सात महीने से जारी कोरोना का आतंक ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। हर रोज इसको लेकर कोई नया खुलासा हो जाता है। कभी अपवाद स्वरुप ही कोई खुलासे ऐसे होते हैं जिनसे कोरोना के ख़त्म होने की कुछ उम्मीद बनती दिखाई देती है लेकिन अगले ही पल उस अवधारणा का प्रतिकार करती हुई ऐसी अवधारणा की घोषणा हो जाती है जो राहत की रही-सही कमर भी पूरी तरह तोड़ देती है। मसलन पहले कहा जा था कोरोना का वायरस हवा में नहीं फैलता यानी वायुमंडल में कोरोना का संक्रमण नहीं होता, अब कहा जा रहा है कि हवा में भी कोरोना का संक्रमण होता है।
पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हवा में संक्रमण के ऐसे वैज्ञानिक दावों को निराधार बताया था अब बीमार और बीमारों का ध्यान रखने वाली दुनिया की यह सबसे बड़ी संस्था भी पूरी तरह मान चुकी है कि वायुमंडल से भी कोरोना का संक्रमण हो रहा है। इसी तरह कुछ समय पहले तक यह भी कहा जा रहा था कि अगस्त के अंतिम सप्ताह या फिर सितम्बर के पहले सप्ताह से कोविड -19 का असर धीरे-धीरे कम होने लगेगा और उसके बाद इसके आतंक से मुक्ति भी मिल जायेगी लेकिन इधर एक नई वैज्ञानिक चेतावनी ने आमजन में दहशत फैला दी है कि सर्दियों के मौसम में कोविड का कहर और तेजी से फैलेगा।
वैज्ञानिक चेतावनी तो यह भी कहती है कि सर्दियों में इसका रूप इतना भयंकर भी हो सकता है कि भारत जैसे देश में हर एक दिन दो लाख 80 हजार लोग इसका शिकार हो सकते हैं। अभी यह माना जा रहा है कि कोरोना का एक मरीज औसतन दो और लोगों को इसका शिकार बना रहा है। ऐसे में कुछ स्वाभाविक सवाल भी खड़े होते हैं। कोरोना काल में अनेक ऐसे उदाहरण भी सामने आये हैं जा यह देखने को मिला कि एक परिवार में अगर किसी एक व्यक्ति को कोरोना हो भी गया तो परिवार के दूसरे सदस्य उसके प्रकोप से बच भी गए, ये उदाहरण कुछ सवाल भी खड़े करते हैं और सवालों का जवाब भी देते हैं।
कोरोना को लेकर डरावनी चेतावनी देने वाले सवालों के जवाब भी हमें इन्ही उदाहरणों से मिल जाते हैं। मसलन जब यह कहा जाता है कि कोरोना हवा में भी फ़ैल सकता है तब यह जवाब भी साथ-साथ दे दिया जाता है कि हवा में कोरोना का वायरस अस्थायी होता है और इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इसी तरह जब एक दिन में ढाई लाख से अधिक लोगों के संक्रमित होने की बात कही जाती है तब साथ में यह बात भी जोड़ दी जाती है कि लोगों के संक्रमित होने और संक्रमितों में सक्रिय मरीज बनाने वालों में फर्क है। संक्रमितों की संख्या तो कई गुना ज्यादा हो सकती है लेकिन जरूरी नहीं कि सभी संक्रमित सक्रिय भी हों।
संक्रमितों में 60 फीसदी लोग एक पखवाड़े में ठीक भी हो जाते हैं। इसलिए बड़ी तादाद में लोगों का संक्रमित होना भी खतरनाक नहीं कहा जा सकता। बहरहाल! कोरोना को लेकर आज की तारीख में जो कुछ कहा जा रहा, वो चाहे बहुत खतरनाक हो भी या नहीं भी लेकिन इसका सच जानना जरूरी है कि आखिर ये अवधारणायें हैं क्या? सबसे पहले बात हवा से कोरोना के संक्रमण की। यह तथ्य नया है लेकिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जब तक यह माना जा रहा था कि हवा से कोरोना का संक्रमण नहीं होता तब तक इतना इत्मीनान था कि अगर सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों को अमल में लाया जाता रहेगा तब तक कोरोना से बचने की उम्मीद की जा सकती है।
लेकिन अब ऐसा नहीं है, लाख बचाव करने के बावजूद अगर कोरोना वायरस के कण आपके आसपास के वातावरण में मौजूद हैं तो उनका असर आपको भी हो सकता है। इस तरह कोई भी इंसान सामुदायिक संक्रमण का शिकार हो सकता है। किसी भी तरह के संक्रामक रोग में सामुदायिक संक्रमण सबसे खतरनाक तत्व माना जाता है। कोरोना के सन्दर्भ मरीं दुनिया अभी तक इस तत्व के खतरे से बची हुई थी अब यह खतरा भी बढ़ गया है। आफत के बीच राहत की बात यह है कि कोरोना का वायरस स्थायी रूप से हवा में बना नहीं रहता इसलिए इससे घबराने की भी कोई जरूरत नहीं है।
भारतीय वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है कि कोरोना का वायरस हवा में हर जगह मौजूद भी नहीं रहता इसलिए भी डरने का कोई कारण नहीं बनता। सवाल है कि हवा में कोरोना वायरस के संक्रमण का मतलब आखिर क्या है? वैज्ञानिकों की राय में जब किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या बोलने के कारण उसके मुंह से निकलने वाली थूक या लार की कुछ बूँदें हवा में फ़ैल जाती हैं जो वातावरण को संक्रमित कर सकती हैं। इसलिए बाहर रहने वाले हर व्यक्ति को देर तक मास्क पहना जरूरी होगा।
कोरोना के हवाई संक्रमण से बचने के और तरीके भी हैं। सबसे बड़ा तरीका यही है कि भीड़ भाड़ वाले इलाकों में जाने से परहेज करें। इसके साथ ही उन इलाकों में भी बिलकुल न जाएं जो हवादार न हों। एक अध्ययन के मुताबिक़ मीट की दुकान, पैकेजिंग प्लांट, भीड़ भाड़ वाले चर्च, मंदिर मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल, बंद रैली स्थल और वातानुकूलित रेस्टोरेंट जैसी जगहों में इसका वायु संक्रमण तेजी से होता है। ऐसे स्थलों में न जाने की सलाह इसलिए भी दी जाती है क्योंकि वैज्ञानिकों के मुताबिक इंसान की छींक से निकलने वाली कोरोना वायरस की बूंदे एक बड़े कमरे जितने क्षेत्र में फ़ैल कर दूसरे लोगों को भी संक्रमित कर सकती हैं।
इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि बंद जगहों में वायरस अधिक समय तक ठहरता है और अधिक लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसके विपरीत खुली हवा में इसके कण अधिक समय तह ठहरे नहीं रहते इसलिए मास्क लगा कर बचाव की पूरी संभावना बनी रहती है। कुछ मान्यताएं ऐसी भी हें कि कोरोना वायरस के कण बिना हवा के भी 8से 13 फूट की दूरी तय कर संक्रमण का कारण बन सकते हैं। इस वैज्ञानिक मान्यता के मुताबिक़ 50 फीसदी नमी और 29 डिग्री के तापमान में कोरोना के कण हवा में घुल भी सकते हैं।
बेंगलुरु इन्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के साथ ही कनाडा और लास एंजेल्स की एक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम ने अपनी नई खोज के बाद यह दावा किया है। इस दावे के साथ ही सर्दियों के मौसम में कोरोना के संक्रमण के बढ़ने का नया खतरा सामने दिखाई देने लगा है। इस सम्बन्ध में सबसे अधिक खतरा भारत में ही बताया गया है।
अभी भारत में एक दिन में संक्रमण के औसतन 20 हजार फरवरी मामले सामने आ रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिकों की बात सही साबित हुई तो अगले साल फरवरी के महीने में भारत जैसे देश में हर दिन कोरोना संक्रमण के 2 .8 लाख मामले सामने आने लगें तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। अमेरिका स्थित मेसाच्यूट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने दुनिया के 84 में कोरोना वायरस से सम्बन्धित एक अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है जो भारत के सन्दर्भ में बेहद चिंताजनक है।