रांची। प्याली में तूफान वाली कहावत तो हम सबने सुनी है, लेकिन झारखंड में पिछले 80 दिनों से जिस सियासी तूफान ने हलचल मचा रखी है उसकी वजह है एक लिफाफा। इस लिफाफे के भीतर जो चिट्ठी है, वह झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बारे में है और इस चिट्ठी का मजमून बांचने का अधिकार झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस के पास है।
यह चिट्ठी भारत के चुनाव आयोग की है, जो राज्यपाल के ठिकाने पर बीते 25 अगस्त को ही पहुंच चुकी है। चिट्ठी में लिखा क्या है, इसे राज्यपाल जब तक नहीं बांचते झारखंड की सत्ता और सियासत में बेचैनी बनी रहेगी। बहरहाल, आइए टाइमलाइन के जरिए समझते हैं कि इस चिट्ठी को लेकर गवर्नर और सीएम के बीच तनातनी में शुरूआत से लेकर अब तक क्या-क्या हुआ और आगे क्या कुछ होने वाला है।
10 फरवरी : पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने एक प्रेस कांफ्रेंस में दस्तावेज जारी कर बताया कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए रांची जिले के अनगड़ा मौजा, थाना नंबर-26, खाता नंबर-187, प्लॉट नंबर-482 में खुद अपने नाम पर पत्थर खदान की माइनिंग लीज ली है। उन्होंने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 9 के तहत गैरकानूनी कृत्य बताते हुए सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
11 फरवरी : झारखंड के दो पूर्व सीएम रघुवर दास और बाबूलाल मरांडी की अगुवाई में भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल राजभवन जाकर राज्यपाल से मिला और उन्हें ज्ञापन सौंपकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित करने और कानून सम्मत कार्रवाई की मांग की।
मार्च : राज्यपाल रमेश बैस ने भाजपा नेताओं की शिकायत और उपलब्ध कराए गए दस्तावेज के आधार पर केंद्रीय चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मंतव्य मांगा कि क्या यह मामला जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9 ए के तहत आता है और इसपर क्या कार्रवाई की जानी चाहिए।
8 अप्रैल : राज्यपाल के पत्र के आलोक में चुनाव आयोग ने झारखंड के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर हेमंत सोरेन के नाम पर माइन्स लीज आवंटन के कागजात मांगे।
27 अप्रैल : मुख्य सचिव ने चुनाव आयोग को खनन लीज आवंटन के मामले में 600 पेज का दस्तावेज और जवाब भेजा।
2 मई : चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस मामले में नोटिस भेजा और 10 मई तक जवाब मांगा।
10 मई : हेमंत सोरेन ने चुनाव आयोग को जवाब देने के लिए 10 दिन का समय मांगा। आयोग ने 20 मई 2022 तक जवाब देने का समय दिया।
20 मई : हेमंत सोरेन ने अपना जवाब विशेष दूत के माध्यम से चुनाव आयोग को भिजवाया।
31 मई : चुनाव आयोग ने 31 मई को इस मामले में हेमंत सोरेन से स्वयं या अपने वकीलों के माध्यम से जवाब मांगा। सीएम ने पुन: समय की मांग की, तब आयोग ने पहले 14 जून और 28 जून की तिथि निर्धारित की।
28 जून : चुनाव आयोग में पहली बार सुनवाई हुई। शिकायत कर्ता भाजपा की ओर से वकीलों ने इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बताते हुए कार्रवाई की मांग की। हेमंत सोरेन के वकीलों ने इस पर विरोध जताया। आयोग ने अगली सुनवाई के लिए 14 जुलाई का समय दिया।
14 जुलाई, 8 अगस्त, 12 अगस्त और 18 अगस्त : चुनाव आयोग ने इन अलग-अलग तारीखों में सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
25 अगस्त : दिन के साढ़े 10 बजे चुनाव आयोग के विशेष दूत ने झारखंड के राज्यपाल को सीलबंद लिफाफे में अपना मंतव्य भेज दिया। इस दिन राज्यपाल रमेश बैस अपने इलाज के सिलसिले में दिल्ली में थे। दोपहर बाद जब वह लौटे तो एयरपोर्ट पर मीडिया के सवाल पर कहा कि उन्हें चुनाव आयोग से आई चिट्ठी के बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है।
शाम होते-होते इस बारे में मीडिया में सूत्रों के हवाले से खबर चलने लगी कि चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है। भाजपा के कई नेताओं ने भी इसी आशय का ट्वीट किया। सीएम हेमंत सोरेन ने भी ट्वीट किया- संवैधानिक संस्थानों को तो खरीद लोगे, जनसमर्थन कैसे खरीद पाओगे? ..यहां की जनता का समर्थन ही मेरी ताकत है। हैं तैयार हम! जय झारखंड!
26 अगस्त : कयास लगाए जाने लगे कि चुनाव आयोग की अनुशंसा पर राज्यपाल कार्रवाई करते हैं तो हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म होगी और उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। इन अनिश्चितताओं के बीच सीएम आवास में सुबह और शाम में महागठबंधन विधायक दल की बैठक हुई। राजभवन से चुनाव आयोग की अनुशंसा पर आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई।
27 अगस्त : राजभवन से तीसरे दिन भी चुनाव आयोग की अनुशंसा के बारे में आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई। यूपीए विधायकों की फिर से सीएम हाउस में बैठक हुई और उसके बाद सभी विधायक रांची से 40 किमी दूर खूंटी में एक रिजॉर्ट पहुंचे। देर शाम को रांची लौटे सभी विधायक।
28 अगस्त : यूपीए ने सीएम हाउस में बैठक की और उसके बाद केंद्र सरकार से लेकर राजभवन पर जोरदार हमला बोला। हेमंत सोरेन सरकार के तीन मंत्रियों सहित 11 विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि राज्यपाल और चुनाव आयोग अपना फैसला तत्काल सार्वजनिक करें। हमारे गठबंधन को पूर्ण बहुमत है। इसके बावजूद अगर उनमें हिम्मत है तो धारा 356 लगाकर हमारी सरकार को बर्खास्त ही कर दें।
29 अगस्त : सीएम हेमंत सोरेन ने आरोप लगाया कि केंद्र की सरकार देश के आधे से ज्यादा राज्यों की सरकारों को गिराने की साजिशों में लगी है। ऐसे में पता नहीं इस देश का भविष्य क्या होगा? इधर, झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने दुमका में लड़की को पेट्रोल डालकर जलाए जाने की घटना को लेकर राज्य की विधि-व्यवस्था पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता घर, दुकान, मॉल, सड़क कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है।
30 अगस्त : चुनाव आयोग की चिट्ठी के बारे में राजभवन की चुप्पी कायम रही। इससे उपजी राजनीतिक अनिश्चितता के बीच सत्ताधारी गठबंधन के विधायक स्पेशल फ्लाइट से रायपुर के लिए रवाना हुए। सभी विधायक रायपुर के एक रिजॉर्ट में ठहराये गये। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि विधायकों की खरीद-फरोख्त की साजिश हो रही है।
1 सितंबर : जेएमएम-कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर चुनाव आयोग की चिट्ठी पर स्टैंड साफ करने की मांग की। यूपीए नेताओं ने राजभवन से निकलकर बताया कि राज्यपाल ने उनसे कहा है कि निर्वाचन आयोग का पत्र राजभवन को मिला है। इस पत्र के कंटेंट पर वह विधि विशेषज्ञों से परामर्श ले रहे हैं और जल्द ही स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। इधर राज्य सरकार की कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें तय किया गया कि 5 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरकार विश्वास मत का प्रस्ताव पारित करेगी। इसी दिन रायपुर में विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस कर रहा कि राज्य में लोकतंत्र का तमाशा बनाया जा रहा है।
4 सितंबर : विधानसभा के विशेष सत्र में भाग लेने के लिए यूपीए के विधायक रायपुर से रांची लाए गए। सभी को एक साथ सर्किट हाउस और सरकारी विश्राम गृहों में कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया।
5 सितंबर : विधानसभा के विशेष सत्र में सरकार ने विश्वास मत प्रस्ताव पारित कराया। 82 सदस्यीय सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में 48 मत पड़े, जबकि भाजपा और आजसू पार्टी के सदस्यों ने मत विभाजन के समय सदन का बहिष्कार कर दिया।
15 सितंबर : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर उनसे चुनाव आयोग की अनुशंसा पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग की। ज्ञापन सौंपकर चुनाव आयोग के मंतव्य की कॉपी देने का आग्रह किया। हेमंत सोरेन के अधिवक्ता ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर अनुशंसा की कॉपी देने की मांग की।
23 सितंबर : रांची में एक कार्यक्रम के बाद मीडियाकर्मियों ने राज्यपाल से पूछा कि चुनाव आयोग से आया लिफाफा कब खुलेगा? इसपर राज्यपाल ने मजाकिया अंदाज में कहा कि लिफाफा इतनी जोर से चिपका है कि खुल नहीं रहा। इधर, चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन के अधिवक्ता को सूचित किया कि राज्यपाल को भेजी गई चिट्ठी की उसकी प्रति उन्हें दी जा सकती। यह दो संवैधानिक अथॉरिटी के बीच का मामला है।
15 अक्टूबर : झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अगर मैं मुजरिम हूं तो चुनाव आयोग और राज्यपाल मुझे सजा सुनायें। उन्होंने कहा कि मैं वाकई गुनहगार हूं तो मुख्यमंत्री के पद पर मैं कैसे बना हुआ हूं? सीएम ने कहा, केंद्रीय एजेंसियां जिस र्ढे पर काम कर रही हैं, उससे यही लगता है कि उनके पीछे कोई शक्ति है जिनके इशारे पर चलने को वो मजबूर हैं।
26 अक्टूबर: राज्यपाल रमेश बैस ने रायपुर में एक निजी चैनल को दिये इंटरव्यू में कहा कि झारखंड में एकाध एटम बम फट सकता है, क्योंकि पटाखे पर दिल्ली में बैन है झारखंड में नहीं। उन्होंने कहा कि सीएम हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में उन्होंने चुनाव आयोग से सेकंड ओपिनियन मांगा है। इसके बाद निर्णय लेंगे।
31 अक्टूबर : हेमंत सोरेन के वकील वैभव तोमर ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर सेकेंड ओपिनियिन के लिए राज्यपाल की ओर से लिखे गए पत्र की प्रति उपलब्ध कराने की मांग की।
7 नवंबर : चुनाव आयोग ने हेमंत सोरेन के वकील को सूचित किया कि सेकेंड ओपिनियन को लेकर झारखंड के राज्यपाल की ओर से आयोग को ऐसा कोई संदेश नहीं मिला है।
अब आगे क्या होगा?
जानकारों का कहना है कि राज्यपाल के पास अधिकार है कि वे चुनाव आयोग की अनुशंसा पर कब कार्रवाई करें। ऐसे में आशंका बरकरार है कि राज्यपाल अगर चुनाव आयोग की अनुशंसा के अनुसार अगर हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द करते हैं तो उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है।
हालांकि अगर उन्हें आगे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं घोषित किया जाता है तो वे इस्तीफा देने के तुरंत बाद खुद को यूपीए विधायकों का नेता बताते हुए दुबारे सीएम पद पर शपथ के लिए दावेदारी पेश कर सकते हैं। ऐसा होने पर राज्यपाल को उन्हें पुन: सीएम पद की शपथ दिलानी पड़ेगी और हेमंत सोरेन छह महीने के अंदर किसी सीट से चुनकर दुबारा विधानसभा सदस्य बन सकते हैं।
अगर राज्यपाल ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया तो हेमंत सोरेन की जगह कोई दूसरा चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में सामने आ सकता है। कुल मिलाकर, झारखंड फिलहाल अनिश्चितताओं के बीच एक पॉलिटिकल क्राइसिस में फंसा हुआ है।