विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के खिलाफ दुनिया भर में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत विश्व मानसिक स्वास्थ्य संगठन वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ द्वारा की गई थी।
खासकर कोरोना महामारी के दौर में जॉब छूटने, संक्रमित होने, लॉकडाउन के चलते व्यापार में नुकसान आदि परेशानियों की वजह से भारत में मानसिक रोगियों की संख्या में बड़ी तेजी से बढोतरी दर्ज हुआ है। साथ ही कई अन्य कारणों के चलते भी लोग डिप्रेशन, डिमेंशिया, फोबिया, एंजाइटी, हिस्टीरिया आदि मानसिक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इसलिए इस दिन इसके बारे में लोगों को जागरुक करने की जरुरत हैं। जिससे इस समस्या से आसानी से निपटा जा सकें।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का इतिहास
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पहली बार वर्ष 1992 में 10 अक्टूबर को उप महासचिव रिचर्ड हंटर की पहल पर मनाया गया था। 1993 तक, इस दिन का कोई विशेष विषय नहीं था। 1994 में तत्कालीन महासचिव यूजीन ब्रॉडी के सुझाव पर एक थीम के साथ विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया गया था। विषय था “दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार”। डब्ल्यूएचओ द्वारा तकनीकी और संचार सामग्री विकसित करने के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाने के माध्यम से समर्थित है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2021 की थीम
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2021 की इस बार की थीम है ‘एक असमान दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य’ (Mental Health in an Unequal World)। इस विषय को डब्लूएफएमएच (WFMH) के सदस्यों, हितधारकों और समर्थकों सहित वैश्विक वोट द्वारा चुना गया है, क्योंकि दुनिया में तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है, अमीर लोग और भी अमीर बन रहे हैं।
जबकि गरीबों की संख्या में लगातार तेजी हो रही है। जिसका परिणाम ये हो रहा कि लोगों के समाजिक और आर्थिक दर्जे के अनुसार समाजिक भेदभाव काफी बढ़ा है। ये भेदभाव भी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। इन पहलुओं पर भी विचार करने की जरुरत हैं। जिससे इस दिन की सार्थकता और बेहतर तरीके से सिध्द की जा सकें।
इस मौके पर देश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा –
पीटीआई के खबर के मुताबिक विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु विज्ञान संस्थान (NMHNS) द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमें मानसिक समस्याओं के इलाज के पारंपरिक तरीकों को समझने की जरूरत है। मैं विचार कर रहा हूं कि क्या हम अपने पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए हमारी परपंराओं की भूमिका को शामिल कर सकते हैं।’’
मांडविया ने कहा कि विशेषज्ञों को पारंपरिक पारिवारिक ढांचे का अध्ययन करना चाहिए जिसके बारे में दावा किया जाता है कि उससे स्वत: मानसिक समस्याएं ठीक हो जाती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे सभी त्योहार मानसिक इलाज का हिस्सा हैं। हमारे धार्मिक समागम और समाजिक कार्यक्रम, हमारी सुबह-शाम की प्रार्थना और हमारी आरती सभी हमारे मानसिक सेहत से जुड़े हैं। इन परंपराओं का इस्तेमाल मानसिक समस्याओं के इलाज में किया जाता है।’’
स्वास्थ्य मंत्री ने शिक्षण संस्थानों की भूमिका को अहम करार देते हुए कहा कि निमहन्स को इस मुद्दे पर गहनता से अध्ययन करना चाहिए और समाधान तलाशना चाहिए ताकि सरकार निर्णय ले सके और नीति बना सके।
मांडविया ने कहा कि निमहन्स को विद्यार्थियों को अनुसंधान करने का कार्य देना चाहिए, न कि उन्हें किताबों और परीक्षा उत्तीर्ण करने तक सीमित रखना चाहिए। उन्होंने अफसोस जताया कि देश को मौजूदा शिक्षा प्रणाली से वह प्राप्त नहीं हो रहा है जो उसे मिलना चाहिए।