शक्तियों के विकेंद्रीकरण और सहकारी संघवाद से देश बन सकता है आत्मनिर्भर


एम्स दिल्ली औऱ पीजीआई चंडीगढ नेहरू की वैज्ञानिक सोच की देन है। देश में सरकारी यूनिवर्सिटियों का जाल बिछाने की योजना पंडित नेहरू ने बनायी। ताकि गरीब भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। अब सवाल यही है कि वर्तमान समय में आत्मनिर्भरता की परिभाषा क्या होगी? सरकारी संपतियों और उधोगों का निजीकरण ही आत्मनिर्भरता की परिभाषा है? पब्लिक सेक्टर के एयर इंडिया, रेलवे और पेट्रोलियम कंपनियों का निजीकरण वर्तमान आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना है?



संजीव पांडेय

कोविड-19 को एक अवसर के रूप में अब लेने की बात हो रही है। आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात शुरू हो गई  है। वैसे आत्मनिर्भर भारत बनाने का नारा बेशक नरेंद्र मोदी की सरकार का नया नारा है। पर आजादी के बाद देश में हर शासक ने अपने तरीके से देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की। आज देश कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है। कृषि के क्षेत्र में पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की नीतियों ने देश को आत्मनिर्भर बनाया। पंडित नेहरू ने हीराकुंड औऱ भाखड़ा बांध बनाया। रोजगार में आत्मनिर्भरता के लिए नेहरू की नीतियों का कोई जवाब नहीं था। 

भिलाई, बोकारो, दुर्गापुर स्टील प्लांट लगाए गए। इससे लाखों लोगों को रोजगार मिला। करोड़ों परिवारों को इससे लाभ हुआ। देश भारी उधोगों में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ा। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नेहरू की गजब की नीति थी। उन्होंने देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च सेंटर बनाने पर जोर दिया। ताकि देश स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। एम्स दिल्ली औऱ पीजीआई चंडीगढ नेहरू की वैज्ञानिक सोच की देन है। देश में सरकारी यूनिवर्सिटियों का जाल बिछाने की योजना पंडित नेहरू ने बनायी। ताकि गरीब भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। अब सवाल यही है कि वर्तमान समय में आत्मनिर्भरता की परिभाषा क्या होगी? सरकारी संपतियों और उधोगों का निजीकरण ही आत्मनिर्भरता की परिभाषा है? पब्लिक सेक्टर के एयर इंडिया, रेलवे और पेट्रोलियम कंपनियों का निजीकरण वर्तमान आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना है?

कोविड-19 को अगर अवसर बनाना चाहते है तो देश का संतुलित विकास की नीति सरकार बनाए। वर्तमान सरकार को जो पूर्वज सरकारों ने दिया है, उसे बचाए। जो क्षेत्र अविकसित रह गए है उसका विकास करे। कोविड-19 ने हमारी कमियों को सामने लाया है। एक कमी देश का असंतुलित विकास है। यही मौका है कि देश का संतुलित विकास की नीति बना पिछड़ों राज्यों का विकास किया जाए। देश के पूर्वी राज्यों को रोजगार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए। बिहार, बंगाल, उडीसा और झारखंड जैसे राज्यों में जहां भारी आबादी बसती है, उनको उन्हीं के राज्यों में विकास कर रोजगार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए। पंडित नेहरू दवारा भिलाई, बोकारो और दुर्गापुर स्टील प्लांट लगाए जाने का उद्देश्य यही था।

 देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए देश के संसाधनों का संतुलित इस्तेमाल कर पहले देश की 130 अरब आबादी के बाजार को ही विकास का पहिया बनाया जाए। लेकिन 130 अरब की आबादी को आपूर्ति के लिए मांग की जरूरत पड़ेगी। मांग तभी आएगी जब देश के आम जन के पास खर्च करने के लिए पैसा होगा। लेकिन सच्चाई तो यही है कि करोड़ों लोगों के जब में तो पैसा ही नहीं है। फिर मांग कहां से आएगी। सिर्फ फिजिकल डेफशीट को कम कर, जीडीपी विकास दर के आंकड़ों को बढाकर देश को आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता है। अगर बढ़ी हुई जीडीपी चंद पूंजीपति परिवारों के हाथों में पूंजी को केंद्रित करेगी तो इससे देश की आम जनता कैसे आत्मनिर्भर होगी?

कोविड-19 ने अवसर दिए है। लेकिन ये अवसर नए श्लोगन, नए नारे में गुम हो सकते है। गलत तरीके से सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। सोशल डिस्टेसिंग से सामाजिक दूरियां बढेगी। मानसिक अवसाद बढेगा। सोशल डिस्टेंसिंग की जगह फिजिकल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। जब सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ेगी तो फैक्ट्रियों में उत्पादन कौन करेगा ? खेतों में काम कौन करेगा? फिर देश आत्मनिर्भर कैसे बनेगा? 

कोविड-19 के दौर में नए-नए ख्वाबी पुलाव देश के नीति निर्धारक पका रहे है। वर्चुअल एजूकेशन सिस्टम की वकालत हो रही है। वर्क फ्रॉम होम की बात हो रही है। बच्चों को ऑनलाइन पढाया जा रहा है। देश के शिक्षाविद ऑन लाइन एजूकेशन की पैरवी कर रहे है। दरअसल ऑनलाइन एजूकेशन की पैरवी भी गरीबों के बच्चों के साथ एक षडयंत्र होगा। क्योंकि ऑनलाइन एजूकेशन का मतलब है कि देश के अस्सी प्रतिशत बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। 

कोविड-19 के बहाने बच्चो को शिक्षा से वंचित करने की एक साजिश हो रही है। क्योंकि देश में बड़ी आबादी के पास ऑनलाइन एजूकेशन के लिए उपकरण नहीं है। देश में 45 करोड़ लोग अनऑरगनाइज्ड सेक्टर में कामकाजी है। इनमें से बहुतों का रोजगार छीन गया। उनके पास ऑनलाइन एजूकेशन के लिए कंप्यूटर नहीं होगा। कहां से वे पैसे लाएंगे कंप्यूटर और फोन के लिए? देश में 42 प्रतिशत शहरी और 15 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के पास इंटरनेट कनेक्शन है। अगर शिक्षा को ऑनलाइन करने की साजिश की गई तो देश की बड़ी आबादी बीमार होगी। बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास रूक जाएगा। स्कूली शिक्षा का एक उद्देश्य बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास है। स्कूल में बच्चे खेलते है। स्कूल में बच्चों सामुदायिक जीवन जीना सिखते है। ऑन लाइन एजूकेशन बच्चों में शुगर और ब्लेडप्रेशर की शिकायत भी तेजी से बढ़ाएगी।

दुनिया भर में लॉक डाउन किया गया। लेकिन इसका जो प्रभाव भारत में पड़ा है, उसे दुनिया हैरानी से देख रही है। कोविड-19 के शिकार बहुत कम लोग हुए है। 28 मई तक देश में 1.6 लाख लोग कोविड-19 के संक्रमण के शिकार हुए है। जबकि देश की आबादी 130 करोड़ है। जबकि अप्रत्याशित लॉकडाउन  देश के कुल जीडीपी के 10 प्रतिशत का नुकसान कर सकता है। अप्रत्याशित लॉकडाउन ने देश भर में करोड़ों लोगों को सड़कों पर ला दिया। सड़कों पर पैदल जाते हुए लाखों लोगों को पूरी दुनिया ने देखा। तैयारी कितनी खराब थी कि पहले तो मजदूरों को शहरों में बंदी बनाया गया। जब उन्हें घर छोड़ने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलायी गई तो कई श्रमिक स्पेशल ट्रेन 9-9 दिनों में गंतव्य स्टेशन पर पहुंची। रास्ते में पैसेंजर पानी और खाने के लिए तरसते रहे। कुछ मजदूरों के ट्रेनों में मौत की खबर भी आयी।

किसी भी मुल्क में आत्मनिर्भरता के लिए आपसी सहयोग और शक्तियों का विकेंद्रीकरण जरूरी है। कोविड-19 के दौरान शक्तियों का केंद्रीकरण दिखा है। कुछ केंद्रीय कानूनों के जरिए राज्यों की शक्तियां छीनी गई है। जबकि समय की जरूरत है कि पंचायतों को और शक्तियां देकर कोविड-19 से लड़ा जाए। केरल ने शक्तियों के विकेंद्रीकरण के माध्यम से आपदा से लड़ाई लड़ी। यह दूसरे राज्यों और केंद्र के लिए अच्छा उदाहरण है जो ब्रिटिश कालीन ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम के माध्यम से कोविड-19 आपदा से ल़ड रहे है। 

कोविड-19 के दौरान राज्यों और केंद्र में सहयोग नहीं दिखा। भाजपा विरोधी दल शासित राज्यों ने  केंद्र पर असहयोग का आरोप लगाया। महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार एक साथ दो फ्रंट पर लड़ रही है। एक फ्रंट पर उदव ठाकरे सरकार बचाने की लड़ाई ल़ड़ रहे है। दूसरे फ्रंट पर उनकी सरकार कोविड-19 से लड़ रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और केंद्र के बीच टकराव हो रहा है। कोविड-19 अवसर जरूर है। लेकिन अवसर को कार्यरूप मे लाने के लिए आपसी सहयोग और कोआपरेटिव फेडरलिज्म की जरूरत पड़ेगी।
 (संजीव पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और चंडीगढ़ में रहते हैं।)