आधी रात को मेरी कालोनी में अचानक कुत्ते बोलने लगे। मेरी कालोनी में 10-15 कुत्ते हैं। वे मुझे पहचानते हैं। मैं जानता हूं कि बिना किसी कारण के वे भौंकते नहीं हैं बल्कि चुपचाप सड़क किनारे गुमशुम बैठे रहते हैं। नींद आ रही थी, अत: मैं विस्तर से उठा नहीं और लेटे-लेट अंदाजा लगाता रहा कि कुत्ते क्यों भौंक रहे होंगे ? पहला विचार यह आया कि शायद उनके दो गुटों में लड़ाई हो गई होगी। कुत्ते भी आपस में गोलबंदी किए रहते हैं। कभी-कभी उनमें जमकर लड़ाई होती है। उनकी अपनी सीमा है। यदि किसी गुट ने अतिक्रमण किया तो फिर लड़ाई होती है।
रात 3 बजे मेरी नींद पुन: खुली तो बाथरुम गए। एक गिलास पानी पीए और बिस्तर पर पुन: सोने की कोशिश किए लेकिन नींद नहीं आ रही थी। लाॅकडाउन में मेरा घर मुझे लगता है कि कोई ट्रेन है। जिसमें मुझे विस्तर किसी स्लीपर बेड की तरह लगता है। सोना..! जगना और फिर सोना..! कभी-कभी खिड़की से बाहर देखना या बरामदे में टहलना। बस..! यही प्रतिदिन की दिनचर्या है। वैसे ही जैसे बर्थ पर लेटे-लेटे थक जाने पर यात्री ट्रेन की बोगी में टहलने लगते हैं।
तो रात 3 बजे बरामदे में मैं टहलने लगा। गेट से बाहर झांक कर देखा तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति गेट के बाहर लेटा था। वह धोती-कुर्ता पहने था। मैंने ध्यान से देखा उसकी सांसेे चल रही थीं। शायद वह गहरी नींद में था।
मैं वापस अपने बिस्तर या कहिए स्लीपर कोच के बेड पर लेट गया। घर के अन्य सदस्य भी अपने-अपने बर्थ पर गहरी नींद में सोए थे। मुझे नींद नहीं आ रही थी। लेटे-लेटे गेट के बाहर पड़े व्यक्ति के बारे में सोचता रहा। यह आशंका भी पैदा हो रही थी कि शायद वह मर गया हो। यदि ऐसा हुआ तो क्या किया जाएगा ? शायद उसे भूख लगी हो। सुबह उसे खाने को रोटी देंगे। या फिर वह शराब के नशे में रहा हो और जमीन पर ही सोकर सपनों की दुनिया में उड़ने लगा।
कल्पना करिए कि आप घर में सोए हैं और बाहर गेट के सामने कोई शव पड़ा हो। तो फिर पुलिस को सूचना देनी पड़़ेगी। पुलिस आएगी, उसके पास अनेक सवाल होंगे। और जवाब..! शायद कुछ नहीं। आखिर कुत्ते तो गवाही देंगे नहीं..! सबसे पहले उसे किसने देखा ? कुत्तों ने देखा। रात 3 बजे जब मैंने देखा तो वह गहरी नींद में सोया था। उसकी सांसें चल रही थीं। इसका मतलब तब वह जीवित था। तो मरा कब ? पता नहीं..!
मैं जानता हूं कि मुर्दों को भूख नहीं लगती है। मुर्दे किसी से डरते भी नहीं हैं। उन्हें ऑक्सीजन की भी जरूरत नहीं पड़ती है। भूख के लिए जरूरी है कि आप जीवित हों। सांस ले रहे हों। कभी-कभी जीवित व्यक्ति को भी भूख नहीं लगती है। फिर उसे डाॅक्टर की सलाह पर दवाई खानी पड़ती है।
भोर में पांच बजे..! हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। कभी-कभी बारिश तेज हो जाती थी। मैं उठा तो सबसे पहले गेट के बाहर सोए व्यक्ति की याद आई। उसे देखने गया तो वह वहां नहीं था। शायद बारिश के कारण भींगने पर उसकी नींद टूट गई थी। यदि शराब पीया होगा तो नशा भी वर्षा की बूंदों से उतर गया होगा। वह थक गया था। उसे नींद आ रही थी, इसलिए गेट पर ही सो गया। सड़क पर लगी ट्यूलाइट की रोशनी में..!
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास घर नहीं है। आसमान ही उनकी चादर और धरती विस्तर है। तो वह आधी रात को आया था। उसके स्वागत में कुत्ते भौंकते रहे। फिर वह गेट के पास सो गया। भोर में जब बारिश शुरू हुई तो नींद टूटी और अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा। उसे कहां जाना है। पता नहीं..! हम सब अपने-अपने सफ़र के यात्री हैं। सबको अपनी मंजिल की तलाश है।
(सुरेश प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और वाराणसी में रहते हैं।)