पिरपैंती थर्मल पावर प्लांट : अडानी के मुनाफ़े को नहीं, किसानों के हितों को प्राथमिकता देना राज्य की ज़िम्मेदारी हैं !

भागलपुर ज़िले के पीरपैंती क्षेत्र की 1,050 एकड़ भूमि को अडानी पावर को 33 वर्षों के लिए मात्र 1 रुपये प्रति एकड़ वार्षिक किराए पर देने का निर्णय बिहार में एक बड़ा राजनीतिक सवाल बन चुका है। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) इस अवैधिक और अपारदर्शी फैसले की कड़ी निंदा करता है, जो किसानों के अधिकारों, जनहित और पर्यावरणीय संतुलन को कॉरपोरेट मुनाफ़े के लिए थोपा जा रहा है। यह खुलेआम ‘क्रोनी कैपिटलिज़्म’ का उदाहरण है जो शासन में जनता के अविश्वास को और गहरा करता है I हम मांग करते हैं कि पीरपैंती थर्मल पावर प्रोजेक्ट को तुरंत रद्द किया जाए और प्रभावित किसानों को उनकी अधिग्रहित भूमि वापस दी जाए, साथ ही अब तक हुए नुक़सान की पूरी भरपाई और पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए।

यह सचमुच शर्म की बात है कि अडानी समूह, जो पहले से ही देश और विदेश में विवादों में फंसा हुआ है, को अब ₹29,000 करोड़ (3 अरब अमेरिकी डॉलर) की यह बड़ी परियोजना दे दी गई है। यह प्रक्रिया जवाबों से ज़्यादा सवाल खड़ी करती है। चुनाव नज़दीक हैं, इसलिए इस परियोजना को बड़े ‘रोज़गार देने वाले’ पहल के रूप में दिखाया जा रहा है, लेकिन आगे चलकर यह लम्बे समय तक बिहार की जनता और पर्यावरण पर बुरा असर डालेगी।

भूमि हड़पना और किसानों के साथ विश्वासघात

इस परियोजना की लगभग 1,050 एकड़ भूमि 915 किसानों की है, जिसमें से कई हिस्से उपजाऊ हैं और आम, लीची और अन्य फसलों की खेती में इस्तेमाल होते हैं। इस भूमि को “बंजर” घोषित करके अधिग्रहण किया गया। कई किसानों को मुआवज़ा नहीं मिला या उन्हें दस साल पहले तय किए गए पुराने दरों पर भुगतान किया गया। एक बार का मुआवजा जीवनभर की आजीविका और भूमि से जुड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संबंध की हानि की भरपाई नहीं कर सकता। यह उस संरचनात्मक असमानता को दिखाता है, जिसमें किसानों को पूंजीवाद के लाभोन्मुख ‘विकास’ में बलि का बकरा माना जाता है। विडंबना यह है कि जबकि सरकार दावा करती है कि उसके पास भूमिहीनों को देने के लिए भूमि नहीं है, वही हजारों एकड़ भूमि भारत के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूहों में से एक को लगभग मुफ्त में लीज़ पर देने को तैयार है। यह सामाजिक और आर्थिक विश्वासघात अत्यंत स्पष्ट और निर्लज्ज है।

निर्माण के चरण में पर्यावरणीय आपदा

पिरपैंती थर्मल पावर प्लांट, जिसे 2,400 मेगावाट कोयला आधारित संयंत्र के रूप में प्रस्तावित किया गया है, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए आपदा है। यह क्षेत्र पहले से ही काहलगाँव सुपर थर्मल पावर स्टेशन का केंद्र है, और एक और कोयला संयंत्र जोड़ने से मौजूदा प्रदूषण और बढ़ जाएगा। भागलपुर बार-बार भारत और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहा है। जनवरी 2024 में इसे भारत का दूसरा सबसे प्रदूषित और विश्व में 31वां सबसे प्रदूषित शहर दर्ज किया गया। पहले से ही प्रदूषित इस क्षेत्र में कोयले का बढ़ता उपयोग वायु और जल गुणवत्ता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाएगा, श्वसन संबंधी रोगों को बढ़ाएगा और लाखों लोगों, विशेष रूप से सबसे संवेदनशील वर्ग के जीवन को प्रभावित करेगा।

इस आपदा में और वृद्धि होगी क्योंकि 10 लाख पेड़ों की कटाई की योजना है, जिसका गंगा बेसिन के पारिस्थितिकी तंत्र पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा। भागलपुर गंगा के किनारे स्थित है, जो पहले से ही अत्यधिक दबाव में है। ऐसी परियोजनाएं सीधे इसके नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालती हैं और उन ‘नदी संरक्षण मिशनों’ की भावना का उल्लंघन करती हैं, जिनकी पैरवी सरकार करती है।

हरित ऊर्जा लक्ष्यों के साथ विरोधाभास

पिरपैंती परियोजना भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं के विपरीत है, जो पेरिस समझौते, उसके राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) और 2070 तक ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य के तहत की गई हैं। भारत सरकार और बिहार राज्य सरकार दोनों ने नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करने की बात कही है, फिर भी उनके कार्य एक विरोधाभासी और खतरनाक रास्ता दिखाते हैं, जो जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) पर निर्भरता को और गहरा करता है। वैश्विक स्तर पर संदेश स्पष्ट है: नई कोयला बिजली परियोजनाएँ उन जलवायु लक्ष्यों के साथ असंगत हैं, जिनकी आवश्यकता है कि हम विनाशकारी तापमान वृद्धि से बच सकें। भारत घरेलू स्तर पर अपने कोयला ढांचे का विस्तार करते हुए वैश्विक जलवायु नेतृत्व का दावा नहीं कर सकता।

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय इस विनाशकारी निर्णय को तुरंत वापिस लेने की मांग करता है और भागलपुर और पूरे बिहार के प्रभावित कृषि समुदायों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है।

प्रमुख मांगें:

  1. पिरपैंती थर्मल पावर परियोजना को तुरंत रद्द किया जाए, क्योंकि यह जलवायु, पर्यावरण और सामाजिक न्याय के मानदंडों का उल्लंघन करती है।
  2. अधिग्रहित भूमि को प्रभावित किसानों को लौटाया जाए और अब तक हुए किसी भी नुकसान के लिए पूरी पुनर्वास और मुआवज़ा सुनिश्चित किया जाए।
  3. विकास के नाम पर नई कोयला परियोजनाओं जैसे झूठे समाधानों को बढ़ावा देना बंद किया जाए – कोयला भारत के NDCs, नेट ज़ीरो लक्ष्य और पेरिस समझौते के साथ असंगत है।
  4. गंगा बेसिन की पारिस्थितिकी को खतरे में डालने वाली सभी परियोजनाओं को रोका जाए – भागलपुर केवल एक शहर नहीं, बल्कि गंभीर रूप से संकटग्रस्त नदी के किनारे स्थित जीवनरेखा क्षेत्र है।
  5. गंगा बेसिन की पारिस्थितिकी को खतरे में डालने वाली सभी परियोजनाओं को रोका जाए – भागलपुर केवल एक शहर नहीं, बल्कि गंभीर रूप से संकटग्रस्त नदी के किनारे स्थित जीवनरेखा क्षेत्र है।
  6. पर्यावरणीय विनाश का राजनीतिक उपकरण के रूप में उपयोग बंद किया जाए-चुनावों से ठीक पहले इस परियोजना को जल्दबाज़ी और चुपचाप तरीके से थोपने का निर्णय को उजागर कर, विरोध किया जाना चाहिए।
  7. विकेंद्रीकृत, अक्षय ऊर्जा समाधानों को प्राथमिकता दी जाए, जो सम्मानजनक रोजगार प्रदान करें, स्वास्थ्य की रक्षा करें और बिहार और अन्य क्षेत्रों के लिए दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करें।

हम नागरिक समाज, किसान संगठनों, जलवायु समूहों और सभी न्यायप्रिय नागरिकों से अपील करते हैं कि वे इस विनाशकारी ‘विकास’ मॉडल के खिलाफ़ आवाज उठाएं और गरिमा, पारिस्थितिकी और समता पर आधारित विकल्पों के लिए खड़े हों।

First Published on: October 3, 2025 9:16 AM
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