कश्मीरी पण्डितों का हठ और दुराग्रह भी उनके पतन व पलायन का कारण  

वहाँ के पंडित पुजारियों ने राजा को यह कह कर रोक दिया कि यदि आप दयानन्द को बुलाना चाहते हो तो पहले यहाँ के सब मन्दिरो को गिरा दो। इस तरह से राजा पर दबाव डालकर स्वामी जी को कश्मीर आने  से रोक दिया।

काश ! ऋषि दयानन्द जी कश्मीर जा पाते तो जो कश्मीर का इस्लामीकरण हो गया है, जो कश्मीर समस्या देश के लिए घातक बनी हुई है वह न होती। कश्मीर के नरेश महाराजा रणवीर सिंह स्वयं ऋषि से मिलना चाहते थे इसलिए उन्होनें अपने मन्त्री नीलाम्बर बाबू और दीवान अनन्त राम को स्वामी जी के पास भेजा और स्वामी जी ने आना स्वीकार कर लिया, किन्तु वहाँ के पंडित पुजारियों ने राजा को यह कह कर रोक दिया कि यदि आप दयानन्द को बुलाना चाहते हो तो पहले यहाँ के सब मन्दिरो को गिरा दो। इस तरह से राजा पर दबाव डालकर स्वामी जी को कश्मीर आने  से रोक दिया। फिर महाराजा ने ऋषि से पूछा कि जो हिंदू मुसलमान बन गये है क्या उनको शुद्ध करके वापस वैदिक धर्म मे लाया जा सकता है तो स्वामी जी ने हाँ कह दी। फिर राजा ने पंडितों से कहा कि जो लाखों ब्राह्मण जबरदस्ती या लालच से मुसलमान बन गये है उन्हें शुद्ध कर लेना चाहिए। इस पर पंडितों ने कहा कि महाराज यदि आप ऐसा करोगे तो हम महल के सामने भूख हड़ताल करके प्राण दे देगे। यदि उस समय ऐसा हो गया होता तो आज ये समस्या न होती।

वस्तुत: महर्षि दयानंद जैसे वीतराग सन्यासी की बेइज्जती का दुखद परिणाम ही कश्मीरी पंडितों को भुगतना पड़ा है। यदि इन लोगों ने महर्षि दयानंद को वेद प्रचार करने व  पाखंड दूर करने के लिए आने से नहीं रोका होता तो निश्चित ही किसी भी कश्मीरी पंडितों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती। अपने स्वार्थ और उदर पूर्ति के लिए कश्मीरी पंडितों ने स्वयं अपने वंशजों का जीवन संकट में डाल दिया।

कश्मीरी पण्डित दिन रात पाखंड फैलाने व पैसा कमाने में लगे रहे । आत्मरक्षा के लिए अपने घरों में शस्त्र रखना व संघर्ष करना इन्होंने कभी आवश्यक ही नहीं समझा। कोई देवी देवता इनकी रक्षा के लिए नहीं आया । सुना है कि एक ही रात में लगभग पांच लाख कश्मीरी पण्डित घाटी से भाग खड़े हुये !

सन्1912 में जब ईसाईयों ने देखा कि कश्मीर में आर्य समाज का प्रचार नहीं है तो उन्होनें महाराज को चुनौती दी कि आप अपने पंडितों से हमारा शास्त्रार्थ कराओ क्योंकि वे जानते थे कि राजा धार्मिक प्रवृति के है यदि वे ईसाई बन गये तो यहाँ हमारा प्रचार कार्य सरल हो जायेगा। दोनों ओर से पूरी तैयारी के साथ शास्त्रार्थ शुरु हुआ,राजा वहाँ स्वयं उपस्थित थे।ईसाई पादरियो के प्रश्नों का पंडित उत्तर न दे सके वे एक दूसरे का मुँह देखने लगे, इससे राजा घबराने लगे। संयोग से वहाँ आर्य समाज के महोपदेशक पण्डित गणपति शर्मा बैठे हुऐ थे, उनको यह सहन न हुआ उन्होनें खडे़ होकर कहा यदि महाराज आज्ञा दे तो मै आपके पंडितों की ओर से पादरियों से शास्त्रार्थ करुँ। राजा को कुछ आशा जगी और उन्होनें अनुमति दे दी।फिर क्या था गणपति शर्मा के खड़े होते ही पासा पलट गया। जब पंडित जी ने पादरी के प्रश्न का उत्तर देने के साथ ही उन पर प्रश्न दागे तो उनसे उत्तर न बना और वे घबराने लगे। कुछ ही समय मे पादरी निरुत्तर होकर वहाँ से चले गये इस प्रकार कश्मीर ईसाई होने से बचा।

महर्षि दयानंद का मानना था कि मन्दिर बनाना अपनी सन्तति के लिए अविद्या का गहरा गड्ढा खोद कर जाना है। पुष्कर में एक सेठ ने महर्षि दयानंद से पूछा-“महाराज ! मैं मन्दिर बनवाना चाहता हूँ, इसमें आप क्या सम्मति देते हैं ?” महर्षि ने गम्भीर भाव से उत्तर दिया- “सेठ जी ! किसी अन्य धर्म कार्य में धन व्यय करो, जिससे अपना और दूसरों का कल्याण हो। मन्दिर बनाना तो सन्तति के लिए अविद्या का एक गहरा गड्ढा खोद कर छोड़ जाना है।” महर्षि का उपदेश सुन कर उस सेठ ने मन्दिर बनाने का विचार छोड़ दिया। अजमेर में ब्रह्मा के मन्दिर का महन्त मानपुरी ने मूर्ति भोग के पश्चात महर्षि को दूध दिया तो महर्षि ने यह कह कर मना कर दिया कि पत्थर पूजा का मैं दूध नहीं पीता। उस समय तो महन्त जी रुष्ट हो गये परन्तु पीछे से प्रसन्न होकर उनके सहायक बन गये।

उन्हीं दिनों एक द्रविड़ सन्यासी चन्द्रघाट पर आकर ठहरा था। वह पुराणों की कथा कराकर ब्रह्मभोज कराया करता था। उसके साथ शास्त्रार्थ करने के लिये कोई दो सौ ब्राह्मण स्वामी दयानंद जी को वहाँ ले गये परन्तु वह द्रविड़ सन्यासी शास्त्रार्थ के लिये तैयार नहीं हुआ। काशी में भी जब विशुद्धानन्द जैसे विद्वान वेदों में मूर्ति पूजा सिद्ध न कर पाये तो अपने सैंकडो साथियों के साथ हो हल्ला करते हुये भाग खडे हुये थे। मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा का नाटक करना, उनकी पूजा अर्चना करना, उनका श्रंगार करना, उनकी रक्षा के लिये पुलिस तैनात करना…सब समय और धन की बर्बादी के सिवाय कुछ भी नहीं। परमात्मा कतई नहीं चाहता कि मन्दिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे के नाम पर लोग उसका विभाजन करें व आपस में लडाई झगड़ा करें। सब जीवों से प्रेम करना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।

First Published on: March 14, 2022 12:21 PM
Exit mobile version