भारतीय संविधान के शिल्पी बेनेगल नरसिंह राव

बीएन राव की कानून में विशेष रूचि और विशेषज्ञता देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तत्कालीन सांविधिक कोड (1935-37) के पुनरीक्षण का काम सौंपा। इस महत्वपूर्ण कार्य को कुशलतापूर्वक करने पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1938 में 'सर' की उपाधि से सम्मानित किया।

भारतीय संविधान की गणना विश्व के सबसे बड़े और लिखित संविधान में की जाती है। इसके निर्माण का श्रेय लेने की होड़ भी रहती है। संविधान सभा के गठन और निर्माण को लेकर कई कहानियां और धारणाएं भारतीय जनमानस में फैली है। यह बात सही है कि संविधान निर्माण में कई विधि वेत्ताओं,मनीषियों और राजनेताओं ने अपना योगदान दिया। लेकिन बेनेगल नरसिंह राव (बीएन राव) का योगदान अप्रतिम और उल्लेखनीय है। संविधान सलाहाकर के रूप में उनके द्वारा किए गए अथक श्रम के कारण ही भारतीय संविधान निर्धारित समय में आ सका। संविधान सलाहकार के रूप में उनका काम पूरे संविधान का मसौदा बनाना था।  

अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता बीएन राव का जन्म 26 फरवरी 1887 को मंगलौर में एक प्रतिष्ठित परविार में हुआ था। उनके पिता बी राघवेंद्र राव डॉक्टर थे। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी राव ने 1901 में हाई स्कूल की परीक्षा मद्रास प्रेसिडेंसी में टॉप किया। एफए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वोच्च अंक पाने के कारण उन्हें छात्रवृत्ति मिली। जिसके कारण उच्च शिक्षा के लिए वे विदेश गए और लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज में दाखिला लिया। 1909 में आईसीएस में चयनित हुए। बाद में उनके छोटे भाई बी रामाराव भी आईसीएस में चयनित हुए। रामाराव लंबे समय तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे। उनके दूसरे छोटे भाई बी शिवाराव पेशे से पत्रकार और राजनीतिज्ञ थे। जो संविधान सभा के सदस्य भी रहे। 

बीएन राव की कानून में विशेष रूचि और विशेषज्ञता देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें तत्कालीन सांविधिक कोड (1935-37) के पुनरीक्षण का काम सौंपा। इस महत्वपूर्ण कार्य को कुशलतापूर्वक करने पर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1938 में ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया। एक वर्ष बाद 1939 में उन्हें बंगाल उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बना दिया। 1944 में सरकारी सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद वे कुछ दिनों तक जम्मू-कश्मीर रियासत के प्रधानमंत्री रहे। उनको हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश होने का गौरव प्राप्त है जो संयुक्त राष्ट्र (यूएन) का प्रमुख न्यायिक अंग है।   

बीएन राव की ख्याति विधिवेत्ता और कूटनीतिज्ञ की थी। पं. जवाहर लाल नेहरू उनके नाम और काम से अपरिचित नहीं थे। दोनों की जान-पहचान और दोस्ती कॉलेज के दिनों से ही थी। दोनों लगभग एक ही समय कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के छात्र रहे। बाद के दिनों में नेहरू राजनीति में सक्रिय हुए तो राव आईसीएस में चयन के बाद देश-विदेश में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम करते रहे। विद्वानों का मानना है कि नेहरू के विशेष आग्रह पर वे संविधान सभा के सलाहकार बने। कांग्रेस उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। संविधान सभा में बहुमत भी उसी का था। 69 फीसदी सदस्य कांग्रेस पार्टी के थे। संविधान बनाने के जटिल काम को सरल बनाने के लिए प्रक्रिया समिति, कार्य समिति और संचालन समिति जैसे एक दर्जन समितियां बनाईं गई। प्रारूप समिति का काम विभिन्न समितियों में किए गए निर्णयों को संविधान के ड्राफ्ट में शामिल करके सभा के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करना था। संविधान का मूल प्रारूप तैयार करने का काम संवैधानिक सलाहाकर बीएन राव कर रहे थे। इस भूमिका का निर्वहन उन्होंने बखूबी किया। संविधान निर्माण में उनके समर्पण को देखते हुए संविधान सभा ने उनका आभार इन शब्दों में व्यक्त किया- ‘इस सभा में उन्होंने सारे समय अवैतनिक रूप में काम किया। सभा को न केवल अपने ज्ञान और विद्वता से लाभान्वित किया बल्कि आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराकर सभा के अन्य सदस्यों को भी अपने दायित्यों का सम्यक रूप से निर्वाह करने में सहयोग दिया।’  

भारत के आम जनमानस में बेनेगल नरसिंह राव (बीएन राव) का नाम भले ही अपरिचित हो लेकिन अकादमिक जगत और विधि वेत्ताओं के लिए बीएन राव सुपरिचित नाम है। संविधान निर्माण में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। लेकिन वोट की राजनीति के कारण उनको वह श्रेय नहीं मिला। जिसके वे हकदार हैं। 

First Published on: March 24, 2020 3:05 PM
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