देश के इतिहास और भूगोल को अच्छी तरह से जानने वालों को यह भी अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि लुटियंस की दिल्ली कहलाने वाली राष्ट्रीय राजधानी के जिस हिस्से में आज देश की संसद मौजूद है, आज से करीब एक सौ दस साल पहले वो जगह रायसीना हिल्स का ढलान ख़त्म होकर एक मैदाननुमा इलाका हुआ करता था जिसे आजकल विजय चौक कहा जाता है।
इसी विजय चौक के एक तरफ रायसीना हिल्स नामक पहाड़ी में तीन भवन हैं-उत्तरी छोर पर नार्थ ब्लाक, दक्षिणी छोर पर साउथ ब्लाक और बीच में राष्ट्रपति भवन। यही राष्ट्रपति भवन किसी जमाने में जब देश अंग्रेजों का गुलाम था, वायसराय हाउस कहलाता था। नार्थ ब्लाक के बाए तरफ ही एक तरफ रकाबगंज गुरुद्वारा, दूसरी तरफ आकाशवाणी भवन, तीसरी तरफ परिवहन भवन-रेड क्रॉस भवन और चौथी तरफ रेल भवन (रायसीना रोड) से घिरे हुए इलाके को ही संसद भवन परिसर नाम दिया गया है।
इस परिसर में संसद की एक गोलाकार इमारत के साथ ही एक संसदीय पुस्तकालय भवन और एक संसदीय सौंध भवन है। परिसर के अहाते में ही संसद भवन का केन्द्रीय कक्ष, लोक सभा और राज्य सभा कक्ष, संसदीय पुस्तकालय, लोकसभा और राज्य सभा टेलीविज़न। दोनों सदनों के सचिवालय, पोस्ट ऑफिस, बैंक एक हेल्थ सेंटर, एक औषधालय, गाड़ियों की पार्किंग, बाग़-बगीचे और खुला मैदान सभी कुछ है।
इसी संसद भवन परिसर में ही सांसदों के वाहनों की पार्किंग का एक गेट रेड क्रॉस रोड पर खुलता है। बस स्टॉप के पास वाला यह गेट आम तौर पर बंद ही रहता है। संसद मार्ग और रेड क्रॉस रोड के गोल चक्कर पर खुलने वाले संसद भवन के मुख्य प्रवेश मार्ग से थोड़ी दूरी पर स्थित इस बंद पड़े गेट को तभी खोला जाता है जब नगरपालिका की कूड़ा उठाने वाली गाडी को संसद भवन परिसर से कूड़ा लेने के लिए अन्दर आना पड़ता है।
कभी-कभी अपवाद मौकों पर भी कूड़े वाला यह गेट खुलता है। इस बार 10 दिसम्बर को ऐसा ही एक अपवाद मौका तब आया था जब इसी जगह एक नए संसद भवन के निर्माण के लिए भूमि पूजन और शिलान्यास का कार्यक्रम संपन्न किया था।
सरकार की तरफ से किये गए दावों पर भरोसा करें तो कहा जा सकता है कि इसी महीने इस भवन के निर्माण का कार्य भी शुरू हो जाएगा और दो साल से कम समय में ही संसद का नया भवन तैयार हो कर कम करना शुरू कर देगा। संसद का नया भवन आकार और स्वरुप में मौजूदा संसद भवन से कई गुना बड़ा, भव्य और आकर्षक होगा इसलिए भी यह कौतुहल का विषय बना हुआ है।
जाहिर है ऐसा सुन्दर और बड़ा भवन बनाने में सरकार को खरबों रूपया खर्च भी करना पड़ेगा। यहीं से एक सवाल कई लोगों ने उठा दिया है कि जब संसद के मौजूदा भवन से संवैधानिक निकाय की बैठकों का काम हो सकता है तब खरबों रुपये के खर्च से नया भवन बनाने की जल्दी क्या है?
सरकारी धन के खर्च के साथ ही एक बात और भी है की संसद के नए भवन के लिए जो नक्शा तैयार किया गया है उसके मुताबिक़ काम होने के लिए रेलभवन से लेकर शास्त्री भवन, कृषि भवन, जवाहर भवन, उद्योग भवन और निर्माण भवन जैसे अनेक मंत्रालयों के मौजूदा भवनों के साथ ही रफ़ी मार्ग पर स्थित वायु भवन से विज्ञान भवन के बीच में पड़ने वाले सभी भवनों को जमीदोज कर दिया जाएगा।
इन्हीं भवनों में एक भारत के उपराष्ट्रपति का आवास भी है। उपराष्ट्रपति भवन के बगल में ही जनपथ मार्ग में जवाहर भवन भी नए संसद भवन के बनने पर जमीदोज होगा। इस भवन में विदेश मंत्रालय का ऑफिस है। अभी कुछ साल पहले ही जब निरुपमा राव इस देश की विदेश सचिव थीं तभी जवाहर भवन वजूद में आया था।
भारत के विदेश मंत्री और विदेश सचिव को छोड़ कर विदेश मंत्रालय के सभी वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यालय इसी भवन में हैं। जवाहर भवन की जरूरत इसलिए महसूस की गयी थी क्योंकि इस मंत्रालय के सभी कार्यालय एक जगह पर नहीं थे।
विदेश मंत्रालय के कुछ कार्यालय साउथ ब्लाक में तो कुछ शास्त्री भवन में, कुछ आरके पुरम में तो कुछ भीकाजी कामा प्लेस में तो कुछ यशवंत प्लेस स्थित अकबर होटल और कुछ क़ुतुब एन्क्लेव स्थित ऑफिस काम्प्लेक्स में अवस्थित थे। इनमें से ज्यादातर कार्यालय जवाहर भवन में स्थानांतरित किये गए हैं।
विदेश मंत्रालय के मुख्यालय साउथ ब्लाक के पास होने की वजह से भी जवाहर भवन स्थित विदेश मंत्रालय सुविधाजनक माना जाता है। इस भवन का आर्किटेक्ट भी सुन्दर है और राष्ट्रीय संग्रहालय के एकदम सामने होने की वजह से जवाहर भवन की स्थिति को समझने में किसी को दिक्कत नहीं होती नया संसद भवन बनेगा और ये तमाम भवन जो अभी किसी तरह से जीर्ण-शीर्ण स्थिति में नहीं पहुंचे हैं और इन भवनों का नए संसद भवन से कोई रिश्ता भी नहीं होगा, जो केवल इसलिए तोड़ दिए जायेंगे क्योंकि ये भवन उस नए कथित सेंट्रल विस्टा का हिस्सा नहीं हैं जो नए संसद भवन के निर्माण का आधार बनने जा रहा है।
इस तरह के कई विवादों के चलते ही सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल नए संसद भवन के निर्माण कार्य पर रोक लगा रखी है लेकिन जब शिलान्यास हो गया है तो देर सबेर निर्माण कार्य शुरू भी होगा और नया संसद भवन बनेगा भी। नया संसद भवन बने, उसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।
लेकिन साथ ही एक सवाल यह भी है कि जब पूरी दुनिया कोरोना के आतंक से जूझ रही हो और इसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चुकी हो तब ही इतने बड़े खर्च से नए संसद भवन के निर्माण की जरूरत क्यों महसूस की गई और प्राथमिकता में रख कर इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। बहरहाल सवाल कई हैं और समय आने पर इनके जवाब भी मिल ही जायेंगे।
हमारे संसद भवन और इसके आसपास बने लूटियंस जोन के कई भवनों को बने अभी सौ साल नहीं हुए हैं। दुनिया यूरोपीय देशों में दो सौ साल पुराने भवनों में काम हो रहा है तो फिर हमको नए भवन की जरूरत क्यों हुए। संसद बहन की निर्माण कला इतनी लाजवाब है की वक़्त की जरूरत के हिसाब से मौजूदा भवन का विस्तार भी हो सकता है।
जितना पैसा खर्च नया संसद भवन बनाया जा रहा है उसका मात्र बीसवां हिस्सा खर्च कर पुराने संसद भवन का न केवल आज की जरूरतों के हिसाब से विस्तार किया जा सकता है बल्कि इसे और मजबूत भी बनाया जा सकता है।
इसी बीच यह भी सुना गया है किइस साल कोरोना की वजह से संसद का शीतकालीन सत्र आयोजित नहीं किया जाएगा। कायदे में तो नवम्बर अधबीच से शीतकालीन सत्र शुरू हो जाना चाहिए था और इस महीने की 25 तारीख यानी क्रिसमस के त्यौहार से पहले शीतकालीन सत्र का अवसान हो जाना चाहिए था लेकिन अब यह सत्र आयोजित न करने की खबर पुष्ट हो चुकी है कि सरकार संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने के बजाय सीधे ही बजट सत्र की तैयारी कर रही है।
बजट सत्र अगले साल जनवरी के महीने के अंतिम सप्ताह में संसद का बजट सत्र बुलाया जा सकता है। सरकार इस बार संसद के शीतकालीन सत्र से शायद इसलिए भी बचना चाह रही है क्योंकि दिल्ली की सीमा पर किसान धरने पर बैठे हैं। अभी तो किसानों की समस्याओं पर सरकार कुछ न बोलने को स्वतंत्र है लेकिन संसद में इस मुद्दे पर विपक्ष द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब तो देने ही पड़ेंगे।
सरकार को उम्मीद है की संसद का बजट सत्र आने तक किसान आन्दोलन समाप्त हो जाएगा और सरकार बजट के मामलों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर पायेगी।