जलियांवाला बाग हत्याकांड: जहां अंग्रेजों ने बिछा दी थी भारतीयों की लाश


बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो
सिर्फ कुए से ही मिले। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484
शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388
शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों
के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें
से 337 पुरुष,
41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था।



यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड था। यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। देश की आजादी के लिए भारतीयों को लंबा संघर्ष करना पड़ा था। जंग-ए-आजादी का दौर साल दो साल नहीं बल्कि सैकड़ों साल का है। ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में 1857 से 1947 के बीच कई बार क्रांतिकारियों के खून से भारत की धरती लाल हो गई थी। अंग्रेजों के जुल्म और ज्यादती की कई घटनाएं है जिसको सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड इसी श्रेणी में आता है। 

प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय नेताओं और जनता ने खुल कर ब्रिटिशों का साथ दिया था।13 लाख भारतीय सैनिक और सेवक यूरोप, अफ़्रीका और मिडल ईस्ट में ब्रिटिशों की तरफ़ से तैनात किए गए थे जिनमें से 43,000 भारतीय सैनिक युद्ध में शहीद हुए थे। युद्ध समाप्त होने पर भारतीय नेता और जनता ब्रिटिश सरकार से सहयोग और नरमी के रवैये की आशा कर रहे थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने मॉण्टेगू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार लागू किया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पंजाब के क्षेत्र में ब्रिटिशों का विरोध कुछ अधिक बढ़ गया था जिसे भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) लागू कर के कुचल दिया गया था। उसके बाद 1918 में ब्रिटिश जज सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई थी जिसकी ज़िम्मेदारी ये अध्ययन करना था कि भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किन विदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था। 

रौलट एक्ट के लागू होने के बाद ब्रिटिश सरकार आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक, प्रेस पर सेंसरशिप, नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तार कर सकती थी, उन पर विशेष ट्रिब्यूनलों और बंद कमरों में बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी। 

इस काले कानून के विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर में लोग गिरफ्तारियां देने लगे थे। गांधी तब तक दक्षिण अफ़्रीका से भारत आ चुके थे और धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी। उन्होंने रौलट एक्ट का विरोध करने का आह्वान किया जिसे कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नेताओं और जनता को रौलट एक्ट के अंतर्गत गिरफ़्तार कर कड़ी सजाएं देने लगी। आंदोलन के दो नेताओं सत्यपाल और सैफ़ुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के उप कमिश्नर के घर पर इन दोनों नेताओं को रिहा करने की मांग पेश की गई। आंदोलन अप्रैल के पहले सप्ताह में अपने चरम पर पहुंच रहा था। लाहौर और अमृतसर की सड़कें लोगों से भरी रहती थीं। 

इसी कड़ी में 13 अप्रैल को रौलट एक्ट के विरोध में देश भर में शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान किया गया। 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी था। बैसाखी पंजाब और हरियाणा का प्रमुख त्योहार है। अमृतसर में उस दिन एक मेला सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हज़ारों लोग दूर-दूर से आए थे। किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। स्वर्ण मंदिर के पास तीन तरफ से ऊंची इमारतों से घिरे एक बाग जो इतिहास में जलियांवाला बाग के नाम से मशहूर है। बाग में रौलट एक्ट के विरोध में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे थे।  

शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे, तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।

सैनिकों ने बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियां चलानी शुरु कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया।  

बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।