भारत स्वभाव से एक विषय है, यह लघु में दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है: प्रो. पीसी जोशी

भारतीय संस्कृति सहनशीलता, स्वीकार्यता और मिलान से जुड़ी हैं। उर्दू केवल इस्लाम मात्र से नहीं जुड़ा है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी ऐसे कई अन्य धर्मों के लेखक हैं जो उर्दू का इस्तेमाल करते हैं।

नई दिल्ली। राजधानी कॉलेज की सांस्कृतिक समिति संस्कृति द्वारा Culture Matters विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मुख्य अतिथि के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर पीसी जोशी उपस्थित रहे। सांस्कृतिक समिति की संयोजक डॉ. वर्षा गुप्ता ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि किस प्रकार संस्कृति किसी समाज के मायने को दर्शाती हैं और सामाजिक दर्पण को विश्व पटल पर रखती है।

राजधानी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश गिरि ने प्रोफेसर पीसी जोशी का कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि वह बहुत हर्ष में है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति आज शहीद दिवस के उपलक्ष में अपने व्यस्त समय में से कुछ क्षण राजधानी कॉलेज के साथ साझा करने आए हैं। डॉ. राजेश गिरि संस्कृति के उद्भव और विकास को अधिक महत्व देते हुए अपने वक्तव्य में कहते हैं कि संस्कृति मानव से जुड़ी हुई है और संस्कृति के विकास से मानव का विकास होता है जो बेहतर समाज निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

प्रोफेसर पीसी जोशी ने संस्कृति के महत्व को समझाते हुए कहा कि गत वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय में पाठ्येतर गतिविधियों के प्रवेश सफलतापूर्वक हुआ करते थे लेकिन कोविड-19 की वजह से पाठ्येत्तर गतिविधियों के प्रवेश एक चुनौती थी लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय ने कड़ी मेहनत से इस चुनौती को भी सफलतापूर्वक पार किया और कला और संस्कृति का आयाम बरकरार रखा इसके साथ ही वसंतोत्सव जैसे अन्य कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक ऑनलाइन संपन्न किया।

कोविड-19 जैसी महामारी जो आपदा के रूप में सभी के बीच आई थी उसको दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों शिक्षकों और प्राचार्य द्वारा अवसर के रूप में देखा गया और बहुत सारे कार्यक्रम ऑनलाइन माध्यम से सफलतापूर्वक संपन्न कराए गए। दिल्ली विश्वविद्यालय केवल एक शैक्षिणिक संस्थान मात्र नहीं बल्कि दर्शन का विचार है और संस्कृति त्योहारों को और उत्सवों को मनाना मात्र नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष की पहचान है, अद्वितीय पहनावा है और दार्शनिक कथन है वहीं भारत स्वयं में एक विश्व है।

संगोष्ठी के द्वितीय दिवस का प्रथम सत्र संस्कृति और विरासत विषय केंद्र पर आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर रविन्द्र कुमार, पूर्व कुलपति ने की।

इस सत्र में प्रोफेसर इम्तियाज़ ने सांस्कृतिक विरासत और साहित्य विषय पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसी संस्कृति की आत्मा उसके साहित्य में दिखती है और भारतीय संस्कृति सहनशीलता, स्वीकार्यता और मिलान से जुड़ी हैं जहां वे बताते हैं कि उर्दू केवल इस्लाम मात्र से नहीं जुड़ा है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी ऐसे कई अन्य धर्मों के लेखक हैं जो उर्दू का इस्तेमाल करते हैं।

पटना के केपी जायसवाल अनुसंधान संस्था के निर्देशक डॉ. बिजॉय चौधरी ने अपने वक्तव्य में पुरातात्विक विरासत और संस्कृति की बात की। वे अपने वक्तव्य में बताते हैं कि किस प्रकार विरासत में सांस्कृतिक झलक दिखाई देती है, फिर चाहे स्मारकों को ही उदाहरण में क्यों न लिया जाए। साथ ही बिहार की सांस्कृतिक धरोहरों जैसे नालंदा विश्वविद्यालय का उदाहरण ले कर वे पुरातात्विक विरासत को समझाते हैं।

अम्बेडकर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ऋतु सिन्हा अपने वक्तव्य में संस्कृति में चित्रण का जिक्र गीताप्रेस गोरखपुर के उद्भव, उसकी सांस्कृतिक झलक, और विरासत के विकास का उदाहरण लेकर अपनी प्रस्तुति रखती हैं। वे समझती हैं कि गीताप्रेस द्वारा भारतीय संस्कृति का अमूल्य चित्रण अपनी पुस्तकों द्वारा किया गया जिसमें कई पुस्तकें और उनकी विरासत को पाठको के समक्ष रखा गया है। साथ ही क्षेत्र के साथ सांस्कृतिक झलक की विविधता पर भी प्रस्तुति प्रोफेसर ऋतु सिन्हा द्वारा वक्तव्यित किया गया।

नालंदा विश्वविद्यालय से पधारी अस्मिता सिंह ने अपने वक्तव्य में संस्कृति से जुड़े गणवेश नृत्य और संगीत को लेकर बातें रखीं। और विभिन्न संस्कृतियों के गीत, नृत्य, गणवेश, खानपान संबंधी कई आयामों को छुआ और भारतीय संस्कृति की गहराई को श्रोताओं के बीच में रखा। इसके साथ ही उन्होंने सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रयास करने वाले लोगों पर भी अपने वक्तव्य में प्रकाश डाला।

अगला सत्र संस्कृति और भाषा विषय पर आयोजित किया गया। सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर हरीश नारंग ने की। प्रोफेसर हरीश नारंग आंग्ल विभाग, अंबेडकर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।

First Published on: March 23, 2021 6:19 PM
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