लो आ गया राफेल और भारतीय वायुसेना में शामिल

वायु सैनिकों की इस टुकड़ी द्वारा एक समारोह में इन विमानों की औपचारिक प्राप्ति के बाद इन विमानों को भारतीय में वायुसेना में शामिल कर लिया गया। इसी कड़ी में राफेल के पांच अन्य विमानों की दूसरी खेप भी जल्द ही भारत पहुंचने वाली है।

हां ना, हां ना करते-करते आखिर राफेल भारत पहुंच ही गया। फ्रांस की लड़ाकू विमान बनाने वाली एक कंपनी के साथ हुए करार के तहत भारत को इस कंपनी ने 36 राफेल विमान देने हैं। इसी सौदे की पहली खेप के तहत पांच राफेल लड़ाकू विमानों ने विगत सोमवार 27 जुलाई 2020 को फ्रांस के बंदरगाह शहर बोर्डेऑस्क के मैरीग्नेक वायुसेना अड्डे से भारत के लिए उड़ान भरी थी और रास्ते में ही संयुक्त अरब अमीरात में हवा में उड़ते-उड़ते ही इन विमानों में बगैर रुके ईधन भी भरा गया था और बुधवार 29 जुलाई को बहुचर्चित राफेल विमानों का यह पहला जत्था भारत के अंबाला वायुसेना अड्डे पर पहुंच ही गया। इन विमानों के स्वागत के लिए भारतीय वायुसेना ने अपने अम्बाला हवाई अड्डे में विशेष तैयारियां की थी। इन्हीं तैयारियों के तहत ही राफेल विमानों के भारत भूमि में अवतरित होने से पहले ही वायुसेना प्रमुख सहित वरिष्ठ वायुसेना अधिकारियों की एक टुकड़ी वहां पहुंच चुकी थी। 

वायु सैनिकों की इस टुकड़ी द्वारा एक समारोह में इन विमानों की औपचारिक प्राप्ति के बाद इन विमानों को भारतीय में वायुसेना में शामिल कर लिया गया। इसी कड़ी में राफेल के पांच अन्य विमानों की दूसरी खेप भी जल्द ही भारत पहुंचने वाली है। राफेल एक विशेष तरह का विमान है इसलिए इसके हवाई अड्डे में उतरने से लेकर रख रखाव और उड़ान भरने तक के तमाम इंतजाम भी विशेष रूप से करने पड़ते हैं और इस काम में अतिरिक्त खर्च की भी जरूरत होती है। यही कारण है कि इस काम के लिए फ्रांस की रफाल बनाने वाली कंपनी, दसॉ ने 227 करोड़ रूपये की लागत से हमारे एयरबेस में मूलभूत सुविधाएं तैयार की हैं, जिसमें विमानों के लिए रनवे, पाक्रिंग के लिए हैंगर और ट्रैनिंग के लिए सिम्युलेटर आदि सुविधाएं  शामिल हैं।

भारत ने 23 सितंबर 2016 को फ्रांसीसी एरोस्पेस कंपनी दसॉल्ट एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 59,000 करोड़ रुपए का सौदा किया था। 36 राफेल युद्धक विमानों को फ्रांस से खरीदने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने इस आशय एक की घोषणा अप्रैल 2015 में की थी। इस समझौते पर एक साल से अधिक समय के बाद हस्ताक्षर किए गए थे। राफेल तरह -तरह की खूबियों वाला एक उच्च कोटि का लड़ाकू विमान है।

भारतीय वायुसेना को इस समय ऐसे विमान की सख्त जरूरत भी है। कई दशक से वायुसेना के बड़े में कोई नया जहाज शामिल भी नहीं किया गया है इसलिए भी राफेल का भारतीय वायुसेना का हिस्सा बनना एक स्वागत योग्य कदम ही कहा जाएगा। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि देश की प्रतिरक्षा से जुड़े उच्च गुणवत्ता वाले ऐसे किसी उपकरण, विमान या सामान की खरीद भारत में राजनीतिक विवाद का कारण बन जाती है। साढ़े तीन दशक पहले ऐसा ही एक विवाद भारतीय थल सेना के लिए बोफोर्स तोप खरीदने के समय भी हुआ था। उस समय देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी वही थी जो आज देश की केंद्र  और अनेक राज्यों की सरकार चला रही है। बोफोर्स तोप सौदे के लिए जिस पार्टी की सरकार ने उस वक़्त दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये थे वो कांग्रेस पार्टी आज विपक्ष की प्रमुख पार्टी है। याद रहे कि बोफोर्स सौदे में हुई कथित अनियमितताओं के कारण ही राजीव गांधी को 1989 में अपनी सरकार से बेदखल होना पड़ा था। उसके बाद जितनी भी सरकारें आयीं सभी ने बोफोर्स सौदे की जांच के नाम पर बहुत कुछ किया लेकिन घपला कहीं साबित नहीं हो सका। 

इसके विपरीत 1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में देश को कारगिल युद्ध का सामना करना पड़ा था तब उसी बोफोर्स तोप ने अपनी प्रमाणिकता स्थापित कर दी थी। इसी तरह का विवाद राफेल विमान की खरीद के समय भी हुआ लेकिन तमाम तरह के विवाद के बावजूद राफेल डील पक्की हुई और आज विमानों की पहली खेप का आगमन भी हो गया। लगता है जिस तरह बोफोर्स तोप ने पाकिस्तान के उकसाने पर हुए युद्ध रूपी कारगिल हमले में अपनी श्रेष्ठता प्रतिपादित कर दी थी, उसी तरह राफेल विमान चीन के साथ सीमा विवाद निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगा। शायद इसीलिए इस विमान की तैनाती के लिए वायुसेना के अम्बाला हवाई अड्डे को उपयुक्त स्थान माना गया है क्योंकि इस हवाई अड्डे से चीन और पाकिस्तान दोनों की सीमाएं लगभग सामान दूरी पर हैं और भारतीय वायुसेना का यह हवाई अड्डा दिल्ली के भी करीब है।

राफेल, पांचवीं पीढ़ी का एक ऐसा लड़ाकू विमान है, जिसमें राडार से बच निकलने की युक्ति है। इससे भारतीय वायुसेना की गतिविधियों में आमूल चूल बदलाव होगा क्योंकि वायुसेना के पास अब तक मिराज-2000 और सुखोई-30 एमकेआई टाइप के जो जहाज हैं वो तीसरी या चौथी पीढ़ी के विमान हैं। राफेल की अधिकतम गति 2,130 किमी/घंटा है और इसकी मारक क्षमता 3700 किमी तक है।

राफेल बहुत ऊंचाई वाले और लेह जैसे ठन्डे एयरबेस से भी उड़ान भर सकता है। 24,500 किलो का भार उठाने में सक्षम यह विमान लगातार 60 घंटे की अतिरिक्त उड़ान भरने की गारंटी भी देता है। संभवतः इसकी इसी क्षमता की पुष्टि के लिए राफेल के पांच विमानों की पहली खेप ने फ़्रांस से भारत तक की उड़ान में कोई ब्रेक नहीं लिया। दो इंजन वाला यह बहु उद्देश्यीय लड़ाकू विमान परमाणु आयुध का इस्तेमाल करने में भी सक्षम है।यह हवा से  हवा में और हवा से जमीन पर भी  हमले कर सकता है। 

इस विमान में 150 किमी की बियोंड विज़ुअल रेंज मिसाइल,हवा से जमीन पर मार वाली स्कैल्प मिसाइल है जिसकी रेंज 300 किमी है इस विमान में हथियारों के भंडारण की 6 महीने की गारंटी होने के साथ ही अत्याधुनिक हथियारों से लैस इस लड़ाकू विमान में जेट के साथ मेटेअर मिसाइल भी है। यह विमान 1 मिनट में 60,000 फ़ुट की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। 24,500 किलोग्राम वजन वाला राफेल एयरक्राफ्ट 9500 किलोग्राम भार उठाने में सक्षम है। इसकी अधिकतम रफ्तार 1389 किमी/घंटा है। एक बार उड़ान भरने के बाद 3700 किमी तक का सफर तय कर सकता है।

First Published on: July 30, 2020 4:41 AM
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