उइगर और तिब्बतियों के दमन पर क्यों चुप है भारत

भारत ने चीन के दबाव में तिब्बतियों के हितों की बलि दे दी। चीन के अधीन तिब्बत स्वायत क्षेत्र को मान्यता देकर भारत ने बहुत भारी गलती की। आखिर अटल बिहारी वाजपेयी पर कौन सा दबाव था। अटल बिहारी वाजपेयी बतौर प्रधानमंत्री 2003 मे बीजिंग गए थे। उन्होंने बीजिंग दौरे के दौरान आधिकारिक तौर पर तिब्बत को चीन के अधीन मान लिया।

भारत-चीन सीमा पर तनाव के नौ सप्ताह बीत गए हैं। लद्दाख में चीनी सेना अभी तक पीछे नहीं हटी है। यही नहीं जहां घुसपैठ की है वहां अपनी ताकत को चीन और बढ़ा रहा है। सैन्य स्तर पर हुई बातचीत का कोई हल नहीं निकला है। कूटनीतिक स्तर पर भी कोई सफलता नहीं मिली है। तनाव लंबा चल सकता है। चीन पैंगोंग लेक और गलवान घाटी में भारतीय इलाकों से पीछे हटने को तैयार नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लेह जाकर वापस दिल्ली लौट आए है। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना फिर से एक चेतावनी जारी की है। दूसरी तरफ चीन के राजनयिक और टॉप लीडरशीप बहुत ही शांत तरीके से  बगैर उतेजना के भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने का खेल कर रहे है। उनमें उतेजना नहीं दिखती है, लेकिन जमीन पर भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर चीन नहीं छोड़ रहा है। 

यही भारतीय कूटनीति की विफलता है। भारतीय कूटनीति पर कई सवाल है। कश्मीर से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक चीन ने भारतीय सीमा में घुसपैठ जारी रखी है। लेकिन भारतीय कूटनीति चीन को उचित जवाब देने की रणनीति बनाने में विफल है। दिलचस्प बात है कि जब पूरी दुनिया चीन को उइगर और तिब्बतियों के मानवाधिकारों के दमन पर घेर रही है,भारत ने आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है। इन मुद्दों पर भारत ने अभी तक कोई जुबान नहीं खोली है। तिब्बतियों के मानवाधिकार के मामले में भारत ने चीन के सामने समर्पण कर दिया। उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों को लेकर भारत ने आजतक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया। भारत के पास मौका था। जब कश्मीर में मानवाधिकार की हनन की बात चीन और पाकिस्तान उठाते रहे है तो भारत भी इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठा सकता था। 

उइगर मुस्लिमों का दमन चीन में लंबे समय से हो रहा है। पश्चिम चीन में शिंजियांग उइगर स्वायत्त रीजन में उइगरों का दमन पूरी दुनिया देख रही है। आज अपने मातृभूमि में उइगर अल्पसंख्यक होने की स्थिति में है। चीन उइगरों को अल्पसंख्यक बनाने के लिए हान चाइनीज आबादी उस इलाके में लबें समय से बसा रहा है। उइगर चीन से स्वतंत्रता चाहते है। उइगरों के स्वतंत्रता आंदोलन को चीन ने सख्ती से दबाया है। उइगरों शिंजियांग इलाके को स्वतंत्र मानते है। उनका तर्क है कि चीन ने इस इलाके पर जबरस्ती कब्जा किया। चीन ने इसे अपना उपनिवेश बनाया। चीन शिंजियांग को इतिहास के आधार पर चीन का हिस्सा बताता है।

हालांकि उइगर स्वतंत्रता आंदोलन और उनके दमन और उत्पीड़न को अंतराष्ट्रीय इस्लामिक मंचों और इस्लामिक देशों ने खुलकर समर्थन कभी नहीं किया। जो इस्लामिक देश कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात करते रहे वे उइगर मुसलमानों के दमन पर चुप रहे। चीन के दबाव में ताकतवर इस्लामिक देशों ने भी उइगरों को समर्थन नहीं किया। कश्मीर में मानवाधिकार का रोना रोने वाला पाकिस्तान भी उइगर मुसलमानों के दमन पर चुप है।ऑरगेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने भी उइगर मुसलमानों की आवाज उठाने की कोशिश नहीं की। एक दो बार उइगरों के दमन को लेकर आवाज आवाज उठाने की कोशिश की गई तो ताकतवर इस्लामिक देशों ने अपनें आर्थिक हितों को बचाए रखने के लिए आवाज दबा दी। 

सउदी अऱब, संयुक्त अरब अमीरात समेत कई मुस्लिम देशों ने उइगरों को समर्थन नहीं दिया। लेकिन इनके अपने आर्थिक हित चीन से जुडे है। पाकिस्तान अब पूरी तरह से चीनी निवेश पर निर्भर है। पहले भी पाकिस्तान हुक्मरान भारत से दुश्मनी के कारण चीन के साथ अच्छे संबंध बनाकर चलते रहे। पाकिस्तानी सेना ने चीन के कहने पर पाकिस्तान के अंदर सक्रिय उइगर आतंकियों पर कार्रवाई की। 2007 में तत्कालीन पाकिस्तानी तानाशाह परवेज मुशर्रफ के आदेश के बाद इस्लामाबाद स्थित लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई की गई। यह कार्रवाई चीन के कहने पर की गई थी। लाल मस्जिद का मौलाना उइगर अलगाववादियों को शरण दे रहा था। मस्जिद चीन विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन गया था। उइगर मसले पर कई और तेल उत्पादक इस्लामिक देश इसलिए चुप है कि चीन तेल का बड़ा आयातक देश है। चीन जैसे बड़े तेल बाजार को किसी भी कीमत पर सऊदी अरब, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश खोना नहीं चाहेंगे।

लेकिन भारत ने उइगरों के दमन पर चुप्पी क्यों साध रखी है? भारत चीन पर दबाव डालने के लिए उइगर मानवाधिकार हनन की आवाज उठा सकता है। जबकि उधर चीन खुलकर कश्मीर मसले पर पाकिस्तान के साथ है।भारत के खिलाफ अंतराष्ट्रीय मंचों पर साजिश कर रहा है। यही नहीं चीन खुलेआम धमकी दे रहा है कि कश्मीर में भारत की कार्रवाई चीन के आर्थिक हितों पर चोट पहुंचा सकती है। इसलिए भारत ज्यादा एडवेंचर न करे। चीन ने कश्मीर को लेकर भारत को खतरनाक परिणाम की चेतवानी लगातार दे रहा है। 

दरअसल चीन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और गिलगित बलतिस्तान में भारी निवेश किया है। यह इलाका भारत का है। भारत का आज भी इसपर दावा है। लेकिन चीन ने इन इलाकों में आर्थिक निवेश कर भारत को साफ संकेत दिया है कि इन इलाकों पर भारत की अब कोई दावेदारी नहीं बनती। चीन इन इलाकों पर भारत की दावेदारी स्वीकार नहीं करेगा। चीन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में रेल लाइन बिछा रहा है। बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट लगा रहा है। लेकिन भारत का दब्बूपन देखने वाला है। भारतीय हुक्मरानों ने चीनी हुक्मरानों के साथ हुई बैठकों में पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित बलटिस्टान में किए गए आर्थिक निवेश पर कोई सवाल नहीं उठाया। भारत के दावे वाले इलाके में चीन निवेश कर रहा है।

चीन कश्मीर मुद्दे पर लगातार भारत के खिलाफ साजिश रच रहा है। लेकिन भारत ने उइगर मुसलमानों पर अभी तक कुछ नहीं बोला। अपना कोई स्टैंड नहीं बताया। भारत ने जब कश्मीर को मिलने वाले विशेष दर्जे का संवैधानिक प्रावधान समाप्त किया तो अंतराष्ट्रीय मंचों पर चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। इसके बावजूद भारत चीन के दबाव में एक शब्द चीन में हो रहे मानवाधिकार हनन पर नहीं बोला। अब भारत चीन से किस दबाव में है, इसका जवाब वर्तमान हुक्मरानों को देना होगा? आखिर चीन ने भारत की कौन से कमजोरी पकड़ रखी है? दिलचस्प बात है कि एक तरफ हमारी सरकार कहती है कि भारत पीओके और गिलगित बलटिस्तान जरूर वापस लेगा। दूसरी तऱफ चीन ने पाकिस्तान के साथ मिलकर गिलगित बाल्टिस्तान में  डियामर बाशा डैम बनाने का काम शुरू कर दिया है।

बात यहीं खत्म नहीं होती। भारत ने चीन के दबाव में तिब्बतियों के हितों की बलि दे दी। चीन के अधीन तिब्बत स्वायत क्षेत्र को मान्यता देकर भारत ने बहुत भारी गलती की। आखिर अटल बिहारी वाजपेयी पर कौन सा दबाव था। अटल बिहारी वाजपेयी बतौर प्रधानमंत्री 2003 मे बीजिंग गए थे। उन्होंने बीजिंग दौरे के दौरान आधिकारिक तौर पर तिब्बत को चीन के अधीन मान लिया। यही नहीं भारत की वर्तमान सरकार भी चीन को विश्वास देती रही है कि तिब्बतियों को भारत की धरती से चीन विरोधी गतिविधियों को चलाने की अनुमति नहीं मिलेगी। जबकि तिब्बत में चीन घोर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। चीन अब दलाई लामा को लेकर भी भारत से अपनी शर्तों पर कुछ छूट चाहता है। 

चीन चाहता है कि वर्तमान दलाई लामा के बाद तिब्बत के धार्मिक गुरू के मामलो में चीन फैसला लेगा और उसे भारत मान ले। दिलचस्प बात है कि भारत के ढीले रवैये को देख अब दलाई लामा और तिब्बती आबादी भी सर्तक है। खबरें यह भी आती रही है कि दलाई लामा उनके सहयोगी अंदरखाते सीधे चीन से संपर्क में है। क्योंकि दलाई लामा और भारत में मौजूद तिब्बतियों को भारत की तिब्बत कुटनीति पर अब संदेह है।

ताजा मामला हांगकांग का है। पूरी दुनिया ने हांगकांग को लेकर अपना रूख स्पष्ट कर दिया है। हांगकांग में नया सिक्युरिटी एक्ट लागू हो गया है। चीन इस एक्ट के बहाने हांगकांग में दमन की तैयारी कर रहा है। हांगकांग में नए सिक्युरिटी एक्ट के तहत गिरफ्तारियां शुरू हो गई है। लोकतंत्र समर्थकों को चीनी प्रशासन अलगाववादी ठहराने के खेल में लग गया है। अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर आस्ट्रेलिया ने चीन की कार्रवाई को दमनकारी बताया है। चीन की निंदा की है।

भारत आश्चर्यजनक रूप से इस मुद्दे पर चुप है। हालांकि भारत हांगकांग को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया का बेशक पिछलग्गू न बने। लेकिन कम से कम सीमा पर तनाव के मद्देनजर हांगकांग के मुद्दे को भारत अपने हितों में इस्तेमाल तो कर सकता है। चीन को भारत कम से कम अहसास तो कराए कि चीन अगर भारतीय सीमा पर शरारत करेगा तो भारत हांगकांग के मुद्दे पर चीन को अंतराष्ट्रीय मंचों पर घेरेगा। लेकिन हमारे नेता तो चीन के नाम लेने से ही डरते है।

First Published on: July 6, 2020 9:38 AM
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