अचानक नहीं लंबी तैयारी के बाद आंदोलन पर उतरे हैं पंजाब के किसान

जैसे ही केंद्र सरकार ने कृषि बिलों से संबंधित अध्यादेश जारी किए पंजाब के किसान संगठन सक्रिय हो गए। जून महीने के पहले सप्ताह में राज्य के गांवों में लोगों ने अपने छतों पर जाकर एक घंटे तक के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। कई दिनों तक यह कार्यक्रम सुबह 9 बजे से 10 बजे तक चलता रहा। इस कार्यक्रम में गांव का हर परिवार अपने छतों पर जाकर कृषि अध्यादेशों पर अपना विरोध जताता था।

आखिर क्यों नरेंद्र मोदी सरकार की उम्मीदों के विपरित इतना बड़ा किसान आंदोलन खड़ा हो गया है? यह सवाल खुद सरकार को कचोट रहा है। क्योंकि सरकार को पिछले छह सालों में किसी मजबूत आंदोलन से सामना करना ही नहीं पड़ा है। आखिर सरकार के खुफिया विभागों से कहां चूक हुई है? सरकार को समय पर पता ही नहीं चला कि किसान इतना ज्यादा संगठित हो चुके है और देश की राजधानी की तरफ आने वाले है।

सरकार को सलाहकारों ने यही सलाह दी थी कि कृषि बिलों को धक्के से संसद में पारित करवा दीजिए, देश में कोई आंदोलन नहीं होगा। देश का विपक्ष मरा हुआ है। किसानों में आंदोलन करने का अब दम नहीं रहा है। सरकार को अपने सलाहकारों की सलाह सही लगी। हालांकि लोकसभा और राज्यसभा में जब कृषि बिलों पर बहस हो रही थी, तो कई सांसदों ने किसानों की नाराजगी को लेकर आशंका प्रकट की थी। उन्होंने कहा था कि सरकार आग से खेल रही है।

सांसदों ने किसानों से बातचीत करने की सलाह दी थी। लेकिन सरकार को अपने बहुमत का घमंड था। वो सुनने को राजी नहीं थी। सरकार को इतिहास का भी ज्ञान नहीं है। हालांकि सरकार में शामिल कई नेता लगातार इमरजेंसी और इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ लड़ाई की जमकर चर्चा करते रहते है।

1990 के दशक के आर्थिक उदारीकरण ने देश में किसानों औऱ मजदूरों पर सबसे ज्यादा चोट मारी है। उदारीकरण ने किसान औऱ मजदूर आंदोलन भी देश में कमजोर कर दिए। वामपंथी दल भी कमजोर पड़ गए। समाजवादी विचारधारा की बात करने वाली कांग्रेस भी पूरी तरह से कारपोरेट कंट्रोल में हो गई। इन परिस्थितियो में भाजपा का उदय होना तय था। लेकिन भाजपा संगठन, इनके नेताओं और भाजपा सरकार में शामिल सलाहकारों को देश की समझ काफी कमजोर है।

पंजाब के किसान इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर देंगे, यह इनके जेहन में नहीं था। देश भर के किसानों को पंजाब के किसान जगा देंगे, इसकी उम्मीद एडीए सरकार को नहीं थी। यह चूक गंभीर इसलिए भी है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यो के लंबे समय तक भाजपा की तरफ से प्रभारी रहे है। गुजरात में मुख्यमंत्री बनने से पहले मोदी पंजाब और हरियाणा में भाजपा संगठन का कामकाज देखते थे। उन्होंने लंबा समय चंडीगढ़, पंचकूला और रोहतक में बिताया है। फिर आखिर मोदी कैसे किसानों के नब्ज पकड़ने में विफल हो गए?

आंदोलन और विरोध की राजनीति में पंजाब लंबे समय से अग्रणी रहा है। आजादी के आंदोलन में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन इस बार पंजाब के किसान आंदोलन ने देश भर के किसान संगठनों को बताया है कि किसानों की हक की ल़ड़ाई लड़ने के लिए अब नई रणनीति बनानी होगी। पंजाब के किसानों ने ही कृषि क्षेत्र में अदानी और अंबानी के खेल को उजागर किया है। पंजाब के किसानों ने चरणबद तरीके से अपने आंदोलन को मजबूत किया।

इसका परिणाम यह हुआ है कि किसान आंदोलन पंजाब के हर गांव, हर घर और हर परिवार का आंदोलन बन चुका है। हर घर से एक युवा को आंदोलन में शामिल होने की डयूटी लगी है। आंदोलन को हर तबके का समर्थन मिला है। राज्य का व्यापारी तबका खुलकर आंदोलन के साथ खड़ा हो गया है, व्यापारी किसानों को हर तरह की मदद कर रहे। यही नहीं पंजाबी कलाकार आंदोलन के साथ खड़े है। अबतक आंदोलन पर लगभग 80 गीत पंजाब के लोक कलाकार बना चुके है। ये गीत गांव-गांव में सुने जा रहे है।

पंजाब के किसानों ने चरणबद तरीके से किसानों को संगठित कैसे किया, इसे समझना बहुत जरूरी है। जैसे ही केंद्र सरकार ने कृषि बिलों से संबंधित अध्यादेश जारी किए पंजाब के किसान संगठन सक्रिय हो गए। जून महीनें के पहले सप्ताह में राज्य के गांवों में लोगों ने अपने छतों पर जाकर एक घंटे तक के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किया। कई दिनों तक यह कार्यक्रम सुबह 9 बजे से 10 बजे तक चलता रहा। इस कार्यक्रम में गांव का हर परिवार अपने छतों पर जाकर कृषि अध्यादेशों पर अपना विरोध जताता था।

जून महीने में ही किसान संगठनों ने सब डिविजनल मजिस्ट्रेटों के कार्यालय में जाकर अध्यादेश के खिलाफ ज्ञापन देना शुरू किया। ज्ञापन प्रधानमंत्री को भेजने के लिए दिया जाता था। छत पर जाकर लोगों का विरोध और एसडीएम कार्यालय में ज्ञापन देन का काम राज्य के 14 से 15 जिलों में सफल रहा। जुलाई में किसान संगठनों के निशाने पर एनडीए में शामिल अकाली दल आ गया।

किसानों ने अकाली दल से अध्यादेश का विरोध करने की मांग की। किसानों ने गांवों में एनडीए का पुतला जलाना शुरू कर दिया। किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकालनी शुरू कर दी। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के घर तक किसानों की ट्रैक्टर रैली निकाली गई। एक साथ 25 हजार ट्रैक्टर स़ड़क पर रैली में शामिल किए गए। ट्रैक्टर रैली का नेतृत्व 17 साल की एक लड़की बलजीत कौर ने किया। बलजीत कौर के रैली में शामिल होते ही पंजाब के युवा भी किसान आंदोलन में आने लगे।

जुलाई महीनें में किसान संगठनों ने कृषि अध्यादेशों के खिलाफ जिलों में डिप्टी कमिश्नर को ज्ञापन देना शुरू किया। अगस्त महीने में राज्य के सारे किसान संगठनों ने एक साथ मिलकर काम करने का फैसला लिया और एक कोआर्डिनेशन कमेटी बनाई गई। इसी महीने के अंतिम सप्ताह में किसान संगठनों ने भाजपा और अकाली दल के नेताओं की एंट्री गांवों में बंद करने का एलान किया।

इससे अकाली दल के कैडरों में घबराहट फैल गई। उन्होंने अपने नेता प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल को साफ कहा कि गांवों में अकाली दल का विरोध काफी बढ़ गया है, इसलिए अकाली दल कृषि अध्यादेश पर अपना स्टैंड क्लीयर करे। अकाली दल को अपनी जमीन खिसकती नजर आयी। अकाली दल असमंजस में पड़ गया। क्योंकि बादल परिवार केंद्र में अपनी हिस्सेदारी नहीं छोड़ना चाहता था। वहीं केंद्रीय जांच एजेसियों का डर भी बादल परिवार को था।

सिंतबर महीनें में संसद में कृषि संबंधित बिलों को पेश किया गया। इस बीच किसान संगठनों ने पंजाब में कृषि बिलों के विरोध में ललकार रैली का आयोजन किया। 14 सितंबर को प्रकाश सिंह बादल के गांव में किसानों ने मोर्चा लगा दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री कैपटन अमरिंदर सिंह के पटियाला स्थित घर के बाहर भी किसान मोर्चा लग गया। बिल पर संसद में बहस के बीच किसानों ने गांवों में जागृति लहर का आयोजन किया।

किसानों ने कृषि बिलों को पंजाबी में अनुवाद करवाया और गांवों में जागृति लहर के माध्यम से लोगों को समझाया कि कैसे किसानों की जमीन कारपोरेट घरानों को देने की तैयारी सरकार कर रही है। किसानों को समझाया गया कि कैसे किसान अब अपने ही खेत में मजदूर बनेगा। किसानों के इस आंदोलन से अकाली दल में घबराहट फैल गई। उधऱ संसद में बिल पारित हो गया। अकाली दल पर दबाव बढ़ गया और अकाली दल ने एनडीए से बाहर आने की घोषणा की। केंद्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बाद ने इस्तीफा दे दिया।

इस बीच किसानों ने अपने आंदोलन को मजबूत करने के लिए राज्य के सारे टोल नाकों को अपने कब्जे में ले लिया। रेल लाइनों पर धरने पर बैठ गए। किसानों ने राज्य में स्थित रिलांयस के सारे पेट्रोल पंपों को बंद करवा दिया। रिलांयस के सारे म़ॉल भी बंद करवा दिए। अदानी ग्रुप के गोदाम की घेरेबंदी कर दी। संगरूर में अदानी ग्रुप की एक विशेष मालगाड़ी को एक युवा ने रोक दिया।

अभी तक किसानों का आंदोलन का तरीका गांधीवादी रहा है। किसानो की तैयारी को सरकार समय पर समझ ही नहीं सकी। सरकार को यह भी पता नहीं चला कि पंजाब के किसान संगठन हरियाणा के किसान संगठनों से तालमेल बनाए हुए है। पंजाब के किसान जब दिल्ली जाने के लिए हरियाणा में पहुंचे तो स्थानीय किसानों ने उनकी खूब मदद की है। रास्ते में लंगर का इंतजाम किया। जबकि हरियाणा की भाजपा सरकार केंद्र सरकार को बताती रही कि आंदोलन में हरियाणा के किसान शामिल ही नहीं है।

दरअसल किसानों की रणनीति इस बार केंद्र सरकार पर भारी पड़ी है। पंजाब के एक प्रमुख किसान नेता के अनुसार हरियाणा के किसानों से शुरू से ही उनका तालमेल था। आंदोलन में एक रणनीति के तहत हरियाणा के किसानों को बाद में शामिल होना था। हरियाणा के किसान अब धीरे-धीरे आंदोलन में शामिल हो रहे है।

 

First Published on: December 5, 2020 1:40 PM
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