एनडीए गठबंधन से बाहर होने के बाद अकाली दल भाजपा को गठबंधन धर्म की याद दिला रहा है। अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी औऱ नरेंद्र मोदी की तुलना की है। वाजपेयी को सुखबीर बादल ने बड़ा नेता बताया है। सुखबीर बादल ने कहा है कि पिछले दस सालों में एनडीए सिर्फ कागजों में है। एनडीए की कोई प्लानिंग नहीं हुई। एनडीए में कोई विचार विमर्श नहीं हुआ। एनडीए गठबंधन की सहयोगी दलों की कोई बैठक नहीं बुलायी गई। सवाल यही है कि अकाली दल शिवसेना की तरह उग्र क्यों हो गया है? क्या यह मोदी की पॉलिटिक्स की विफलता नहीं है? आखिर क्यों एनडीए गठबंधन के दल मोदी की तुलना वाजपेयी से करते है?
फिर तुलना करते हुए वाजपेयी को मोदी के मुकाबले काफी बड़ा नेता बताते है। निश्चित तौर पर मोदी संवाद में विफल रहे है। न तो उनका विपक्षी दलों से संवाद है, न ही गठबंधन में शामिल दलों से संवाद है। शायद भाजपा के कई बड़े नेताओं से भी उनका संवाद नहीं है। इस संवादहीनता के कारण क्या है यह अनुसंधान का विषय है। लेकिन एक चीज यह तय है कि भविष्य में जब भाजपा का इतिहास लिखा जाएगा तो मोदी और वाजपेयी की सरकारों की कामकाज की तुलना अक्सर होगी। वाजपेयी को मोदी से बहुत बड़ा नेता बताया जाएगा।
अकाली दल भाजपा के पुराने सहयोगियों में से एक है। अकाली दल और भाजपा के बीच सहयोग जनसंघ के समय से है। दिलचस्प बात है कि दोनों दलों की वैचारिकी एक है। क्योंकि पंजाब में भाजपा हिंदूवाद की राजनीति करती है। अकाली दल सिख पंथ की राजनीति करता रहा है। इसके कारण दोनों दलों में इतना अच्छा सहयोग रहा है कि गठबंधन की राजनीति का अध्धय़न करने वाले पॉलोटिकल साइंटिस्ट भी इस सहयोग पर हैरान होते हैं। कई मद्दों पर दोनों दलों के बीच गतिरोध हुआ, लेकिन गतिरोध का हल निकल गया।
1967 से लेकर 1980 तक जब भी अकाली दल की सरकार बनी भाजपा के साथ अकाली दल का पोस्ट पोल एलांयस हुआ। जब भी अकालियों ने पंजाब में सरकार बनायी अकाली दल की सरकार में भाजपा के लोग शामिल हुए। इसके बाद आतंकवाद का दौर आया। आतंकवाद के दौर से निकलने के बाद 1997 में फिर भाजपा और अकाली दल गठबंधन की सरकार बनी। यह पंजाब की राजनीति में फिर से एक नए युग की शुरूआत थी। पंजाब आतंकवाद के साये से निकल रहा था। अकाली दल ने भाजपा के साथ गंठबंधन कर पंजाब में हिंदू-सिख भाईचारा का संदेश दिया।
1997 की जीत के बाद अकाली दल की सरकार पंजाब में तीन बार बनी। अकाली दल ने राज्य में 15 साल राज किया। इन 15 सालों में भाजपा सरकार में भागीदार रही। भाजपा के मंत्री सरकार में शामिल रहे। प्रकाश सिंह बादल की यह खासियत थी कि वे हर फैसले में सहयोगी भाजपा को जरूर शामिल करते थे। मंत्रिमंडल में अहम फैसलों में भाजपा की राय जरूर ली जाती थी। जब भी भाजपा संगठन या भाजपा कोटे के मंत्री किसी मुद्दे पर अकाली दल से नाराज भी हुए तो बादल ने खुद जाकर उन्हें मनाया। लेकिन आज अकाली दल नरेंद्र मोदी सरकार पर आरोप लगा रहा है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र सरकार सहयोगी दलों से राय तक नहीं लेती है।
हालांकि अकाली दल ने नरेंद्र मोदी सरकार और एनडीए से बाहर आने का फैसला तब लिया जब पंजाब की जनता का मिजाज उन्हें पूरी तरह से समझ में आ गया। अकाली दल के पास एनडीए गठबंधन से बाहर आने के अलावा कोई और चारा नहीं था। मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद हरसिमरत कौर बादल कह रही है कि मंत्री रहते हुए उन्होंने कृषि संबंधी तीनों बिलों का विरोध किया। लेकिन सरकार में उनकी एक नहीं सुनी गई। लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ अलग है। विपक्षियों के आरोप में दम है कि हरसिमरत कौर बादल कृषि अध्यादेश के विरोध के बजाए समर्थन में थी। बताया तो यह भी जा रहा है कि हरसिमरत कौर बादल मंत्रिमंडल से इस्तीफे के लिए तैयार नहीं थी।
अकाली दल इस समय एक परिवार की पार्टी है। इसलिए पंजाब की राजनीति पर विचार करने के लिए बादल परिवार की लगातार बैठक हुई। विचार विमर्श के दौरान यही निष्कर्ष निकाला गया कि पंजाब की राजनीति में जिंदा रहने के लिए और अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए केंद्र सरकार से बाहर आना जरूरी है। उसके बाद भी हरसिमरत कौर मंत्रिमंडल से बाहर आने को तैयार नहीं थी। लेकिन परिवार के सदस्यों ने उनपर दबाव डालते हुए कहा कि अगर एनडीए सरकार से बाहर नहीं निकली तो बादल परिवार की राजनीति पंजाब से खत्म हो जाएगी। कई बागी अकाली इस मौके की तलाश में है। वैसे में हरसिमरत कौर बादल के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
बेशक वर्तमान में नरेंद्र मोदी मजबूत है, लेकिन एनडीए गठबंधन से अकाली दल के निकलने के बाद भाजपा भविष्य में कमजोर होगी है। इससे पहले महाराष्ट्र में शिवसेना जैसे पुराने सहयोगी ने भाजपा को झटका देकर भविष्य की राजनीति समझा दी थी। शिवसेना ने साफ संकेत दिए थे कि छोटे क्षेत्रीए दलों को भाजपा अगर नजर अंदाज करेगी तो देश की राजनीति किसी और दिशा में बढ़ेगी। अकाली दल से गठबंधन टूटने से पंजाब के भाजपा नेता सकते में है। क्योंकि पंजाब में अकाली दल के सहयोग के बिना भाजपा की राजनीति जलंधर, अमृतसर और लुधियाना की शहरी सीमा से बाहर नजर नहीं आती है।
भाजपा का कुछ प्रभाव गुरदासपुर और होशियारपुर जिले में है। कृषि बिल के संसद में पारित होने से पंजाब के हिंदू आढती भी भाजपा से नाराज है। बेशक भाजपा के नेता मीडिया के सामने साहसी चेहरा दिखा रहे है, लेकिन अंदर से वे घबराए हुए है। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से पंजाब के गांवों में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ सक्रिय होने की कोशिश कर रहा है। संघ सिख आबादी को भी अपने प्रभाव में लेने की योजना बना रहा है। लेकिन कृषि संबंधी बिलों ने संघ की भविष्य रणनीति को भारी नुकसान पहुंचाया है।
अकाली दल के एनडीए से बाहर आने से देश के क्षेत्रीय दलों को मैसेज गया है कि गठबंधन की सरकार होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार फेडरल स्ट्रक्चर को खत्म करने में लगी हुई है। राज्यों के अधिकार छीने जा रहे है। जीएसटी और कृषि क्षेत्र से संबंधित बिलों ने राज्य के अधिकारों का दमन किया है। कई राज्यों में आर्थिक संकट इसलिए पैदा हो गया है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर दादागिरी कर रही है। राज्यों के टैक्स संबंधी अधिकार केंद्र छीन रही है। क्षेत्रीय दल रणनीतिक गठबंधन कर भाजपा को कमजोर करने की रणनीति बना सकते है। जिन राज्यों में भाजपा फिलहाल उभरने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा को रोकने की पूरी कोशिश होगी।