क्या मुरारी बापू व्यासपीठ से कर रहे हैं इस्लाम का प्रचार?

मुरारी बापू के जीवन के आखिरी चरण में उन पर यह घात प्रतिघात निश्चित रूप से उनके लिए असहनीय है। इसलिए क्षमा मांगते हुए वो रो पड़े। "दोषी पाये जाने पर" अग्नि समाधि लेने तक की घोषणा कर दी। अली मौला गाने से लेकर कृष्ण कुल को शराबी पियक्कड़ बताने तक उन पर कई तरह के आरोप हैं।

मुरारी बापू अपने अली मौला के कारण आजकल सोशल मीडिया पर पर्याप्त चर्चा में हैं। गुजरात के रामकथा वाचक मुरारी बापू पर बढ़ते आरोप प्रत्यारोप के बीच उनके ऐसे ऐसे वीडियो सामने लाये जा रहे हैं जिसमें वो व्यासपीठ का “नाजायज” फायदा उठा रहे हैं।
मुरारी बापू के जीवन के आखिरी चरण में उन पर यह घात प्रतिघात निश्चित रूप से उनके लिए असहनीय है। इसलिए क्षमा मांगते हुए वो रो पड़े। “दोषी पाये जाने पर” अग्नि समाधि लेने तक की घोषणा कर दी। अली मौला गाने से लेकर कृष्ण कुल को शराबी पियक्कड़ बताने तक उन पर कई तरह के आरोप हैं। 

मुरारी बापू गुजरात के तलगा जरडा से आते हैं। अपने दादा से उन्हें रामचरित मानस की शिक्षा मिली और कथा का प्रसाद भी। मुरारी बापू जब घर से कथा करने निकले तो देखते ही देखते अस्सी के दशक में एक चर्चित नाम हो गये। उनकी रामकथा का सबसे आकर्षक पक्ष था उनका संकीर्तन। मुरारी बापू से पहले कोई भी कथाकार रामकथा में वाद्य यंत्रों के साथ गायन नहीं करता था। अधिक से अधिक संकीर्तन हो जाता था। वह भी बिना किसी वाद्य यंत्र के। उस समय रामकिंकर उपाध्याय रहे हों या फिर गुजरात के ही प्रसिद्ध भागवत कथा वाचक डोंगरे जी महाराज। सब शुद्ध रूप से कथा ही करते थे।

लेकिन मुरारी बापू ने कथा में संगीत का समावेश किया। समाज पर बढ़ते फिल्मों के प्रभाव को देखते हुए रामकथा को संगीतमय बनाना अच्छा प्रयोग था। इसका सकारात्मक असर भी हुआ और धीरे धीरे मुरारी बापू रामकथा में एक नया कल्ट बन गये। उनका खास पहनावा, कांधे पर काली शाल, हाथ में काला रामनामी गमछा और व्यासपीठ के बगल में संगीतकारों का साज बाज। अन्य उभरते कथाकारों ने भी मुरारी बापू से प्रेरणा ली और अपने साथ संगीत मंडली रखने लगे। इससे स्रोताओं को तीन घंटे रिझाकर रखने में कथाकारों को आसानी होने लगी। आज तो शायद ही कोई कथाकार हो जिसके साथ संगीत मंडली न चलती हो। 

लेकिन मुरारी बापू का यही नव प्रयोग उनके लिए अब संकट बन गया है। धीरे धीरे मुरारी बापू ने फिल्मी गीतों को अपनी कथा में शामिल करना शुरु कर दिया। अब क्योंकि फिल्मी गीतों में उर्दू का जबर्दस्त प्रभाव है इसलिए उर्दू के शब्द और गीत व्यासपीठ का हिस्सा हो गये। इसके बाद सूफी संगीत भी बापू की महफिल में पहुंच गया। इसी संगीत का प्रभाव है कि बापू के रामनाम संकीर्तन में स्वत: ही अली मौला शामिल हो गये। मुरारी बापू इसे स्वीकार भी करते हैं कि वो जानबूझकर ऐसा नहीं करते। संगीत की लय में अली मौला अपने आप उनके मुंह से निकलता है। 

मुरारी बापू की ये “स्वाभाविक” और “स्वत:” प्रक्रिया ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हिन्दुत्ववादी समूह को बुरी लग रही है। उनकी शिकायत है कि व्यासपीठ से इस तरह से इस्लाम का प्रचार नहीं होना चाहिए। मुरारी बापू इस्लाम का प्रचार क्योंकर करेंगे लेकिन इतना जरूर है कि वो अपनी व्यासपीठ के माध्यम से हिन्दू मुस्लिम की खाईं पाटने की कोशिश अवश्य करते हैं। उनकी संगीत मंडली में मुस्लिम कलाकार भी हैं जो लंबे समय से उनके साथ राम नाम का संकीर्तन कर रहे हैं। इसके अलावा मुरारी बापू जहां भी कथा करते हैं वहां व्यासपीठ पर संगीत समारोह आयोजिय करते हैं। उनके इस संगीत समारोह में हिन्दू मुस्लिम सभी तरह के कलाकार बुलाये जाते हैं। 

असल में मुरारी बापू धर्म की उस समावेशी प्रक्रिया को अपना रहे हैं जो मत पंथ संप्रदाय के नाम पर किसी से भेदभाव नहीं करता। फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान। मुरारी बापू इसीलिए अपनी कथा के माध्यम से एकत्र धन से मुस्लिम गरीब परिवारों के लिए घर बनवाने या उन्हें आर्थिक मदद देने में भी संकोच नहीं करते। अपनी व्यासपीठ पर वो सर्वधर्म सम्मेलन भी आयोजित करते हैं जिसमें हिन्दू साधु संतों के अलावा मुस्लिम धर्मगुरू और इसाई धर्मगुरु भी शामिल होते हैं। 

लेकिन शायद समय बदल रहा है। इसलिए अब मुरारी बापू भी निशाने पर है। रामभक्त ही मुरारी बापू के राम पर भी सवाल उठा रहे हैं और हनुमान पर भी। एकदम से किसी को सही या गलत कहना किसी समीक्षक के लिए सही नहीं होगा। समय ही बतायेगा कि कौन सही था। रामभक्त मुरारी बापू या फिर रामभक्त राष्ट्रवादी। लेकिन इतना तो तय है कि देश में हिन्दुत्व का एक ऐसा चरमपंथी समूह विकसित हो चुका है जो किसी भी प्रकार के समन्वयवाद में विश्वास नहीं करता। भले ही वो उनका अपना प्रिय कथावाचक मुरारी बापू ही क्यों न हो।   

(संजय तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं और खबर में व्यक्त विचार निजी हैं।)

First Published on: June 12, 2020 11:33 AM
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