
देश आज विषम परिस्थितियों से
गुजर रहा है। हम दिनोंदिन एक हिंसक समाज बनने की तरफ अग्रसर हैं। एक ऐसा समाज
जिसमें तर्क, तथ्य और वैज्ञानिक चेतना को दरकिनार कर अंधविश्वास, रूढ़िवाद, भाग्यवाद, कट्टरता और पुरातनपंथ को बढ़ावा
दिया जा रहा है। संविधान के आदर्शों को ताक पर रखकर एक खास विचारधारा के तहत
सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ा जा रहा है। इसका विरोध करने वालों को देशद्रोही, पाकिस्तान समर्थक और ईसाई- मुस्लिमों का एजेंट बताया जा रहा है।
देश की सत्ता पर आज
हिंदुत्ववादी आरूढ़ हैं। लेकिन इनकी आस्था देश के संविधान की बजाए एक संगठन की
संकीर्ण सोच पर है। 2019 के आम चुनाव में एक बार फिर भारी बहुमत के
साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई है। यह एक चुनी हुई सरकार
है। लेकिन सवाल यह है कि संघ-बीजेपी सरकार जो कर रही है क्या वह संविधान के
आदर्शों के अनुरूप है? क्या यह सरकार जनता की आशा-आकांक्षा पर खरा साबित हो रही है? क्या वर्तमान सरकार हमारे देश
के नागरिकों, संविधान, सांस्कृतिक विरासत और आजादी के
संघर्षों से निकले मूल्यों की हिफाजत कर रही है?
संघ-बीजेपी सरकार 2014 से
ही विपक्ष को नकारा, भ्रष्ट और विकास विरोधी होने का
अभियान चला रही है। इस प्रक्रिया में न सिर्फ विपक्ष बल्कि निष्पक्ष पत्रकारों, बुदिधजीवियों और सामाजिक कार्यों में लगे व्यक्तियों को भी निशाना बनाया
जा रहा है। एक सचेत प्रयास के तहत देश में असहमति को समाप्त करने का छद्म युद्ध
छेड़ दिया गया है। अब देश में राजनीतिक विरोधियों और वैचारिक असहमति रखने वाले के
लिए बहुत सीमित जगह बची है। सत्ता संरक्षित उन्माद चरम पर है तो अभिव्यक्ति की
आजादी खतरे में है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा
लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष राज्य है। लंबी गुलामी और लाखों लोगों की शहादत के बाद
मिली आजादी के बाद हमारे संविधान निर्माताओं ने देश के नवनिर्माण का एक सपना देखा
था। स्वतंत्रता के बाद से ही हम उसे साकार करने में लगे रहे। देश उस रास्ते पर चल
पड़ा जहां जाति-धर्म, रंग-रूप और अमीरी-गरीबी के कारण किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा। कमजोर
व्यक्ति और अल्पसंख्यक समुदाय को भी वही अधिकार दिया गए जो मजबूत और बहुसंख्यक
समुदाय के पास है। भारत जैसे बहुभाषी, बहुधार्मिक –
बहुनस्लीय और सांस्कृतिक विविधता वाले देश के नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य को
संविधान में सूचीबद्ध किया गया। देश में किसी धर्म, पंथ
या परिवार को कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया।
हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने
वयस्क मताधिकार को सरकार चुनने का आधार बनाया। देश के किसी भी नागरिक को चुनाव
जीतकर संसद-विधानसभाओं में जाने का अवसर प्रदान किया। जन्म के आधार पर प्राप्त
विशेषाधिकारों और भेदभाव को कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया। कानून की नजर में
सब बराबर हो गए। अब कोई गरीब भी चुनाव जीत कर देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर पहुंच
सकता है। यह सिर्फ सिद्धांत की बात नहीं है। ऐसा बताया जाता है कि देश के वर्तमान
प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी भी एक गरीब घर में पैदा हुए, अभावों के
बीच पले-बढ़े और आज दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री हैं। यह भारत के संविधान और लोकतंत्र का करिश्मा है।
सन् 2014 में
जब मोदी जी प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे और देश में
चुनाव प्रचार कर रहे थे तो उन्होंने देशवासियों को कई सपने दिखाए थे और उनकी
बेहतरी के कई वादे किए थे। भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, गरीबी और
बेरोजगारी से देश को मुक्त करके सबका विकास करने का वादा किया था। पिछली सरकारों
का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि अब देश में किसी एक परिवार का नहीं बल्कि
कानून का शासन होगा। लेकिन पिछले पांच साल में देश में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसे सभ्य
समाज में सही नहीं ठहराया जा सकता। संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया
गया। एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया गया और उनकी देशभक्ति पर सवाल खड़े किए गए।
केंद्र सरकार के कई मंत्री सरकार से असहमति रखने वालों को देशद्रोही-गद्दार और
कम्युनिस्ट का तमगा देते रहे और प्रधानसेवक जी मौन रहे।
क्षेत्रीय दलों के नेताओं को सीबीआई के माध्यम से परेशान करने का षडयंत्र रचा गया।
पिछले पांच सालों में दूसरे दलों के विधायकों-सांसदों को भय और प्रलोभन देकर भाजपा
में शामिल करने का खुला खेल जारी है। ये तो रही राजनीति की बात, अब समाज के स्तर पर क्या कुछ हुआ उसको देखते हैं।
इस सरकार के आने के बाद से देश
में संघ-भाजपा के संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं की भीड़ दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और राजनीतिक विरोधियों
पर संगठित हमले कर रहे हैं। देश भर में संगठित भीड़ ने गो-तस्करी, बच्चा चोरी और दूसरी तरह के गलत आरोप लगाकर सैकड़ों लोगों को जान से मार
दिया। मीडिया में इसे मॉब लिचिंग के नाम से जाना जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि
शासन-प्रशासन ने मॉब लिंचिंग को रोकने की दिशा में कोई कारगर प्रयास नहीं किया।
उल्टे मोदी के मंत्रियों और सांसदों ने बेगुनाहों की हत्या में शामिल आरोपियों का
सार्वजनिक अभिनंदन किया।
देश के तमाम निरीह और बेगुनाहों
के साथ मैं भी व्यक्तिगत रूप से मोदी सरकार के कुशासन का भुक्तभोगी रहा हूं।
झारखंड में संघ-बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने मेरे ऊपर जानलेवा हमला किया। विगत 50 वर्षों
से देश-विदेश में मेरी पहचान आर्य समाज के प्रवक्ता और सामाजिक-राजनीतिक
कार्यकर्ता की रही है। लेकिन मुझ पर क्रिश्चियन मिशनरियों से मिल कर धर्मांतरण
करवाने का आरोप लगाया गया। मोदी शासन में न सिर्फ मुसलमानों बल्कि सामाजिक कार्यों
में लगे व्यक्तियों, संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं को
फॉरेन –फंडिंग पर पलने वाला बताते हुए विदेशी आकाओं के
इशारों पर देश विरोधी काम करने वाला बताया जा रहा है। जबकि अभी तक किसी एक संस्था
या व्यक्ति पर यह आरोप सिद्ध नहीं हो सका है। केंद्र सरकार के कई मंत्री हर विरोधी
को मुस्लिम समर्थक बताकर पाकिस्तान भेजने की बात करते रहे हैं। यह हमारे देश के
धर्मनिरपेक्ष चरित्र के साथ खिलवाड़ और नागरिक अधिकारों का अपमान है। सबसे बड़ी
बात यह है कि इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार अंकुश लगाने का कोई
इरादा नहीं रखते हैं। पूरे देश में एक उन्माद और छद्म राष्ट्रवाद का माहौल बनाया
जा रहा है। हर समस्या के लिए कांग्रेस, नेहरू, इंदिरा, कम्युनिस्ट, लिबरल और बुद्धिजीवियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। इस काम में
संघ-बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के साथ ही मीडिया भी लगी है। आज संघ समर्थित
हिंसक भीड़ ख़ुद को सही मानती है और अपनी हिंसा को व्यवहारिक एवं ज़रूरी बताती है।
यह भीड़ पहलू खान, अफ़राजुल, अख़लाक़ की हत्या और कठुआ व उन्नाव बलात्कार के मामले में अभियुक्तों के
बचाव में तर्क गढ़ती है। मोदी शासन में भीड़ ख़ुद ही न्याय और नैतिकता के दायरे तय
करना चाहती है।
प्रधानमंत्री बनने के पहले से
ही मोदी जी ने विदेशों में जमा भ्रष्ट नौकरशाहों औऱ राजनेताओं के कालेधन को लाकर
देश को खुशहाल बनाने का वादा किया था। लेकिन आज तक विदेशों से कोई कालाधन वापस
नहीं आया। बल्कि देश में मौजूद तथाकथित कालाधन को बाहर लाने के लिए 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का ऐलान कर दिया। कहा गया कि इससे नकली नोट के सर्कुलेशन, आतंकवाद और नक्सलवाद आदि गतिविधियों में लगाम लगेगी। लेकिन इसके घोषणा के
बाद से ही आज तक आम जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बैंकों में पैसा
बदलने की लाइन में लगे सैकड़ों लोगों की जान चली गई। नोट बदलने के समय जिन लोगों
की जान गई और जिनको परेशानी उठानी पड़ी, उसको तो छोड़
ही दीजिए। नोटबंदी के दो महीनों बाद ही आर्थिक गतिविधियों का संकुचन दिखने लगा था।
अब साफतौर पर इसका दुष्परिणाम सामने आ रहा है। करीब 2 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी वाले देश में करीब 90 फीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्रों से जुडी हुई है। नोटबंदी के बाद छोटे
उद्योगों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। श्रम आधारित उद्योगों जैसे टेक्सटाइल, गारमेंट, चमड़ा, ज्वेलरी, रियल इस्टेट, ऑटोमोबाइल, हैंडीक्राफ्ट्स और कई छोटे-छोटे उद्योग तबाह हो गए। असंगठित क्षेत्रों से
जुड़े करीब चार लाख लोगों की नौकरी चली गयी है। एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था
काफी मुश्किल दौर से गुजर रही है।
जीएसटी ने व्यापारियों को किया
परेशान
देश में कर व्यवस्था सुधारने के
नाम पर 2017 में गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) लाया गया। केंद्र सरकार ने उस समय
कहा कि 1947 में तो हमें राजनीतिक आजादी मिल गई थी, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद आर्थिक आजादी मिली है। जीएसटी को लागू करते
समय वैसा ही आयोजन किया गया जैसे 15 अगस्त 1947 को आधी रात को किया गया था। कहा गया कि जीएसटी भारत को एक सामान्य बाजार
में बदल देगी, इससे व्यापार करने में अधिक आसानी होगी
और सभी क्षेत्रों में कंपनियों की लागतों में भारी बचत होगी। लेकिन कुछ दिनों बाद
ही आर्थिक आजादी के इस कानून ने छोटे व्यापारियों से लेकर बड़े कारोबारी समूहों को
परेशान कर रख दिया है।
जम्मू- कश्मीर से धारा 370 हटाने
का परिणाम
जम्मू-कश्मीर को संविधान के तहत
विशेष अधिकार मिले थे। सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं हमारे संविधान में पूर्वोत्तर
के कई पहाड़ी राज्यों के साथ ही उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को भी संविधान के तहत
विशेष अधिकार मिला है। बीजेपी जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक स्थितियों को नजरंदाज
करते हुए सांप्रदायिक आधार पर धारा 370 को हटाने की मांग करती रही।
अब मौका पाकर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा भी
दिया। इस प्रक्रिया में काफी दिनों तक राज्य में मोबाइल-इंटरनेट सेवाओं को बंद कर
जनता को उनके घरों में बंद कर दिया गया। धारा 370 हटाये
जाने की वर्तमान प्रक्रिया गैर लोकतांत्रिक है। यह संविधान विरोधी और छद्म
राष्ट्रवाद की आड़ में साम्प्रदायिक सोच का पोषण है। कांग्रेस और नेहरू के समय से
धारा -370 टूटना शुरू हो गया था। लेकिन आज धारा 370 जिस रूप में और जितना बचा था वह भारत और कश्मीर के बीच वो भावनात्मक पुल
था जिसने कश्मीरियों को भारत के साथ जोड़ा था। उस पुल को बीजेपी सरकार ने तोड़ दिया
है।
नकली राष्ट्रवाद बनाम असली
राष्ट्रवाद
दरअसल, बीजेपी का
राष्ट्रवाद भारतीय सांस्कृतिक विविधता को एक सूत्र में बांध कर देश को मजबूत करने
वाला राष्ट्रवाद नहीं है। संघ-बीजेपी के राष्ट्र की अवधारणा में केवल भूखंड है, जन नहीं है। इनका राष्ट्रवाद सावरकर से शुरू होकर नाथूराम गोडसे से होते
हुए मॉब लिंचिंग तक जाता है। जबकि भारतीय राष्ट्रवाद विभिन्न सांस्कृतिक विरासतों, धर्मों, नस्लों को समन्वित करते हुए वेद के
आदर्श “वसुधैव
कुटुंबकम्” का संदेश देता है। भारतीय जीवन दर्शन में समूचे विश्व को एक परिवार कहा
गया है। महर्षि दयानंद का भी यही संदेश है। बीजेपी हिंदुत्व को ही राष्ट्र मानता
है और उसे ही सबसे मनवाना चाहता है।
बीजेपी सरकार जनता के असली
सवालों को हल करने में नाकाम रही है। पूर्ण बहुमत की सरकार होने के कारण इसका दोष
वह दूसरों पर नहीं मढ़ सकती है। इसलिए वह अपनी असफलता को छिपाने के लिए इतिहास के
पन्नों से नए दुश्मन खोज कर निकाल रही है। वह जनता के सवालों को हल करने की बजाए
छद्म राष्ट्रवाद का उन्माद उभार कर देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर काम
कर रही है।
दरअसल, आज देश की
समस्या को हिंदू- मुसलमानों तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। कलबुर्गी, पानसारे, दाभोलकर, गौरी
लंकेश इनमें कोई भी मुस्लिम नहीं थे। हमारे सामने जो खतरा है वह देश के संविधान पर
है, उदार मूल्यों पर है, कानून
के शासन पर है, सबके साथ न्याय का आग्रह रखने वाली जीवन
दृष्टि पर है। ये संकट पूरे समाज पर है और समाज के सभी जागरूक लोग मिल जुल कर इसका
मुकाबला कर रहे हैं, आगे भी करेंगे। आज देशभक्तों के
सामने इस सांप्रदायिक राष्ट्रवाद को परास्त करके देश में महात्मा गांधी के
मानवतावाद पर आधारित असली राष्ट्रवाद लाने की चुनौती है। भारतवासियों के लिए
संविधान को साझा धर्मशास्त्र मानकर एक समता मूलक समाज बनाना ही असली राष्ट्रवाद
है। इसी में सच्चे सनातन हिंदू संस्कृति का निहितार्थ शामिल है।