‘जल्ले वाले सरदारों’ से खरीद कर बनाया गया था जलियांवाला बाग स्मारक…


कांग्रेस ने जलियांवाला बाग को राष्ट्रीयस्मारक बनाने के लिए1920में एकट्रस्ट बनाया। सन्1923में ट्रस्ट ने5लाख 65 हजार रुपए की कीमत पर जल्ले वाले सरदारों से यह जमीन खरीदी गयी। भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग को कपड़े के बाजार में बदलने की कोशिश कर रही थी। ताकि उस घटना की गवाही खत्म कीजा
सके।



प्रदीप सिंह

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में आजादी के दीवाने ब्रिटिश सरकार की जनविरोधी रौलट एक्ट के विरोध में सभा कर रहे थे। सभा जब अपने सवाब पर था तभी अंग्रेज अधिकारी डायर के नेतृत्व में पचासों सैनिक यहां आ धमके। तीन तरफ से ऊंची इमारतों से घिरे इस बाग में  बिना पूर्व चेतावनी के दस मिनट तक गोलियों की बौछार कर दी गयी थी। हजारों लोगों की जान गई। इस नृशंस घटना में पंजाब का हर घर किसी न किसी रुप से प्रभावित हुआ।

इंडियन नेशनल कांग्रेस ने शहीदों की कुर्बानी को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाने के लिए खूनी कांड वाले स्थान पर ऐतिहासिक यादगार बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया था। इसके बाद 1920 में एक ट्रस्ट बनाया गया। सन् 1923 में ट्रस्ट ने 5 लाख 65 हजार रुपए देकर जलियांवाला बाग के मालिकों ‘जल्ले वाले सरदारों’ से इस जमीन को खरीद लिया था। भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग को कपड़े के बाजार में बदलने की कोशिश कर रही थी। ताकि उस घटना की याद खत्म कर दिया जाए । लेकिन कौमी लीडरों ने मदनमोहन मालवीय की अगुवाई में एक कमेटी बना कर क्रांतिकारियों के शहादत को अक्षुण्ण बनाने का संकल्प लिया। एसई मुखर्जी को ट्रस्ट का पहला सेक्रेटरी बनाया गया। अब उनके पौत्र एसके मुखर्जी सेक्रेटरी है। इस स्मारक का डिजायन अमरीकी आर्कीटेक्ट बेंजामिन पोक ने बनाया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु आदि नेताओं ने 13 अप्रैल,1961 को इस स्मारक का उद्घाटन किया था। 

लेकिन अब जलियांवाला बाग भी सरकारी उपेक्षा का शिकार है। हजारों शहीदों का खून जिस स्थान पर गिरा था उस स्थान को भी मिटाने की कोशिश की जा रही है।भारत की सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में ऐतिहासिक और पुरातात्विक विरासत को सैर सपाटे के अड्डे में तब्दील करने की कोशिश कर रही है।  

जलियांवाला बाग भी इस एजेंडे से बाहर नहीं है। कुछ वर्षों पहले केन्द्र सरकार ने पांच करोड़ की लागत से इस स्थान को आधुनिक बनाने का काम शुरू किया। आधुनिकता की आड़ में बाग की मौलिकता को नष्ट करने का भरसक प्रयास हुआ। परिसर में लाइट एंड साउंड सिस्टम लगाया गया।  इसके साथ ही बाग में कई अन्य निर्माण कार्य किए गए। जलियांवाला बाग की ऐतिहासिकता और विरासत को सौंदर्यीकरण और आधुनिकता के गर्द में छिपाने की भरसक कोशिश की गयी। बाग में स्थित कुआं को चारों तरफ मार्बल से घेर कर उसकी प्राचीनता को ढंक दिया गया। चारों तरफ से घिरे दीवारों पर जहां गोली के निशान हैं, जो अभी तक उस घटना की भयानकता की गवाही दे रहे है,उसकों भी ढकने की कोशिश की गयी।

जलियावांला बाग की शहीदी विरासत की चिराग को कौन बुझने देना चाहेगा। लेकिन कुछ दिनों पहले पंजाब के किसानों और देशभक्तो के खून से लाल इस स्मारक को पिकनिक स्पाट बनाने की साजिश की गयी। बाग में होने वाले सभा,जूलूस और कार्यक्रम पर रोक लगाया गया।  इस विरासत की खूबियों को आधुनिकता की आड़ में मिटाने के प्रयास हुए। जनता के भारी विरोध प्रदर्शन के बाद मामला गरमा गया। बाग से किसी भी तरह की छेड़-छाड़ को जब देशभक्तों ने असंभव कर दिया,तब नौकरशाहों और सरकारी नुमाइंदों ने अपना बोरिया बिस्तर वहां से लेकर भागे। 

पंजाब लोक मोर्चा के अध्यक्ष अमोलक सिंह कहते हैं कि सरकार की मंशा इस स्थान को सैरगाह बनाने की है। शहर के बीचों बीच इस बाग को तो वह अन्य किसी तरह नहीं हथिया सकती है। इसके लिए उसने आधुनिकीकरण का सहारा लिया। लाइट एंड साउंड, मार्बल और स्टेज बना कर वह इस स्थान का व्यापारिक दोहन करना चाहती है। सरकार का जो पूरा एजेंडा था, उसके तहत वह प्रति व्यक्ति टिकट लगाना चाहती थी। बाग में शहीद हुए लोगों से उसे कुछ नहीं लेना देना है। फिरोजपुर से गए देबिंदर सिंह कहते है कि हम यहां पर अपने पूर्वजों के खून से सने स्थान को देखने आये हैं। न कि फिल्मी धुनों पर नकली देशभक्ति के गाने सुनने। इस बाग की ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता तभी तक है। जब यह अपने मूल स्वरुप में रहे। इसके असली रुप को बिगाड़ने का हर तरह से विरोध किया जायेगा। जलियांवाला बाग में देश ही नहीं विदेशों तक के लोग आते है। दक्षिण भारत और पाकिस्तान के लोगों की भी संख्या काफी रहती है।