
वैश्विक महामारी कोविड-19 सभी लोगों को प्रभावित कर रही है लेकिन इसका असर हर किसी पर एक जैसा नहीं है। 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस ने अपने संदेश में आगाह किया है कि कोरोनावायरस संकट के कारण स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ बढ़ा है और महिलाओं व लड़कियों के यौन व प्रजनन स्वास्थ्य की उपेक्षा हो रही है जो गहरी चिन्ता का विषय है। उन्होंने कहा कि आइए हम महिलाओं के यौन शोषण से उनकी रक्षा करें और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल के लिए कार्य करें। उन्होंने दुनिया के देशों से जोर देकर कहा कि वो महिलाओं एवं लड़कियों के स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा करें। महासचिव ने यह भी कहा की लिंग आधारित हिंसा को समाप्त करने का हमे संकल्प लेना होगा।
विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि कोरोना महामारी ने हमारी चुनौतियों को और भी बड़ा और सघन कर दिया है। इसे और कठिन बना दिया है, लेकिन इसे अपने संकल्प से जीतना होगा। गुटेरेस ने कहा कि महामारी ने समाज में व्याप्त असमनताओं की खाई को और बड़ा कर दिया है। दुनिया में महिलाएं और लड़कियों की समस्याएं और भी जटिल हुईं हैं।
Sexual & reproductive health is a crucial public health issue that demands urgent investment.
All women & girls must have access to sexual & reproductive health services, including maternal health & access to safe birth. #WorldPopulationDay
👉 https://t.co/YMiCKnrxDM pic.twitter.com/PkSLkEnwJj— UNFPAasia (@UNFPAasia) July 10, 2020
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन से कई देशों की स्वास्थ्य प्रणालियां पूरी तरह से ध्वस्त हो गईं हैं। महासचिव ने कहा कि इसका सीधा असर महिला स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहा है, जिसके चलते लिंग आधारित हिंसा में वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की रिपोर्ट बताती है कि अगर लॉकडाउन छह महीने तक जारी रहता है तो इसका सीधा असर अल्प और मध्यम आय वर्ग वाली 4.7 करोड़ महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा। महासचिव ने कहा इसमें 70 लाख महिलाएं अनचाहा गर्भधारण करेंगी और 31 करोड़ महिलाएं लिंग आधारित हिंसा का शिकार होंगी।
महासचिव ने कहा कि प्रत्येक वर्ष लाखों लड़कियों को उन प्रथाओं के अधीन किया जाता है, जो उन्हें शारीरिक और भावनात्मक रूप से नुकसान पहुंचाती है। उन्होंने 2020 की विश्व जनसंख्या का हवाला देते हुए कहा कि हर वर्ष 12 करोड़ लड़कियों को शादी के लिए मजबूर किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि कोरोना महामारी के कारण वैश्विक लॉकडाउन से यह स्थिति और बदतर होगी। संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि अनुभव और शोध यह बताते हैं कि निचले वर्ग में लिंग-आधारित मानदंडों और दृष्टिकोणों को बदल सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की कार्यकारी निदेशक नतालिया कानेम ने इस अवसर पर अपनी बात रखने हुए कहा कि महिलाओं को यह निर्णय ख़ुद लेने का अधिकार है कि वह गर्भवती होना चाहती भी हैं या नहीं, या फिर कब और कितनी बार गर्भ धारण करना चाहती हैं। यूएन एजेंसी प्रमुख कानेम ने ध्यान दिलाया कि 20 करोड़ से ज़्यादा महिलाएँ और लड़कियाँ गर्भधारण में देरी या उसे रोकना चाहती हैं लेकिन इसे सम्भव बनाने के हमारे पास संसाधन नहीं हैं। अनचाहे गर्भधारण, असुरक्षित गर्भपात, और गर्भवती लड़कियों द्वारा स्कूलों में झेली जाने वाली शर्मिंदगी के कारण महिलाओं व लड़कियों की मौत हो रही है।