पटना। बिहार विधानसभा का पहला सत्र सदन के नेता अर्थात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सबसे बड़ी पार्टी व प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच निजी आक्षेपों के बौछारों के साथ समाप्त हुआ। राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर वाद-विवाद के दौरान आरोप-प्रत्यारोप का लंबा दौर चला। उम्मीद तो यह थी कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर में आरंभ हुए किसान आंदोलन का उल्लेख होगा या श्रम कानूनों में हुए संशोधन के खिलाफ आम हड़ताल का जिक्र होगा, पर सारा मामला चुनावों में हुई कथित धांधली और निजी आक्षेपों में सिमट गया। विधानसभा का यह पूरा सत्र पक्ष-विपक्ष की रस्साकस्सी में ही गुजरा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव में धांधली होने के विपक्ष के आरोपों को बकवास करार दिया और विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया कि इन आरोपों कीं जांच करा लें और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ कार्रवाई करें। इस दौरान दोनों पक्षों से कई ऐसी बातें भी उछली जिन्हें बाद में सदन की कार्रवाई से निकाल दिया गया।
इस दौरान मुख्यमंत्री अपना संतुलन खो चुके थे, यह साफ-साफ दिख रहा था। तेजस्वी ने चुनावी धांधली के अलावा एनडीए सरकार के दौरान राज्य में 60 बड़े घोटाले होने का आरोप भी लगाया जिसका उल्लेख वे चुनाव प्रचार के दौरान भी करते थे। इस घोटालों में उनके अनुसार लगभग 30 हजार करोड़ रुपयों की बंदरबांट हुई है। उन्होंने पूछा कि जदयू नेता मेवालाल चौधरी को मंत्री क्यों बनाया गया जिन पर भ्रष्टाचार का मामला चल रहा है और इसी वजह से पदभार संभालने के कुछ घंटे के भीतर उनसे इस्तीफा भी लेना पड़ा।
इन आरोपों के बीच मुख्यमंत्री उठे और कहा कि बकवास कर रहा है, झूठ बोल रहा है, इसके आरोपों की जांच हो और इसके खिलाफ कार्रवाई हो। उनके कुछ शब्दों को कार्रवाई से निकाल भी दिया गया है।
बहरहाल, विधानसभा के इस सत्र बल्कि सरकार के कार्यभार संभालते ही हंगामों की शुरुआत हो गई। सबसे पहले मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाने का सवाल उठा। उन पर भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय का कूलपति रहने के दौरान नियुक्ति घोटाला और दूसरे आरोपों में निगरानी ब्यूरो में मामला चल रहा है। हाईकोर्ट के रिटायर जज की जांच में उन्हें दोषी पाया गया था और उनकी सिफारिश पर ही निगरानी ब्यूरो में मामला दर्ज कराया गया था।
विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भी अच्छी खासी रस्साकस्सी हुई। बिहार में आमतौर पर सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने जाते रहे हैं। इस बार चुनाव हुआ। हालांकि गुप्त मतदान कारने की मांग को अस्थाई अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने स्वीकार नहीं किया और मतदान सार्वजनिक हुआ। उस दौरान मुख्यमंत्री और दो दूसरे मंत्री भी वहां उपस्थित थे। वे सभी विधान परिषद के सदस्य हैं। फिर वहां क्यों आए, इसे लेकर भी जोरदार हंगामा हुआ। पर अस्थाई अध्यक्ष ने विपक्ष के एतराज को नामंजूर कर दिया। इस तरह भाजपा उम्मीदवार विजय कुमार सिन्हा विधानसभा अध्यक्ष निर्वाचित हो गए।
इन हंगामों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि वर्तमान सरकार को कदम कदम पर विपक्ष के विरोध का सामना करना पडेगा। इस बीच वामपंथी पार्टियों के 16 विधायकों ने देश में चल रहे किसान व श्रमिक हड़ताल के समर्थन में विधानसभा परिसर में प्रदर्शन किया। विधानसभा का यह सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया है।