अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, मीडिया ने एक खबर सुर्ख़ियों के साथ प्रसारित और प्रकाशित की थी। खबर का मजमून कुछ इस तरह था कि भारत के सुरक्षा बलों ने कश्मीर के राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुई एक मुठभेड़ में पाक प्रशिक्षित चार आतंकवादियों को ढेर कर दिया था । यूँ तो सुरक्षा बालों के साथ मुठभेड़ में आतंकियों के मारे जाने की घटना नई भी नहीं है और अजूबा भी नहीं लेकिन नवम्बर के महीने में जब कभी ऐसी कोई कार्रवाई होती है तब राष्ट्रीय सन्दर्भ में बहुत कुछ सोचने विचारने को विवश होना पड़ता है।
इसके वजह यह है कि आज से कुछ ही साल पहले इसी महीने की 26 तारीख को पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने कराची के रास्ते समुद्र पार कर हमारे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को अपना निशाना बनाया था, भारत में समुद्री रास्ते हुआ यह संभवतः पहला आतंकी हमला था जिसे पूरी दुनिया 26/11 के नाम से जानती है। इसलिए नवम्बर का महीना आते ही एक झुरझुरी सी आ जाती है कि इस महीने ऐसे किसी हादसे की पुनरावृत्ति न हो । इस साल जब कश्मीर में सुरक्षा बालों के साथ मुठभेड़ में आतंकवादियों के मरने की खबर आयी तब ऐसा ही शक हुआ भी था। यह शक जायज भी था क्योंकि पूछताछ में यह भी पता चला है कि ये आतंकवादी मुंबई जैसा ही कोई हादसा करने की साजिश के तहत भारत आये थे।
साल 2020 भी समाप्ति की तरफ बढ़ रहा है। यह साल कब शुरू हुआ और कैसे इसके बीतने का सिलसिला शुरू हुआ और अब कैसे यह समापन की तरफ आगे बढ़ रहा है किसी को किसी तरह समझ में नहीं आ रहा है। साल के नौ महीने तो कोरोना महामारी को समझने,समझने के बाद उसके इलाज का इंतजाम करने और रोग के महामारी बन कर फैलने से पैदा हुई परेशानियों को सुलझाने में ही निकल गए और अभी भी यह सुनिश्चित नहीं है कि कोरोना का टीका कब तक आएगा और कब तक यह रोग इंसानी मिजाज में बना रहेगा।
अब तो साल भी ख़त्म होने को है। कहा तो यह भी जा रहा है कि अगले साल के छह महीने भी निरापद नहीं होंगे और इस महामारी का असर तो आने वाले तीन-चार साल तक तो रहेगा ही। कुछ-कुछ उसी तरह जिस तरह भोपाल गैस त्रासदी का असर भी कई दशक बाद आज तक जिन्दा है। भोपाल में मिक गैस की विपदा भोपाल और आसपास के इलाकों तक ही सीमित थी लिहाजा राष्ट्रीय स्तर पर हंगामा नहीं हुआ लेकिन कोरोना वायरस की यह महामारी जो चीन से शुरू हुई थी और पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी है। कोरोना की मार तो दो विश्व युद्धों और इनके आसपास होने वाले हैजा, चेचक और प्लेग जैसे रोगों के फैलने से पनपी महामारी से घातक और मारक हो गई है।
जिस महामारी से मरने वालों की संख्या करोड़ों में पहुँच चुकी हो और अरबों लोग जिसके संक्रमण का शिकार हो चुके हों उस रोग की विभीषिका को आसानी से समझा जा सकता है। किसी एक महामारी से इतनी बड़ी तादाद में इससे पहले न तो लोग मारे गए और न ही कभी इतने लोग किसी रोग का शिकार ही हुए हैं। साल 2020 में अभी तक तो पूरी दुनिया के लोग कोरोना का संताप ही झेल रहे हैं।
कोरोना महज एक बीमारी ही नहीं है बीमारी कोई भी हो उसका इलाज भी होता है और इलाज करने के लिए अस्पताल के साथ ही दवा का इंतजाम भी करना पड़ता है और ऐसा करने के लिए सब कुछ बंद हो गया था। पूरे ढाई महीने तो सब कुछ बंद था। जून के पहले सप्ताह से धीरे -धीरे अनलॉक के कई चरणों में 22 मार्च से लागू किये गई लॉकडाउन के खुलने की प्रक्रिया शुरू हुई है अभी भी काफी कुछ बंद ही है अलबत्ता बाजार, दफ्तर, सिनेमा हाल खेल के मैदान, धार्मिक स्थल खोल दिए गए हैं सीमित मात्रा में ही सही परिवहन सुविधाएं भी उपलब्ध करा दी गई हैं लेकिन कोरोना का कहर ख़त्म होना तो दूर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
कई महीनों तक सब कुछ बंद रहने का देश और आम इंसान की आर्थिक स्थिति पर भी बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है पूरी दुनिया की बात करें तो करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो चुके हैं असंख्य व्यापारिक और वाणिज्य संस्थान बंद हो गए हैं या फिर बंद होने के कगार पर हैं। ऐसा इससे पहले किसी महामारी के दौरान नहीं हुआ था। कोरोना का असर दुनिया के पिछड़े ही नहीं बल्कि विकसित और संपन्न कहे जाने वाले अमेररिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी, रूस, इटली जैसे देशों पर भी हुआ है।
दुनिया के संभवतः किसी भी देश के लिए महामारी के नाम पर इससे बुरा साल शायद कोई और साल नहीं रहा होगा । कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना की वजह से मार्च के अंतिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक करीब सात महीने भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कहीं भी कुछ काम नहीं हुआ लेकिन अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवम्बर के अंतिम सप्ताह तक मात्र एक महीने की संक्षिप्त अवधि में बिहार विधान सभा के चुनाव से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव तक तमाम काम हो गए भारत को कोरोना काल में कुछ राजनीतिक गतिविधियाँ संपादित कराने के क्रम में एक अपवाद देश के रूप में भी देखा जा सकता है क्योंकि इसी देश में अगस्त के महीने में अयोध्या में राम के भव्य मंदिर का दूसरी बार भूमिपूजन भी होता है।
इस बीच देश के क़ानून के तहत गठित मध्य प्रदेश में एक पार्टी की सरकार तोड़ी जाती है उसके स्थान पर केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की सरकार वजूद में आती है। मध्य प्रदेश की तर्ज पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की निर्वाचित राजस्थान सरकार को भी गिराने की कोशिश भी की जाती है लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल पाती। साल 2020 की गतिविधियों में नजर डालें तो सबसे व्यस्त महीना नवम्बर का ही माना जा सकता है और कई मायनों में यह महीना ख़ास रहा भी है।
पहले तो हम भारत के लोग इस महीने को इसलिए मानते थे क्योंकि इस महीने की 14 तारीख को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का जन्म हुआ था। बाद में इस महीने की 19 तारीख यानी 19 नवम्बर भी मशहूर हो गई क्योंकि जवाहरलाल नेहरु की बेटी इंदिरा गाँधी जो1965 के भारत- पाक युद्ध के बाद लाल बहादुर शास्त्री की उत्तराधिकारी के रूप में देश की प्रधानमंत्री बनी थी, उनका जन्म इस तारीख को हुआ था। इंदिरा गाँधी ने दो चरणों में प्रधानमंत्री पद की कमान संभाली थी। वो पहले चरण में 1966 से 1977 के पूर्वार्ध तक करीब 11 साल इस पद पर रहीं तो दूसरे चरण में 1980 से 1984 में अपनी हत्या किये जाने तक चार साल से कुछ अधिक समय तक प्रधानमंत्री बनी रहीं ।
14 नवम्बर हो या 19 नवम्बर ये दोनों ही दिन भारत के दो प्रधान मंत्रियों के नाम हो गए। राजनीति की इस चकाचौंध में हम भूल गए कि इन दिनों में इतिहास में और भी बहुत कुछ ख़ास घटित हुआ है। नेहरु का जन्म दिन तो बल दिवस के रूप में आज भी मनाया जाता है, ये बात अलग है कि पिछले पांच-छह साल में बाल दिवस की आभा कुछ कम हुई है। 19 नवम्बर की आभा को संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर अंतर्राष्ट्रीय शौचालय दिवस के रूप में मनाने की कोशिशें भी जारी हैं लेकिन राजनीतिक कारणों से नेहरु और इंदिरा दोनों को ही भुलाया जा रहा है।
बात जब 19 नवम्बर की हो तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी दिन झांसी रानी लक्ष्मी बाई का भी जन्म हुआ था और फिल्म अभिनेत्री सुष्मिता सेन का भी। 19 नवम्बर 2020 को अपने 45वें जन्म दिवस के मौके पर सुष्मिता सेन ने अपनी 19 वर्षीय बेटी रिनी सेन को भी फिल्मों में उतारने का एलान कर दिया। उनके जन्म दिन के अवसर पर रिनी की आने वाली फिल्म का एक छोटा सा विडियो भी रिलीज़ किया गया।
और भी बहुत कुछ हुआ जिसकी वजह से 2020 का यह नवम्बर महीना ख़ास हो गया। मसलन इसी महीने इस देश के सबसे बड़े और चर्चित हर्षद मेहता शेयर घोटाले को भी 28 साल पूरे हो गए और टेलीविज़न के इतिहास ने भी एक लम्बा सफ़र पूरा कर लिया।सोप ओपेरा के नाम से शुरू हुआ टेलीविज़न नामक यह बुद्धू बक्स़ा अब कई बार सिनेमा को भी पीछे छोड़ता दिखाई देता है।