अयोध्या में राम का भव्य मंदिर तो अब बनना ही है। बुधवार पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में एक कदम आगे बढ़ कर भूमि पूजन करेंगे, जिसके बाद से ही राममंदिर बनाने का काम तेजी से शुरू हो जाएगा। एक विचारणीय मुद्दा यह भी है कि अयोध्या में राम का भव्य मंदिर कोई ऐरा- गैरा ठेकेदार नहीं बनवा रहा है बल्कि यह काम निजी क्षेत्र की नामी बहुराष्ट्रीय भवन निर्माण कंपनी लार्सन एंड टुब्रो को दिया गया है। मंदिर के निर्माण का काम चाहे इस कंपनी को दिया गया हो जिन संस्थाओं और संगठनों ने मंदिर का ताला खुलवाये जाने से लेकर अब तक इस काम को आगे बढ़ाया है उनकी भूमिका मंदिर के निर्माण से लेकर उसकी स्थापना और मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने तक महत्वपूर्ण बनी ही रहेगी।
ऐसी ही एक संस्था है राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट। अयोध्या के राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद मामले को लेकर कई दशक तक देश की कई अदालतों में चले फैसले के बाद जब कुछ महीने पहले ही देश की सर्वोच्च अदालत ने इस बाबत मंदिर के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस संस्था का गठन किया गया था। यह संस्था एक तरह से मंदिर के सम्पूर्ण प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होगी। इस दृष्टि से इस ट्रस्ट में शामिल सदस्यों की भूमिका भी इस काम में अहम मानी जायेगी।
भूमिपूजन कार्यक्रम की अयोध्या में बड़े जोर शोर से तैयारियां चल रही हैं और राम की मिथकीय जन्म स्थली अयोध्या को बहुत ही खूबसूरत तरीके से सजाया और संवारा भी जा रहा है ये कोरोना संकट का दौर है कोरोना से बचाव के तात्कालिक नियमों का पालन करने के क्रम में इस भूमिपूजन कार्यक्रम में साधु-संतों समेत कुल 200 अतिथियों को शामिल करने की अनुमति दी गई है।
कल्पना की जा सकती है कि अगर कोरोना संकट की वजह से इतनी पाबंदियां न लगी होती तो इस मौके पर अयोध्या में तिल रखने की भी जगह नहीं होती। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन और शिलान्यास करने का काम पहली बार नहीं हो रहा है। 1985-86 के दौर में फैजाबाद की एक जिला अदालत द्वारा विवादास्पद इमारत के ताले खोले जाने की घटना के बाद से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाला यह दूसरा भूमिपूजन और शिलान्यास कार्यक्रम है।
इससे पहले 9 नवम्बर 1989 को भी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने अयोध्या में ऐसे कार्यक्रम के आयोजन की स्वीकृति दी थी। तब और आज में सबसे बड़ा फर्क यह है कि तब सरकार मंदिर निर्माण की प्रक्रिया में किसी भी तरह शामिल नहीं थी, जबकि इस बार तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कर रहे हैं। हालांकि, राम मंदिर का शिलान्यास अयोध्या में तीस साल पहले राजीव गांधी सरकार की अनुमति से 9 नवंबर 1989 को किया गया। शिलान्यास में पहली ईंट दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने रखी थी।
प्रसंगवश यह भी उल्लेखनीय है कि राम मंदिर शिलान्यास से पहले पूरे देश में विश्व हिंदू परिषद ने इसके लिए अभियान चला रखा था। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू एकजुट होने लगे थे। शिलान्यास के लिए पूरे देश में यात्राएं आयोजित की गईं। राम मंदिर शिलान्यास के लिए ही आठ अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया था। सन 1986 में राम मंदिर का ताला खुला, जिससे मानो बरसों पुराने ‘मंदिर-मस्जिद विवाद’ को हवा मिल गई। वीएचपी के नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई, 1989 को फैजाबाद की एक अदालत में राम के मित्र के रूप में दावा दायर किया। इस दावा में कहा गया था कि राम और जन्म स्थान दोनों पूज्य हैं। वही इस संपत्ति के मालिक हैं।
राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में जो लहर थी, उसने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर राजनीतिक दबाव बना दिया था। देश में इसी साल आम चुनाव होने थे। शाहबानो केस को लेकर कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लग रहा था और दूसरी ओर बीजेपी राममंदिर आंदोलन को धार देने में जुटी हुई थी। ऐसे में राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि उनकी छवि हिंदू विरोधी नेता के रूप में उभरे। माना जाता है कि हिंदू समुदाय को लुभाने के लिए राजीव गांधी ने 1989 में हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी थी।
राजीव गांधी द्वारा शिलान्यास की मंजूरी दिए जाने के बाद वीएचपी नेताओं ने मंदिर निर्माण के लिए अपना आंदोलन और तेज कर दिया। एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चरम पर था, उधर विहिप के आह्वान पर देश भर से लाखों श्रद्धालु गांव-गांव से ईंट लेकर अयोध्या पहुंचने लगे थे। इस तरह से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने वीएचपी के नेताओं के साथ एक मीटिंग की, जिसमें तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह भी शामिल थे। हालांकि, नारायण दत्त तिवारी शिलान्यास के फैसले से सहमत नहीं थे। इसलिए राजीव गांधी ने 8 नवंबर की सुबह बूटा सिंह को लखनऊ भेजा था।बहरहाल, तमाम रस्साकशी के बीच शिलान्यास के लिए 9 नवंबर 1989 को बाकायदा मुर्हूत तय हुआ। इसके बाद विधि-विधान से भूमि का पूजन और शिलान्यास किया गया। भूमि पूजन स्वामी वामदेव ने किया। वास्तु पूजा पंडित महादेव भट्ट और पंडित अयोध्या प्रसाद ने करवाई। खुदाई की शुरुआत गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ ने फावड़ा चलाकर की। इसके बाद शिलान्यास की पहली शिला बिहार के दलित युवक कामेश्वर चौपाल के हाथों रखी गई।