
महान सनातनी हिन्दू महात्मा गांधी के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने गांधीजी के लेखन और भाषण में हिन्दू – मुस्लिम एकता शब्द को कम कर दिया और वे हिन्दू – मुस्लिम सवाल शब्द अधिक प्रयोग करने लग गए।
गांधी जी की जयंती के खास अवसर पर उनके आदर्शों को याद करते हुए महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी दो प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालते हैं, जो दो खंडों में इस प्रकार हैं-
भारत के पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के कोहट में भीषण दंगा हुआ था । गांधीजी को सरकार कोहट जाने की अनुमति नहीं दे ही थी। कांग्रेस ने एक जांच समिति बनाई थी, जिसमें गांधीजी और शौकत अली थे। दिसम्बर 1924 को वे दोनों रावलपिंडी में जाकर शरणार्थियों से मिले। वहां जाकर गांधीजी को ज्ञात हुआ कि वहाँ वर्षों से हर शुक्रवार मस्जिदों में धर्मांतरण हो रहा था। हिन्दू महिलाओं को जबरदस्ती उठाकर ले जाते थे और उन्हें मुस्लिम बना लेते थे। जब हिंदुओं ने इसका विरोध किया तो मुसलमान भड़क गए। वे मौके का इंतजार कर रहे थे। उस पर्चे ने मुसलमानों को मौका दे दिया और मुसलमानों ने भीषण दंगा किया। पर्चा कारण नहीं बहाना था। पर शौकत अली जबरदस्ती धर्मांतरण को जायज बता रहे थे। अतः एकमत से रिपोर्ट नहीं बनी। गांधीजी ने दोनों की रिपोर्ट साथ में यंग इंडिया में छाप दी।
रावलपिंडी से आने के बाद गांधीजी बहुत आहत थे। उसी बैचेनी में उन्होंने 10 फरवरी 1925 को सुबह ही आश्रमवासियों को एकत्र किया। उनके सामने अपनी मन की पीड़ा को हल्का किया। गांधीजी बोले –
” मेरी स्थिति इस समय उस आदमी की है जो अपनी रजाई के भीतर सांप देख कर घबरा गया हो, रजाई को झाड़ रहा हो और पूरे कमरे की सफाई कर रहा हो। …कोहट के दंगों का मूल कारण धर्मांतरण है ।तेज रफ्तार से हो रहे धर्मांतरण के बारे में जब हिंदू चौकन्ने हुए तो मुसलमानों को यह पसंद नहीं आया और वह बदला लेने के लिए कोई मौका ढूंढने लगे । उस आपत्तिजनक टेंप्लेट को उन्होंने बदला लेने का बहाना बनाया ।
…अगर सब के सब 20 करोड़ हिंदू इस्लामी मजहब के ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर अपने निजी बौद्धिक विश्वास के आधार पर इस्लाम कबूल कर ले, तब भी मैं पृथ्वी तल पर अकेला हिंदू होने का संतोष कर लूंगा। तब मैं अपनी जीवनशैली से हिंदू धर्म का उजाला फैला सकूंगा। किंतु भय और प्रलोभन से मुसलमान बनाना मुझे बर्दाश्त नहीं है । वहां ऐसा ही हुआ। आप लोगों से मैं यह सब इसलिए कह रहा हूं कि आप अपने धर्म के प्रति निष्ठा में अडिग रहें। मेरा एकमात्र उद्देश्य इस पवित्र उषाकाल में आपको जगाना और चौकस करना है । यह मैं इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हो सकता है किसी दिन आपको भी ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ जाए। यदि आश्रम में किसी बच्चे लड़के या लड़की का अपहरण हो तो आप मेरी हिंसा का गलत अर्थ लगाकर मूकदर्शक मत बने रहना।” (देवेंद्र स्वरूप 108-109)
गांधीजी दंगों से बैचेन थे। कुछ स्वास्थ्य ठीक होने के बाद अगस्त के तीसरे सप्ताह में दिल्ली गए। वहां एक सभा में भाषण दिए और अनेक हिन्दू और मुस्लिम नेताओं से मिले। 23 अगस्त को वे अहमदाबाद लौटे। एक सप्ताह बाद वे मुम्बई और पूना गए।
9 सितंबर को कोहट में भीषण दंगा हुआ। कोहट उत्तर-पश्चित सीमांत प्रान्त में एक कस्बा था, जहां 10% ही हिन्दू थे, बाकी मुसलमान थे। निमित्त बना किसी हिन्दू प्रचारक का इस्लाम विरोधी पर्चा। उसके विरोध में दंगा प्रारम्भ हो गया। सैकड़ों हिन्दू मारे गए, अनेक महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ, अनेक महिलाओं को जबरदस्ती मुसलमान बना लिया। हजारों लोगों ने वहां से पलायन करके अपनी जान बचाई। उनके लिए 150 किमी दूर पेशावर में राहत शिविर लगाए गए। गांधीजी कोहट के लिए निकले, पर सरकार ने रोक दिया।
गांधीजी 17 सितंबर को दिल्ली में 21 दिन की भूख हड़ताल पर बैठ गए। उन्होंने स्थान चुना मौलाना मोहम्मद अली का घर ! गांधीजी के अनन्य सहयोगी महादेवभाई देसाई ने गांधीजी को भूख हड़ताल से विमुख करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि जब मुम्बई या चौरी-चोरा में हिंसा हुई थी, तब मान सकते हैं कि आपके आंदोलन के कारण हुई थी, अब हुई हिंसा का आपसे कोई संबंध नहीं है।
इस गांधीजी ने जो उत्तर दिया, वह महादेव भाई की डायरी में छपा है। गांधीजी ने कहा – ” मेरी भूल ? क्यों नहीं ! मुझ पर हिंदुओं के साथ विश्वासघात करने का आरोप लग सकता है । मैंने ही उन्हें मुसलमानों से दोस्ती करने का आग्रह किया। मैंने ही मुसलमानों के मजहबी स्थलों की रक्षा के लिए अपने प्राणों और संपत्ति को दांव पर लगाने का आह्वान किया। आज भी मैं उन्हें अहिंसा का उपदेश दे रहा हूं, कह रहा हूं कि अपने झगड़ों का निपटारा मारकर नहीं, स्वयं मर कर करें । और इस सब का क्या परिणाम मैं देख रहा हूं ? कितने मंदिर अपवित्र हुए हैं ? कितनी बहने मेरे पास विलाप करती आती है ? हिंदू महिलाएं गुंडों के डर से थरथर कांप रही हैं । कई स्थानों पर वे अकेले बाहर निकलने से डरती है ।मुझे अमुक का पत्र मिला है उसके नन्हें बच्चों को जिस तरह सताया गया उसे मैं कैसे सहन करूं ?”
22 सितंबर गांधीजी ने वक्तव्य जारी किया जिसमें उन्होंने अपनी भूख हड़ताल के स्थान के चुनाव का स्पष्टीकरण दिया। उसमें लिखा था ” मैं हिन्दुधर्म के सार को अच्छी तरह से जानता हूँ। लेकिन मुसलमान के मन – मष्तिष्क को जानने का कष्ट करना मेरा कर्तव्य है। जितना मैं सबसे बड़े मुसलमान के नजदीक रहूँगा, उतना अधिक मैं मुसलमान और उनके कृत्यों को सही आकलन कर पाऊंगा। ” ( गुहा 221, गांधी वाङ्गमय XXV 199 -202)
26-27 सितंबर को दिल्ली में एकता परिषद का आयोजन हुआ। उसमें मोहमद अली पहले वक्त थे। मोतीलाल नेहरू अध्यक्षता कर रहे थे। स्वामी श्रद्धानंद, राजगोपालाचारी, डॉ अंसारी आदि नेतागण उपस्थित थे। परिषद में शांति बनाये रखने की अपील की गयी। परिषद के बाद नेताओं ने गांधीजी से भूख हड़ताल समाप्त करने का आग्रह किया। गांधीजी ने कहा कि यह उनके और उनके ईश्वर के बीच का मामला है। सच उस ईश्वर के भरोसे गांधीजी का 21 दिन का उपवास पूर्ण हो गया। 9 अक्टूबर को दोपहर में 12.30 बजे गांधीजी ने 21 दिन बाद अपनी भूख हड़ताल समाप्त की। स्वामी श्रद्धानंद, मोतीलाल नेहरू, चित्तरंजन दास, सरोजिनी नायडू, अनसूया बेन, हकीम अजमल खान, दीनबंधु एंड्रयूज और अली बंधु आदि प्रमुख नेताओं की उपस्थिति में डॉ अंसारी के हाथों से मौसम्बी रस का गिलास ग्रहण किया और बुदबुदाये – ” आज मेरे 30 वर्ष की तपस्या बेकार चली गयी !”
इसके बाद निराश होकर गांधीजी के लेखन और भाषण में हिन्दू – मुस्लिम एकता शब्द कम हो गया और वे हिन्दू – मुस्लिम सवाल ( Hindu – Muslim Question) शब्द अधिक प्रयोग करने लग गए ! उनकी निराशा का अंदाज जनवरी 1927 में बंगाल के कोमिल्ला नामक स्थान पर दिए भाषण के निम्न शब्दों से चलता है – ” हिन्दू-मुस्लिम सवाल आदमी के हाथ से निकल गया है, अब वह भगवान के हाथ में पहुंच गया है।”
सुरेंद्र सिंह विष्ठ