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नई दिल्ली। पीएचडी चैम्बर आॅफ काॅमर्स एंड इंडस्ट्री ने गुरुवार, को ‘सिकनेस टु वेलनेस थ्रू आयुष सिस्टम’ पर एक वेबिनार में अन्य उद्योग विश्लेषकों के साथ-साथ टोरंटो (कनाडा) स्थित बेस्ट आयुर्वेदा लिमिटेड के अध्यक्ष डाॅ. हरीश कुमार वर्मा को वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया। इस वेबिनार में भारत में दवाओं की भारतीय प्रणाली की बढ़ रही मांग और महत्ता पर विचार साझा किए गए।
डाॅ. हरीश ने इस अवसर पर कहा कि आयुर्वेद और दवाओं की एलोपैथिक प्रणाली, दोनों में ही औषधि के क्षेत्र में अपनी स्वयं की ताकत और सीमाएं हैं। जहां दवाओं की एलोपैथिक प्रणाली रोग की प्रमाण आधारित जांच में बेहद मजबूत है, वहीं आयुर्वेद में बीमारियों के लिए सामान्य, सुरक्षित, किफायती समाधान और दवाएं हैं, जबकि एलोपैथिक प्रणाली में इन्हें लाइलाज माना जाता है।
हाल के समय में, आईएमए और आयुर्वेद और योग चिकित्सकों के बीच काफी टकराव देखा गया है। डाॅ. वर्मा ने कहा कि एक-दूसरे के साथ टकराव पैदा करने के बजाय, दवाओं की दोनों प्रणालियों के चिकित्सकों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए और भारत के गरीब लोगों के लिए सुरक्षित और किफायती दवाएं मुहैया कराने की दिशा में मिलकर काम करना चाहिए।
डाॅ. वर्मा के अनुसार, कई एलोपैथिक चिकित्सक मौजूदा महामारी में अश्वगंधा, तुलसी, गिलाॅय, अर्जुन जैसी जड़ी-बूटियों के सेवन की सलाह दे रहे हैं। लेकिन कानूनी समस्याओं की वजह से अपने लेटरहेड पर इन जड़ी-बूटियों या हर्बल दवाओं के नाम लिखकर नहीं देते हैं। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट में बाल्य/पोषक औषधि का प्रावधान है।
यदि भारत सरकार इसे संसद में पास करा सकती है तो बाल्य/पोषक आयुर्वेदिक दवाओं को किसी भी पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा लिखकर दिया जा सकेगा और फिर एलोपैथिक चिकित्सक अपने पेशे में इन आयुर्वेदिक उत्पादों का इस्तेमाल करने में सक्षम हो जाएंगे। डाॅ. हरीश वर्मा ने कहा कि इन बाल्य/पोषक आयुर्वेदिक दवाओं के बारे में ड्रग्स अधिनियम में मामूली संशोधन से आयुर्वेद भारत और विदेशों में और ज्यादा लोकप्रिय हो जाएगा।