Explained: किसानों के लिए फसल पर एमएसपी का कानूनी अधिकार आखिर इतना बड़ा मुद्दा क्यों है, जानिए सबकुछ

Satish Yadav Satish Yadav
Uncategorized Updated On :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है। लेकिन किसान अब भी दिल्ली के बॉर्डरों पर जुटे हैं। किसान नेताओं का कहना है कि जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर कानून नहीं जाता तब तक पर प्रदर्शन करेंगे। समर्थन मूल्य पर किसानों की मांग है क्या ? और सरकार इसके लिए तैयार क्यों नहीं है? किसानों के एमएसपी अखिर इतना बड़ा मुद्दा क्यों हैं आइए समझते हैं।

एमएसपी आखिर क्या है?
एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य वह न्यूनतम मूल्य होता है जिस मुल्य पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है। इसको ऐसे समझे कि जब भी सरकार, किसान से फसल खरीदेंगी तब  किसान को एमएसपी उसका  पर ही भुगतान करेगी। इसके लिए किसानों को सरकार के द्वारा निर्धारित फसल मूल्य पर सरकारी मंडी में जाकर फसल बेचना होता हैं।

एमएसपी का इतिहास समझिए
किसानों की एमएसपी के लिए सबसे पहली बार वर्ष 1964 में लाल बहादूर शास्त्री की सरकार में एलके झा के नेतृत्व में एक कमिटी बनाई गई। इस कमिटी का काम था कि वो अनाज के न्यूनतम और अधिकतम दाम तय कर सके। 24 सितंबर 1964 को इस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी। लाल बहादुर शास्त्री सरकार ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों की सरकारों से बात करके 13 अक्टूबर 1964 को अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दिया। 24 दिसंबर 1964 को इस पर मुहर भी लग गई, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका।

भारत सरकार के सचिव बी शिवरामन ने 19 अक्टूबर 1965 को इस पर अंतिम मुहर लगाई, जिसके बाद 1966-67 के लिए पहली बार गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी गई। इसे आम तौर पर एमएसपी कहा जाता है। इसके बाद से ही हर साल सरकार फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है। आपको बता दें कि ये समर्थन मूल्य फसलों की बुवाई से ठीक पहले घोषित किया जाता है।

सरकार के द्वारा कैसे तय होता है फसलों की एमएसपी?
सरकार एमएसपी तय करने के लिए उस फसल को उगाने में लगी लागत के अलावा कई दूसरे चीजों के आधार पर एमएसपी का निर्धारण करता है। इसके लिए सरकार देश के अलग-अलग हिस्सों में उस फसल की प्रति हेक्टेयर लागत देखती है, इसके लिए सरकार का विभाग ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ यानी CACP (Commission for Agricultural Cost and Prices) काम करता है।

इसके लिए सीएसीपी उस फसल की लागत के अलावा उसकी मांग व आपूर्ति की परिस्थिति, मार्केट प्राइस ट्रेंड्स और अन्य फसलों से तुलना पर भी विचार करती है। जिसमें अन्य कई अनेक पहलू शामिल होते है। जैसे पर्यावरण पर मिट्टी और पानी के प्रयोग पर प्रभाव के अलावा कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के उत्पादों के बीच के कारोबारी शर्तों पर भी विचार किया जाता है।

उसके बाद सीएसीपी सरकार को उस फसल के लिए एमएसपी का रिकमेंडेशन करती हैं, सरकार इन सुझाव पर एक बार फिर से अध्ययन करती और राज्य सरकारों से इस पर बात करती हैं। उसके बाद उस फसल की एमएसपी की घोषणा  की जाती है। गौरतलब है कि सीएसीपी गन्ना का एमसपी तय नहीं करता है। इसके अलग से ‘गन्ना आयोग’ बनाया गया है। इसके साथ आप ये भी जान लिजिए की अभी वर्तमान समय में सरकार की तरफ से सिर्फ 23 फसलों पर ही एमएसपी दी जाती हैं।

एमएसपी के लिए स्‍वामीनाथन समिति की बात किसानों द्वारा क्यों की जाती हैं?
इस नियम बनने के बाद भी किसानों कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं। जिसके अपने तर्क है लेकिन इन सभी तर्कों में एक मांग जो सभी के द्वारा की जा रही हैं, वो यह है कि एमएसपी स्‍वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के आधार पर तय की जाए।

वर्ष 2004 डॅा एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, करीब दो साल बाद 2006 में कमेटी ने अपनी सरकार को अपनी सिफारिशें दे दीं, जो अब तक स्पष्ट तौर पर लागू नहीं की जा सकीं। इस कमेटी की सबसे बड़ी सिफारिश ये थी कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म करे और किसानों को उनकी किसी भी फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दे। परंतु वर्ष 2018-19 के बजट में मोदी सरकार ने एमएसपी को, उत्‍पादन लागत का कम-से-कम डेढ़ गुना करने का ऐलान किया।

एमएसपी क्यों तय किया जाता है?
किसी फसल की एमएसपी इसलिए तय की जाती है ताकि किसानों को किसी भी हालत में उनकी फसल के लिए एक उचित न्यूनतम मूल्य मिलता रहे। जिससे किसानों को उनकी फसल पर बड़ा नुकसान न हो और खेती को फायदे को सौदा बनाया जा सकें।

सरकार क्यों खरीदती है अनाज?
इस अनाज का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिए होता है। जिसके तहत जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने के लिए सरकार, किसानों से फसल की खरीद करती है। इसके अलावा सरकार अनाज व दालों का बफर स्टॉक भी बनाती है ताकि बाजार में कीमतें बेहद ज्यादा बढ़ने या अकाल जैसी किसी आपदा की स्थिति में सरकार अपने स्टॉक में से अनाज खुले बाजार में ला सके।

एमएसपी पर किसानों की मांग क्या है?
यहां पर आपको यह जानना जरुरी है कि की सीएसीपी की सिफारिश पर फसलों की लागत तय करने के तीन फार्मूले हैं।

1.A2-इसमें नकदी खर्च शामिल होता है. जैसे बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी, ईंधन व सिंचाई पर लगने वाली रकम।
2.A2+एफएल (वास्तव में खर्च की गई लागत+ पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य) जोड़ा जाता है।
3.C2 (समग्र लागत) इसमें वास्तविक खर्चों के अलावा स्वामित्व वाली भूमि और पूंजी के अनुमानित किराए और ब्याज को भी शामिल किया जाता है।

एक उदाहरण से समझिए केंद्र सरकार ने 2021-22 के लिए धान की लागत को प्रति क्विंटल 1293 रुपये माना है। लागत पर 50 फीसदी रिटर्न जोड़कर उसका एमएसपी 1940 रुपये तय किया है। दरअसल, यह सी-2 लागत पर आधारित गणना नहीं है, जिसकी किसान वर्षों से मांग कर रहे हैं। यह एमएसपी ए-2+एफएल फार्मूले के आधार तय की गई है।

किसान सी-2 फार्मूले के हिसाब से एमएसपी मांग रहे हैं। इसके हिसाब से धान उत्पादन पर लागत प्रति क्विंटल 1,727 रुपये आती है। इस लागत पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसदी रिटर्न जोड़कर उसका एमएसपी तय किया जाए तो वह 2591 रुपये बनेगा। यानी अगर एमएसपी के सर्वमान्य फार्मूले पर सरकार पैसा दे तो प्रति क्विंटल धान की सरकारी बिक्री पर किसानों को 651 रुपये ज्यादा मिलेंगे। इसके साथ ही किसानों की यह भी मांग है एमएसपी पर फसलों की खरीद के लिए किसानों को कानूनी अधिकार मिले।

सरकार इसके लिए तैयार क्यों नहीं है?
सरकार इसके लिए तैयार क्यों नहीं है, इसका अनेक वजह एवं सरकार के अपने तर्क हो हैं परंतु इसमें एक वजह यह मानी जाती हैं कि अगर किसानों को एमएसपी पर कानून अधिकार मिल गया तो, इसका सीधा मतलब होगा अगर किसान को जिसे एमएसपी नहीं मिलेगा वो कोर्ट जा सकता है और न देने वाले को सजा हो सकती है।

दूसरी बड़ी वजह यह कि शांता कुमार कमिटी के मुताबिक एमएसपी का लाभ सिर्फ़ 6 फ़ीसदी किसानों को मिल पाता है। यानी 94 फ़ीसदी किसानों को एमएसपी का लाभ कभी मिला ही नहीं रहा है। उनमें करीब 80 फीसदी पंजाब और हरियाणा के किसान हैं। अगर सरकार किसानों को एमएसपी पर कानून अधिकार दे देती है तो, अनाजों के भंडारण के लिए सरकार का इंन्फ्रांटक्चर भी बढाना होगा।

तिसरी सबसे बड़ी वजह अभी सरकार जिन फसलों की खरीद एमएसपी पर हो रही है, उसके लिए फसलों की क्वॉलिटी तय होता है। मतलब फसल की एक निश्चित गुणवत्ता तय होती है। उसी पर किसान को एमएसपी मिलता है। अब अगर कोई फसल गुणवत्ता के मानकों पर खरी नहीं उतरेगी तो किसानों से उसे कौन खरीदेगा ?

इसके साथ कई अनेक मुद्दे है जिसपर सरकार को विचार करने हैं अभी प्रधानमंत्री ने कहा कि, एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा। पीएम ने आश्वासन दिया है कि कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे।