्न काल होता है जिसमें उस दिन की कार्यवाही में शामिल सभी मंत्रालयों से जुड़े 20 मौखिक सवालों के जवाब सम्बंधित मंत्री सदन में देते हैं। इन मौखिक सवालों के लिखित जवाब भी सदन पटल पर रखे जाते हैं। इन मौखिक सवालों के साथ ही उस दिन की कार्यवाही में शामिल डेढ़ सौ से अधिक लिखित सवालों के लिखित जवाब भी सदन में रखने की व्यवस्था है। प्रश्नकाल में पूछे जाने वाले मौखिक सवालों का चयन लाटरी पद्धति से किया जाता है। प्रश्नकाल की समाप्ति के बाद राज्य सभा में सदन के सभापति और लोकसभा में लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति से शून्य काल के अंतर्गत लोक महत्व के अत्यंत जरूरी मुद्दों को सदन में उठाया जा सकता है।
इस बार संसद का यह सत्र इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस बार संसद सत्र की कार्यवाही में सांसदों को प्रश्नकाल और शून्य काल के अंतर्गत मौखिक सवाल पूछने और लोक महत्त्व के जरूरी मुद्दों को सदन में उठाने का मौका नहीं मिल पायेगा। अलबत्ता विशेष उल्लेख के नियम के तहत सांसद पहले से पूछी गई जानकारी जरूर हासिल कर पायेंगे। प्रश्नकाल और शून्य काल इस बार नहीं होंगे लेकिन सांसदों को उनके लिखित सवालों के जवाब लिखित रूप से उपलब्ध जरूर कराये जायेंगे। वैसे तो सरकार सांसदों द्वारा मांगी गई हर जानकारी को लिखित रूप में उपलब्ध कराती है चाहे ये जानकारी किसी भी संसदीय नियम के तहत पूछी गई हो लेकिन प्रशन काल में मौखिक सवाल-जवाब की कार्यवाही को इसलिए भी महत्वपूर्ण और उपयोगी माना जाता है क्योंकि इस दौरान न केवल प्रश्नकर्ता सांसद बल्कि सदन में मौजूद अन्य सांसद भी किसी सवाल के सम्बन्ध में अतिरिक्त जानकारी उस सवाल से जुड़े पूरक प्रश्न के माध्यम से पूछ सकते हैं।
इसीलिए प्रश्नकाल की कार्यवाही को संसद की जीवंत कार्यवाही भी कहा जाता है। इस बार समय की कमी और कम समय में अधिक से अधिक संसदीय कामकाज पूरा करने की गरज से मानसून सत्र में प्रश्न काल और शून्य काल की व्यवस्था नहीं की गई है। प्रश्न काल के तुरंत बाद ही शून्य काल की कार्यवाही का परंपरागत प्रावधान तो संसदीय कामकाज में अवश्य है लेकिन इसे किसी संसदीय नियम के अंतर्गत परिभाषित और वर्गीकृत नहीं किया गया है।
प्रसंगवश यह भी गौरतलब है कि कोरोना संकट के चलते संसद का पिछला सत्र (बजट सत्र) भी अधबीच स्थगित करना पड़ा था। इस वजह से भी तब कई मामलों पर सदन में चर्चा नहीं हो पायी थी और कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित नहीं हो सके थे। पिछले सत्र के बचे हुए कार्य और इस अवधि में वजूद में आये नए कामकाज को मिला कर संसद के पावस सत्र में सरकार को बहुत सारे काम पूरे करने हैं इसलिए प्रश्नकाल और शून्य काल को स्थगित कर सत्र का कामकाज संपन्न करने की योजना बनाई गई है।
संसद का यह सत्र 14 सितम्बर से शुरू हो कर इस महीने के अंतिम दिन तक चलेगा। पंद्रह दिन की यह अवधि इसलिए भी महत्वपूर्ण कही जा सकती है क्योंकि इसी अवधि में हर साल पूरे देश में हिंदी पखवाड़े का आयोजन भी किया जाता है। लिहाजा यह भी कह सकते हैं कि कोरोना काल में संसद का मानसून सत्र हिंदी पखवाड़े को समर्पित होगा। इस सत्र की खासियत इस रूप में भी देखी जा सकती है कि इस दौरान शनिवार और रविवार को साप्ताहिक अवकाश भी नहीं होगा और संसद के दोनों सदनों की कारवाई भी एक साथ नहीं होगी।
सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए लोकसभा का संचालन लोकसभा कक्ष के साथ ही राज्य सभा कक्ष और संसद भवन स्थित केन्द्रीय कक्ष में होगा इसलिए दोनों सदनों की कार्रवाई एक दिन में चार-चार घंटे के लिए सुनिश्चित की गई है। दोनों सदनों की बैठकों के बीच दो घंटे का गैप होगा। पहले दिन सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक लोकसभा की और बाद में तीन बजे से लेकर सात बजे तक राज्य सभा की बैठक होगी। शेष दिनों में सुबह के सत्र में राज्य सभा की और दोपहर बाद के सत्र में लोकसभा की बैठक आयोजित की जायेगी।
विपक्ष इस सत्र में प्रश्नकाल न होने को लेकर सरकार पर हमलावर है क्योंकि प्रश्नकाल, को संसदीय कामकाज की आत्मा माना जाता है। संसदीय कामकाज में इसी नियम के तहत पक्ष और प्रतिपक्ष का भेद भी समाप्त होता दिखाई देता है। तात्कालिक अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय महत्त्व के सवालों को लेकर विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के सांसद भी कई बार अपनी ही सरकार के कामकाज को कटघरे में खड़ा करते हुए दिखाई देते हैं।
इस सन्दर्भ में प्रश्नकाल का न होना एक चिंतनीय बात तो है लेकिन यहां यह भी समझना जरूरी होगा कि कोरोना संकट के इस दौर में कुछ अधिकारों का त्याग कर यदि संसदीय परंपरा को बचा कर रखने की कोई कोशिश की जा रही है तो उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। वैसे भी ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। संसदीय कामकाज के इतिहास पर नजर रखने वाले जानकारों की बात पर गौर करें तो साल 1962, 1975, 1991, 2004 और 2009 में अन्य वजहों से संसद सत्र की कारवाई प्रश्नकाल के बगैर ही संपन्न हुई थी। इधर संसदीय सचिवालयों से मिली ताजा जानकारी से भी यह पता चलता है कि पिछले पांच साल के दौरान भी विभिन्न कारणों से प्रश्नकाल में समय की साथ फीसदी बर्बादी हुई है।