लोकसभा और राज्यसभा टेलीविज़न का होगा विलय, बनेगा संसद टेलीविज़न नेटवर्क


लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही चैनल में नई नियुक्तियों का सिलसिला भी पूरी तरह से रुका हुआ है। लोकसभा टेलीविज़न के सभी मौजूदा कर्मचारी और अधिकारी 31 जुलाई तक काम कर सकेंगे। इसके बाद की कार्रवाई नई व्यवस्था के तहत ही की जा सकेगी। इसी तरह राज्य सभा टेलीविज़न में भी तदर्थ कर्मचारियों से काम पर न आने को कह दिया गया है।


ज्ञानेन्द्र पाण्डेय ज्ञानेन्द्र पाण्डेय
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नई दिल्ली। निकट भविष्य में भारतीय संसद के दो टीवी चैनल लोकसभा और राज्य सभा टेलीविज़न अलग-अलग रह कर काम नहीं करेंगे। दोनों का विलय कर संसद टेलीविज़न नेटवर्क का गठन किया जाएगा। लोकसभा और राज्य सभा टेलीविज़न को विलय के बाद इस एक नाम से जाना जाएगा। दोनों चैनल संसद के अपने- अपने सदनों की कार्यवाही का सीधा प्रसारण तो अपने नाम के साथ करते रहेंगे लेकिन संसद सत्र के अलावा शेष प्रोग्रामिंग साझा ही होगी। संसद टेलीविज़न नेटवर्क के तहत दो सम्पादकीय विभाग होंगे एक हिंदी का और दूसरा अंग्रेजी का। ये दोनों सम्पादकीय अनुभाग चैनल के एक प्रधान सम्पादक के नेतृत्व में काम करेंगे। मौजूदा व्यवस्था की तरह नई व्यवस्था में लोकसभा और राज्य सभा टेलीविज़न के दो अलग-अलग मुख्य कार्यकारी अधिकारी न होकर संसद टेलीविज़न नेटवर्क (एसटीएन) का एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ होगा। 

इस सम्बन्ध में प्रक्रियात्मक शुरुआत हो चुकी है और उम्मीद की जा रही है कि संसद के मानसून सत्र से पहले या उसके तुरंत बाद नई व्यवस्था के तहत काम शुरू हो सकता है। आम तौर पर जुलाई के दूसरे सप्ताह के बाद से संसद के मानसून सत्र की शुरुआत होती है और एक माह तक चलने वाले इस सत्र का समापन अगस्त के तीसरे सप्ताह में होता है। शीतकालीन सत्र का आगाज आम तौर पर नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह से होता है और यह यह सत्र भी दिसम्बर के तीसरे सप्ताह तक चलता है। संसद सत्र के बीच में तो दोनों टीवी चैनल के विलय की प्रक्रिया किसी भी तरह संभव नहीं है लेकिन इसके आगे पीछे यह काम हो सकता है, इसीलिए अटकले लगाईं जा रहीं हैं कि 15 जुलाई से पहले या फिर सितम्बर-अक्टूबर में विलय की यह प्रक्रिया पूरी होने की घोषणा हो सकती है।

संसदीय सचिवालयों के जानकार सूत्रों से प्राप्त इस आशय की जानकारी के मुताबिक इस सम्बन्ध में प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ए. सूर्यप्रकाश की अध्यक्षता में कुछ महीने पहले एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने दोनों सदनों के चैनल के विलय के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। विलय के समबन्ध में सूर्य प्रकाश समिति की अनुमति मिलने के बाद विलय की इस योजना को अमलीजामा पहनाने की गरज से तीन उप समितियों का गठन भी किया गया है। इन समितियों में एक समिति प्रस्तावित संसद टेलीविज़न नेटवर्क के आर्थिक मामलों पर विचार करेगी तो एक समिति दोनों चैनलों के एकीकरण की प्रक्रिया में मानव संसाधन की जरूरत और उपलब्धता के मसले पर विचार करेगी। इसके साथ ही तीसरी समिति चैनल के तकनीकी मामलों के साथ ही चैनल के सामान्य प्रशासन पर सरकार को अपनी सलाह देगी। इन तीनों समितियों से मिले सुझावों के आधार पर ही नए चैनल का संस्थागत स्वरूप तैयार किया जाएगा। सरकार को समितियों के सुझावों का इन्तजार है। 

इस बीच लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही चैनल में नई नियुक्तियों का सिलसिला भी पूरी तरह से रुका हुआ है। लोकसभा टेलीविज़न के सभी मौजूदा कर्मचारी और अधिकारी 31 जुलाई तक काम कर सकेंगे। इसके बाद की कार्यवाही नई व्यवस्था के तहत ही की जा सकेगी। इसी तरह राज्य सभा टेलीविज़न में भी तदर्थ कर्मचारियों से काम पर न आने को कह दिया गया है। ऐसे करीब 50 लोग वहां कार्यरत हैं इसके अलावा करीब डेढ़ सौ अन्य कर्मचारियों के भविष्य का फैसला राज्य सभा टेलीविज़न बाद में करेगा। दोनों चैनल में मिला कर करीब ढाई सौ कर्मचारी और अधिकारी कार्यरत हैं जबकि नए प्रस्तावित व्यवस्था में एंकर, कैमरामेन, प्रोड्यूसर, तकनीकी स्टाफ, विडियो एडिटर, ग्राफिक स्टाफ, इनपुट- आउटपुट एडिटर, ऑडियो असिस्टेंट और अन्य स्टाफ को मिला कर कुल दौ सौ लोगों की सेवाएं लेने का प्रावधान रखा गया है। इस हालत में दोनों चैनल्स के कम से कम 50 लोगों पर नौकरी का खतरा तो साफ़ दिखाई दे रहा है।  

जानकार सूत्रों का यह भी कहना है कि संसद टेलीविज़न नेटवर्क बन जाने पर संसद के अपने टेलीविज़न नेटवर्क की मूल धारणा को लागू करने में मदद मिलगी। प्रसंगवश यह तथ्य गौरतलब है कि 2006 में जब देश के पहले चैनल लोकसभा टेलीविज़न की शुरुआत हुई थी तब इसे एसटीएन के नाम से ही शुरू करने की योजना बनी थी लेकिन किसी वजह से यह योजना अमल में नहीं लाई जा सकी। इसकी एक वजह तो यह भी बताई गई कि साल 2005 के मध्य में जब तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के मीडिया एडवाइजर भास्कर घोष की पहल पर इस आशय का प्रस्ताव लोकसभा सचिवालय द्वारा तैयार किया गया था उस पर राज्य सभा को प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण संबंधी कई आपात्तियां थीं जिसके चलते संसद टेलीविज़न नेटवर्क का काम शुरू नहीं हो सका था। 

जबकि इस नाम से चैनल शुरू करने की तैयारियों का सिलसिला इस सीमा तक आगे बढ़ चुका था कि चैनल के कैसेट्स तक में एसटीएन की मुहर लग गई थी। राज्यसभा सचिवालय की आपात्तियों के चलते तब एसटीएन के स्थान पर लोकसभा टेलीविज़न की शुरुआत ही हो सकी जिसका विधिवत पहला प्रसारण 24 जुलाई 2006 से शुरू हुआ था। राज्यसभा चैनल कई साल बाद तब शुरू हुआ जब भाजपा के भैरों सिंह शेखावत के स्थान पर कांग्रेस के हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति बने थे। भारत का उपराष्ट्रपति ही राज्य सभा का सभापति भी होता है इसलिए उपराष्ट्रपति का राज्यसभा के प्रशासनिक मामलों में दखल होना बहुत स्वाभाविक भी है। जानकारी के मुताबिक़ नई व्यवस्था में वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में राज्य सभा सचिवालय की भूमिका महत्वपूर्ण होगी और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी राज्यसभा सचिवालय की पसंद का ही होगा।