रघु ठाकुर
यह संयोग है कि आज समाजवादी विचारक,नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. मधु लिमये का जन्म दिवस है और आज ही मजदूर दिवस भी है। मधु लिमये का सारा जीवन संघर्ष की कहानी है। युवा काल में प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध किया व जेल गये। फिर आजादी के आंदोलन में गिरफ्तार हुए व सजा काटी। फिर गोवा मुक्ति संग्राम में हिस्सेदारी की, गिरफ्तार हुए और पुर्तगाली पुलिस की लाठियों से गंभीर रूप से घायल हुए। आजादी के बाद वे समाजवादी आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता रहे। उन्होंने डॉक्टर लोहिया के साथ काम किया और डॉ. राममनोहर लोहिया को ही अपना नेता आदर्श माना। मधु जी एक नैतिक चरित्र के व्यक्ति थे।
आपातकाल में वे छत्तीसगढ़ से गिरफ्तार हुए थे। उन्हें कुछ दिन रायपुर जेल में रहने के बाद नरसिंहगढ़ जेल भेज दिया गया था। 1976 में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा संसद की अवधि 5 वर्ष से आगे बढ़ाने के विरोध में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया था तथा अपनी पत्नी चंपा लिमये को संदेश दिया था कि जिस दिन उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है उसी दिन उनके दिल्ली के सांसद निवास से सामान निकाल कर उसे खाली कर दें। ये थी उनके सार्वजनिक जीवन की नैतिकता। अनेक बार सांसद रहे परंतु इतनी बेमिसाल ईमानदारी थी कि उनके पास ना कोई गाड़ी थी ना दिल्ली में कोई मकान था।
1980 में लोकसभा का चुनाव हार गए परंतु उन्होंने सदैव लोहिया की बात को ध्यान में रखा और राज्यसभा में जाने से इंकार कर दिया। चौधरी चरण सिंह ने उनसे अनेक बार आग्रह किया था कि वे राज्यसभा में जाएं परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। अनेक मजदूर आंदोलनों में उन्होंने हिस्सेदारी की। उन्हें दुनिया की विदेश नीति का गहरा अध्ययन था। संसदीय ज्ञान में वे श्रेष्ठ थे। उन्होंने सांसद होने की पेंशन नहीं ली। मुझे आज उनकी स्मृति में पटना में आयोजित व्याख्यानमाला में “लोकतंत्र और मधु लिमये” विषय पर बोलना था परंतु लॉकडाउन और गाड़ियों के रद्द होने की वजह से पटना पहुंचना संभव नहीं हुआ।
आज मजदूर दिवस है परंतु यह ऐसा दौर है कि हम मजदूर दिवस तो मनाते हैं परंतु सर्वाधिक पीड़ित मजदूर है। लॉकडाउन के नाम से लगे बंधनों से देश में विभिन्न राज्यों के लगभग 53 लाख मजदूर लगभग 40 दिनों से विभिन्न महानगरों के घरों में कैद हैं। न उनके पास पैसा है न मकान मालिक को देने को किराया है और न राशन। एक प्रकार से भिखारी से भी बदतर जैसी स्थिति है। भारत सरकार ने आर्थिक संकट के नाम पर दो करोड़ कर्मचारियों, पेंशनधारियों का डेढ़ वर्ष के लिए महंगाई भत्ते का भुगतान रोक दिया है। देश के खेतिहर मजदूर भी परेशान हैं। किसान अपनी फसलों को बेचने नहीं जा पा रहे हैं।
एक ऐसा विचित्र संयोग है कि मजदूर दिवस की पूर्व बेला में मजदूरों और कर्मचारियों के आर्थिक और संवैधानिक अधिकार छीन लिये गये हैं या कम किए जा रहे हैं। कोरोना की वजह से पहले से सुस्त पड़ा मजदूर आंदोलन अब बिल्कुल मृतप्राय हो चुका है। शिकागो की शहादत और मजदूरों के अधिकार भुलाए जा रहे हैं। मजदूर दिवस पर दुनिया के मजदूरों को विचार करना चाहिए क्या ऐसे हालत में दुनिया में मजदूर बचेंगे। अगर मजदूर नहीं रहेगा तो कैसा मजदूर आंदोलन और मजदूर दिवस का क्या औचित्य रहेगा ? विश्व बैंक ने जो दुनिया के लिए गरीबी की सीमा रेखा तय की है उसके आधार पर 10 करोड़ 40 लाख नये गरीब जुड़ जायेंगे। देश में लगभग 90 करोड़ लोगों को गरीबी भुखमरी का सामना करना होगा। उद्योग धंधे लंबे समय तक शुरू नहीं हो सकेंगे तथा ग्रामीण मजदूर जल्दी वापिस शहरों की ओर नहीं लौटेगा।
अमरीका वीजा नीति में बदल कर रहा है तथा इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारतीयों पर पड़ेगा। कई लाख युवाओं के रोजगार समाप्त हो जाएंगे। बेरोजगारी की दर जो अभी लगभग 8 प्रतिशत थी अब बढ़कर 23 से 30 प्रतिशत तक हो जायेगी। गांव में जो मजदूर लाचारी में जान बचाने को लौट रहे हैं उनके घर तो हैं पर वहां कोई रोजगार नहीं है। परिवारों में विवाद खड़े होंगे। सोशल डिस्टेसिंग ने समाज को परस्पर भयभीत व ऐकान्तिक बना दिया है। देश और दुनियाभर में ऐसी ही स्थिति बनने वाली है। दुनिया भयभीत होकर वैश्वीकरण से वापस देशीकरण और देश क्रमशः सूबाईकरण तथा स्थानीय करण में पहुंच जायेंगे। स्वचालित यंत्र बड़ी तकनीक और रोबोट कल्चर व एआई का दौर आयेगा। यह अपने आप मे मजदूर मुक्त मशीन युक्त दुनिया बनेगी। अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लगभग 30 करोड़ नौकरियां संकट ग्रस्त होंगी। मजदूरों की बकाया मजदूरी तक मिलना मुश्किल होगा।
(रघु ठाकुर समाजवादी नेता हैं।)