
श्रीनगर। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र में निदेशक डॉ. सुधांशु जायसवाल पर गंभीर आरोप लगे हैं। विभाग की प्राध्यापिका डॉ. अमिता ने डॉ. जायसवाल पर लंबे समय से प्रताड़ना, अभद्र व्यवहार, और बिना कारण वेतन काटने का आरोप लगाया है। इसके अलावा, विभाग में कार्यरत कैमरापर्सन अरुणा रौथान के साथ भी दुर्व्यवहार और झूठे आरोपों का मामला सामने आया है।
डॉ. अमिता ने बताया कि कुलपति से स्वीकृत छुट्टी के बावजूद डॉ. जायसवाल ने उनका वेतन काटा और पीछा करने जैसे अभद्र व्यवहार किए। इस संबंध में उन्होंने 7 अप्रैल को प्रभारी कुलपति प्रो. एम.एम.एस. रौथान को शिकायत की, जिसके बाद 25 और 30 अप्रैल को स्मरण पत्र भेजे गए। हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। 26 अप्रैल को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) में सुनवाई हुई, लेकिन समिति को मूल शिकायत की जानकारी तक नहीं थी। चार महीने बाद भी कोई कार्रवाई न होने से राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग ने तत्काल कदम उठाने का आदेश दिया, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है।
इसी बीच, अरुणा रौथान के साथ दुर्व्यवहार का मामला भी उजागर हुआ। आरोप है कि डॉ. जायसवाल, डॉ. साकेत भारद्वाज, और सहायक प्राध्यापक हर्षवर्धिनी शर्मा ने अरुणा पर झूठे आरोप लगाकर हर्षवर्धिनी को बचाने की कोशिश की। सूत्रों के अनुसार, डॉ. जायसवाल पर पहले भी कई महिलाओं और छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार के आरोप लग चुके हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उनका बचाव किया जाता रहा है।
भ्रष्टाचार के भी गंभीर आरोप
डॉ. जायसवाल पर पद के दुरुपयोग, अनुपस्थित रहने के बावजूद पूरा वेतन लेने, और अपने चहेतों को बिना उपस्थिति के वेतन देने जैसे भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं। डॉ. साकेत भारद्वाज और हर्षवर्धिनी शर्मा के खिलाफ भी कई शिकायतें दर्ज हैं, लेकिन प्रशासन की मेहरबानी से वे नियमविरुद्ध सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। समिति ने स्वीकार किया है कि डॉ. जायसवाल का व्यवहार महिलाओं के प्रति अनुचित है और विभाग का माहौल शैक्षणिक व व्यावहारिक रूप से ठीक नहीं है। इसके बावजूद कोई सजा न मिलना चिंता का विषय बना हुआ है।
सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने खोला मोर्चा
इस मामले ने अब तूल पकड़ लिया है। उत्तराखंड के बुद्धिजीवी, पूर्व विद्यार्थी, पत्रकार, और कई संगठनों ने डॉ. जायसवाल के कथित काले कारनामों को उजागर करते हुए तत्काल कार्रवाई की मांग की है। सामाजिक संगठनों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता के कारण दोषियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं।
विश्वविद्यालय प्रशासन की चुप्पी
पूर्णकालिक कुलपति प्रो. श्री प्रकाश सिंह के संज्ञान में मामला होने के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग के बार-बार स्मरण पत्र भेजने के बाद भी कार्रवाई में देरी से सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों और संगठनों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की चेतावनी दी है।