जमीयत उलमा-ए-हिंंद के राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न मुद्दों पर हुआ गहन मंथन, बैठक के बाद संगठन ने सरकार से की कई मांग

इस सम्मेलन में मुख्यतः सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों की अनुचित गिरफ्तारियां, उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में नमाज़ के लिए 5 लोगों की लगी शर्त को खत्म करने, क़ुर्बानी और ईद उल अज़हा की नमाज़ से संबंधित रुकावट और सीबीएसई की ओर से पाठ्यक्रम में कमी करने जैसे देश के कई गंभीर मुद्दो पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया।

नई दिल्ली। जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से बुधवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का प्रमुख सम्मेलन आयोजित किया गया। यह सम्मेलन मौलाना कारी सैयद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी की अध्यक्षता में मदनी लाइब्रेरी, मदनी मंज़िल, देवबंद में आयोजित की गई। सम्मेलन में पहली बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जूम ऐप का इस्तेमाल किया गया। देवबंद के अलावा सम्मेलन में देश के विभिन्न शहरों के इस्लामिक स्कॉलर्स ने हिस्सा लिया। 

इस सम्मेलन में मुख्यतः सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों की अनुचित गिरफ्तारियां, उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में नमाज़ के लिए 5 लोगों की लगी शर्त को खत्म करने, क़ुर्बानी और ईद उल अज़हा की नमाज़ से संबंधित रुकावट और सीबीएसई की ओर से पाठ्यक्रम में कमी करने जैसे देश के कई गंभीर मुद्दो पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। 

इस आम कार्यकारिणी सम्मेलन में जमीयत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने सीएए प्रदर्शनकारियों को प्रताड़ित करने और विभिन्न बहानों (अनुचित प्रकरणों) से उनकी गिरफ्तारियों पर अपने विचार प्रकट किए और जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से इस संबंध में की जा रही कानूनी व राजनीतिक एक्टिविटी पर प्रकाश डाला। 

इस सम्मेलन में पदाधिकारियों ने सरकार से दो टूक शब्दों में मांग की कि इस तरह की अनुचित गिरफ्तारियों पर रोक लगाई जाए और गिरफ्तार लोगों पर से लगाई गई धाराओं को हटाकर तुरंत उनकी रिहाई का फैसला किया जाए। साथ ही पुलिस हिंसा में जिन लोगों के जान माल का नुकसान हुआ है। उनको सरकार की तरफ से उचित मुआवज़ा अदा किया जाए। 

इस सम्मेलन में पदाधिकारियों ने सरकार से दो टूक शब्दों में मांग की कि इस तरह की अनुचित गिरफ्तारियों पर रोक लगाई जाए और गिरफ्तार लोगों पर से लगाई गई धाराओं को हटाकर तुरंत उनकी रिहाई का फैसला किया जाए। साथ ही पुलिस हिंसा में जिन लोगों के जान माल का नुकसान हुआ है। उनको सरकार की तरफ से उचित मुआवज़ा अदा किया जाए।

पदाधिकारियों ने कहा कि यदि किसी कानून देश की जनता अपने लिए अनुचित मानती है तो क़ानून के दायरे में रहते हुए देश के विभिन्न भागों में प्रदर्शन किया और यह उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। जमीयत उलमा ए हिंद अपनी परंपरा के अनुसार इस मामले में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सम्मान करती है और वह हर तरह की हिंसा के विरुद्घ है चाहे यह हिंसा प्रदर्शनकारियों की तरफ से हो या पुलिस की तरफ से। 

सरकार की तरफ से शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को रोकने की जो कोशिश हुई और फिर प्रदर्शन में भाग लेने वालों के साथ जो नकारात्मक व्यवहार अपनाते हुए उन पर देशद्रोह जैसे सख़्त कानूनों की धाराएं लगाकर, विभिन्न बहानों से गिरफ्तारियां की जा रही हैं। वह अत्यधिक निंदनीय है। 

राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषकर ईद-उल-अज़हा की नमाज़ और कुर्बानियों को लेकर सामने आने वाली समस्याओं और परेशानियों पर विचार विमर्श हुआ। और इस संबंध में पारित प्रस्ताव में सरकार से मांग की गई कि मुसलमानों की प्रमुख इबादत “क़ुर्बानी” और ईद उल अज़हा की नमाज़ के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध की जाएं और बाधाओं को दूर किया जाए। 

मुस्लिम विद्धानों ने कहा कि जहां तक क़ुर्बानी का संबंध है तो वह हर साहिबे हैसियत मुसलमान पर लाज़िम है और वक्त के अंदर उसका कोई विकल्प नहीं है। इसलिए आवश्यक है कि क़ुर्बानी के जानवर की ख़रीद फरोख्त और स्थानांतरण के कार्यों को सुरक्षित बनाया जाए। और क़ुर्बानी के कार्य में भी कोई रुकावट खड़ी न की जाए। साथ ही यह सम्मेलन समस्त मुसलमानों से यह अपील भी करता है कि जिन पर क़ुर्बानी वाजिब हो वह क़ुर्बानी अवश्य करें। 

बैठक में शामिल स्कॉलर्स ने मुसलमानों से कुर्बानी के बाद स्वच्छता का पूरा ध्यान रखने की अपील की। साथ ही सार्वजनिक स्थनों पर मांस, हड्डी, अवशेष इत्यादि डालने से पूरी तरह बचाव करने, जानवरों की खरीद-फरोख्त और स्थानांतरण में कानून का पूरा पूरा पालन करने की अपील की गई। इसी के साथ बैठक में सरकार से ईदगाहों और आम मस्जिदों में आवश्यक सावधानियों के साथ ईद उल अज़हा  की नमाज़ अदा करने की अनुमति देने की भी मांग की गई। वहीं संगठन ने नमाज़ की अनुमति मिलने की स्थिति में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग इत्यादि समस्त शर्तों का पूरा पालन करने की अपील की। 

कार्यकारिणी की इस बैठक में इस संबंध में पारित अपने प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ़ अपने दृष्टिकोण को प्रकट करते हुए कहा कि जमीयत उलमा ए हिंद, नागरिकता संशोधन कानून, को संविधान की धारा 14 और 21 के विरुद्घ समझते हुए इसकी निंदा करती है। इस एक्ट में ग़ैरक़ानूनी शरणार्थियों की परिभाषा में धार्मिक आधार पर भेदभाव किया गया है। जिससे देश के शांति प्रिय नागरिकों या विशेषकर मुसलमानों में चिंता का होना स्वभाविक था।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में 5 लोगों की शर्त लगाने का मामला भी उठाया गया और इस पर मुसलमानों की तरफ से चिंता प्रकट की गई। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि सावधानी और सतर्कता के साथ मस्जिदों में नमाज़ों की सार्वजनिक अनुमति दी जाए। ताकि लोग संतुष्टि के साथ मस्जिदों में जमात के साथ पंच वक्ता नमाज़ पढ़ सकें।

राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने प्रस्ताव में कहा कि कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए देश में लागू लॉकडाउन को क्रमशः खोला जाने लगा है और धीरे-धीरे  जीवनचर्या नियमित  और बहाल हो रही है। बाज़ार और कारखाने सावधानियां बरतते हुए खोल दिए गए हैं। यहां तक कि बहुत से राज्यों में सामाजिक फासलों (सोशल डिस्टेंसिंग) को बनाए रखते हुए संख्या का निर्धारण किए बिना मस्जिदें और इबादत खाने खोल दिए गए हैं। लेकिन कुछ राज्यों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में सिर्फ 5 लोगों की शर्त लगा कर व्यवहारिक प्रतिबंधों  को बनाए रखा गया है। जिसके आधार पर राज्य में मस्जिदें आम नमाज़ियों के लिए अभी तक बंद हैं। जिसके कारण मुसलमानों में अत्यधिक चिंता व्याप्त है।

बैठक में सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) के पाठ्यक्रम से राष्ट्रीयता, सेकुलरिज्म (धर्म निरपेक्षता),  सिटीजनशिप (नागरिकता)  फेडरेलिज्म जैसे प्रमुख विषयों को पाठ्यक्रम से बाहर करने पर भी घोर चिंता प्रकट की। स्पष्ट रहे कि सीबीएसई को मानव  संसाधन विकास मंत्रालय ने कोरोना वायरस के चलते होने वाली शैक्षणिक हानि की भरपाई के लिए पाठ्यक्रम में 30% की कमी करने की सलाह दी थी। ऐसे में उचित तो यह था कि पाठ्यक्रम से अनावश्यक या कम आवश्यक लेखों की कमी की जाती, लेकिन सीबीएसई ने एक विशेष विचारधारा का प्रदर्शन करते हुए सेकुलरिज्म, नेशनलिज्म, फेडरेलिज्म और सिटीजनशिप जैसे प्रमुख विषयों का पाठ्यक्रम से सफाया कर दिया है। 

जबकि यह विषय- लेख हमारे संविधान की आत्मा और देश की संघीय और सेकुलरिज्म ढांचे की सुरक्षा के प्रमाण हैं। जब विद्यार्थी इन विषयों को नहीं पढ़ेंगे तो संविधान की आत्मा से संबंध रखने वाले उन मूलभूत विचारों से वह किस तरह अवगत हो सकेंगे-? और देश के एक अच्छे नागरिक की हैसियत से अपनी भूमिका कैसे अदा कर सकेंगे-? इसलिए जमीयत उलमा ए हिंद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी यह मांग करती है कि इस फ़ैसले पर पुनर्विचार किया जाए। और इन अति आवश्यक विषयों और लेखों को पूर्व की तरह ही पाठ्यक्रम में रखा जाए। 

राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में उत्तर प्रदेश की मस्जिदों में 5 लोगों की शर्त लगाने का मामला भी उठाया गया और इस पर मुसलमानों की तरफ से चिंता प्रकट की गई। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि सावधानी और सतर्कता के साथ मस्जिदों में नमाज़ों की सार्वजनिक अनुमति दी जाए। ताकि लोग संतुष्टि के साथ मस्जिदों में जमात के साथ पंच वक्ता नमाज़ पढ़ सकें।

इन प्रस्तावों के अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने जमीअत उलमा-ए-हिंद के जारी सदस्यता अभियान की अवधि में एक बार फिर से बढ़ोतरी करते हुए घोषणा की है कि 31 दिसंबर 2020 तक सदस्यता जारी रहेगी। इसके बाद 1 जनवरी से- 25 जनवरी 2021 स्थानीय, ज़िला स्तरीय यूनिटों का चुनाव होगा। और 26 जनवरी से 15 फरवरी – तक राज्य की यूनिटों का चुनाव होगा। राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने जमीयत उलमा ए हिंद के दो उपाध्यक्ष हज़रत मौलाना मुफ़्ती खैरुल इस्लाम साहब और हज़रत मौलाना अमानुल्लाह साहब सहित दूसरी प्रमुख शख्सियतों की मौत पर गहरा दुःख प्रकट किया गया और उनके परिवारजनों से सहानुभूति प्रकट की ।

कार्यकारिणी की इस बैठक में इस संबंध में पारित अपने प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ़ अपने दृष्टिकोण को प्रकट करते हुए कहा कि जमीयत उलमा ए हिंद, नागरिकता संशोधन कानून, को संविधान की धारा 14 और 21 के विरुद्घ समझते हुए इसकी निंदा करती है। इस एक्ट में ग़ैरक़ानूनी शरणार्थियों की परिभाषा में धार्मिक आधार पर भेदभाव किया गया है। जिससे देश के शांति प्रिय नागरिकों या विशेषकर मुसलमानों में चिंता का होना स्वभाविक था। 

कार्यकारिणी के इस सम्मेलन में जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना  क़ारी सय्यद मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी और महासचिव मौलाना महमूद मदनी के अलावा, मुफ़्ती सलमान मंसूरपुरी, मौलाना क़ारी शौकत अली वैट, मुफ़्ती मोहम्मद राशिद आज़मी, दारुल उलूम देवबंद, मौलाना सलमान बिजनौरी, दारुल उलूम देवबंद, मौलाना मुईज़ुददीन अहमद, मौलाना अब्दुल्ला मारूफ़ी दारुल उलूम देवबंद, मौलाना अली हसन मज़ाहिरी, मौलाना आक़िल गढ़ी दौलत और मौलाना हकीमुददीन क़ासमी ने भाग लिया।

 सम्मेलन में ज़ूम के माध्यम से मुफ़्ती अबुल कासिम नोमानी, प्रबंध कर्ता दारुल उलूम देवबंद, हाफ़िज नदीम सिद्दीकी महाराष्ट्र, मौलाना सद्दीकुल्लाह चौधरी, बंगाल, हाफ़िज पीर शब्बीर अहमद, हैदराबाद, मौलाना मुफ़्ती इफ्तिखार अहमद कर्नाटक, मौलाना रफीक़ मज़ाहिरी गुजरात, मौलाना अब्दुल क़ादिर आसाम, मौलाना शेख मोहम्मद याहया आसाम, क़ारी मोहम्मद अमीन राजस्थान, मौलाना मोहम्मद जाबिर क़ासमी उड़ीसा, मुफ़्ती हबीबुर्रहमान इलाहाबाद, मौलाना नियाज़ अहमद फारूकी दिल्ली, शकील अहमद सैयद दिल्ली, हाजी मोहम्मद हारून भोपाल, मुफ़्ती मोहम्मद अफ्फान मंसूरपुरी अमरोहा, मुफ़्ती जावेद इकबाल किशनगंजी बिहार, मुफ़्ती अहमद देवला गुजरात ने भाग लिया।

First Published on: July 15, 2020 8:35 PM
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