
संजीव पांडेय
यह एक सच्चाई है। इस सच्चाई से वर्तमान सरकार इंकार नही कर सकती है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में शुरू किए गए मनरेगा योजना को कांग्रेस की विफलताओं का स्मारक बताया था। प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी मनरेगा को लेकर लगातार अपनी आशंका व्यक्त कर रहे थे। पिछले साल जुलाई में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि सरकार मनरेगा को ज्यादा दिन तक चलाने के पक्ष में नहीं है। उनका तर्क है कि मनरेगा ग्रामीण गरीबों को ध्यान में रख कर बनायी गई है, लेकिन मोदी सरकार का बड़ा लक्ष्य तो सबकी गरीबी मिटाना है। हालांकि मुल्क में गरीबी खत्म नहीं हुई। अर्थव्यवस्था पहले से ही लड़खड़ा रही थी। इधर कोरोना वायरस ने करोड़ों लोगों के रोजगार छीन लिया है। करोड़ों लोग फिर से गरीबी रेखा के नीचे जाने वाले है। वैसे में इस सरकार को अब सहारा मनमोहन सिंह सरकार दवारा तैयार वैक्सीन से मिला है। मनरेगा नामक वैक्सीन को ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी से लड़ने के लिए यूपीए सरकार ने तैयार किया था। कुछ समय पहले तक इस औषधि को गरीबी के इलाज में नरेंद्र मोदी सरकार कारगर नहीं मान रही थी। अब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणाओं में मनरेगा को फिर से महत्व मिला है। यह गरीबी औऱ बेरोजगारी से निपटने के लिए सबसे कारगर औषधि करार दिया गया है। अब सरकार कोविड-19 से बढे देशव्यापी बेरोजगारी को मनरेगा के सहारे निपटने की योजना बना रही है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद बताया कि कोविड 19 के तहत देश के 1.87 लाख ग्राम पंचायतों में 2.33 करोड़ लोगों को काम उपलब्ध करवाया गया है। वहीं इस साल पिछले साल के मुकाबले मनरेगा में पंजीकरण ज्यादा हुआ है। मनरेगा में पिछले साल के मुकाबले 40 से 50 प्रतिशत ज्यादा पंजीकरण मई महीनें में हुआ है। यही नहीं वर्तमान वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत 14.62 करोड़ श्रम दिवस रोजगार का सृजन हो चुका है। जबकि इस योजना पर अभी तक 10 हजार करोड रुपये खर्च भी हो चुके है। दरअसल राहत पैकेज की जादूगरी में सबसे महत्वपूर्ण जादू मरनेगा ही है। जो पूरे देश में इस समय मांग बढ़ाने में मदद करेगी। दरअसल राहत पैकेज में ढेर सारे एलान है। लेकिन उन तमाम एलान से देश में आया संकट खत्म नहीं होगा। क्योंकि जमीन पर स्थिति काफी खराब है। सरकार ने राहत पैकेज में भी कई जरूरी चीजों की अनदेखी की है। हर वर्ग सरकार से कुछ न कुछ चाहता था। सरकार हर वर्ग को देने की स्थिति में नहीं है। वहीं 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज में आपूर्ति का ख्याल रखा गया है। मांग की तरफ सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया। जबकि अर्थशास्त्र का नियम है कि मांग बढ़ेगी तभी आपूर्ति भी बढेगी। अगर उत्पादों की मांग ही नहीं बढ़ेगी तो आपूर्ति बढ़ाने का क्या लाभ होगा ? अगर मांग ही नहीं होगी तो उद्योग उत्पादन किस लिए करेंगे?
बाजार में मांग तभी बढ़ेगी जब लोगों के जेब में पैसे होंगे। पैसे के लिए रोजगार जरूरी है। कोविड-19 की सबसे बड़ी चोट रोजगार पर पड़ी है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए है। इन परिस्थितियों में मांग बढ़ाने के लिए लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना जरूरी है। लॉकडाउन के कारण करोड़ों लोगों का रोजगार खत्म हो चुका है, लाखों मजदूर सड़कों पर है, गांवों की तरफ भाग रहे है। आखिर इन बेरोजगार हुए मजदूरों को रोजगार कहां मिलेगा? एक दूसरा विकल्प बेरोजगारी भत्ता है। पश्चिमी देशों में भी करोड़ों लोग कोविड-19 ने बेरोजगार किए है। पश्चिमी देशों ने इसका रास्ता निकाला। जब तक रोजगार उपलब्ध नहीं होता तब तक बेरोजगारों को भत्ता देने का फैसला लिया। तमाम पश्चिमी देशों ने बेरोजगारी भत्ता के लिए अऱबों डालर खजाने से निकाल दिया। लेकिन भारत में तो खजाना के हालत पहले से ही खास्ता है। बेरोजगारी भत्ता के रुप में एक बेरोजगार को कम से 3 से 4 हजार रुपये मासिक चाहिए होगा। इतना पैसा देने की स्थिति में सरकार नहीं है। सरकार का खुद का बजट खराब हुआ पड़ा है। क्योंकि रेवेन्यू कलेक्शन के फ्रंट पर सरकार की परेशानी बढ़ी है। कोविड-19 के दौरान ही अप्रैल महीनें में रेवेन्यू कलेक्शन को लेकर सरकार की परेशानी बढ़ गई।
इन परिस्थितियों में सरकार के पास एक ही रास्ता बचता है। ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के तहत ज्यादा से ज्यादा बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाया जाए। अच्छा हुआ सरकार ने इस तरफ सोचा। सरकार बेशक मनरेगा को लेकर आशंका व्यक्त कर रही थी। लेकिन मनरेगा का महत्व सरकार को पता था। सरकार ने तभी तुरंत योजना के लिए 40 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि देने की घोषणा की है। पिछले वित्त वर्ष में नरेंद्र सिंह तोमर ने मनरेगा की आलोचना की थी। जबकि उसी वित्त वर्ष में मरनेगा ने देश के ग्रामीण इलाकों में लोगों को भारी राहत दी थी। दरसअल कोविड-19 के संकट से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर में जा चुकी थी। मांग घट रही थी। औधोगिक उत्पादनों में कमी आ रही थी। देश में बेरोजगारी भी बढ़ रही थी। क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी ने भी देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया था। नोटबंदी और जीएसटी ने उधोग जगत से लेकर सेवा क्षेत्र तक को भारी नुकसान पहुंचाया।
2019-20 के आंक़ड़ों से मनरेगा का महत्व समझा जा सकता है। मनरेगा के आंकड़ों का अध्ययन करने से पता चलता है कि देश में पिछले साल ही रोजगार के अवसर घट रहे थे। शहरी इलाकों में रोजगार को लेकर परेशानी बढ़ी थी। लोग गांवों में रोजगार ढूंढ़ रहे थे। वर्ष 2019-20 में मनरेगा ने सरकार को रोजगार के मोर्चे पर राहत उपलब्ध करवायी। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 में मनरेगा के तहत 5.48 करोड़ परिवारों को रोजगार उपलब्ध करवाया गया। अगर प्रति व्यक्ति के मानदंड पर देखे तो 2019-20 में 7.89 करोड़ लोगों ने मरनेगा में काम किया। वित वर्ष 2012-13 के बाद 2019-20 में इतनी संख्या मे लोगों ने मरनेगा के तहत रोजगार पाया। इससे पहले वित्त वर्ष 2012-13 में 7.97 करोड़ लोगों को काम मिला था। 2014 में सत्ता में आयी एनडीए की सरकार ने वैसे तो तमाम कोशिश कर देश में रोजगार उपलब्ध करवाने का दावा किया। लेकिन जब मुसीबत आयी है तो रोजगार के लिए फिर मनरेगा की तरफ सरकार ने रूख किया है। इससे यह स्पष्ट है कि यूपीए की रोजगार गारंटी योजना भारतीय परिवेश मे एक बेहतर योजना साबित हुई है। इसका लाभ भारतीय उधोग जगत को भी हुआ। क्योंकि मनरेगा के रोजगार ने देश में मांग को बढ़ाया। इसका लाभ देश के उद्योग जगत को हुआ।
मनरेगा की दिशा में और कदम उठाए जाने की जरूरत है। वित्त मंत्री दवारा दिए गए आर्थिक पैकेज से बहुत कुछ भला नहीं होगा। सच्चाई तो यही है कि वित्त मंत्री ने जो घोषणा की है उसका लाभ लंबे समय में ही मिलेगा। जबकि कोविड-19 के प्रभावों से परेशान लोगों को तत्काल राहत चाहिए। लोगों को तत्काल रोजगार चाहिए, जेब में पैसे चाहिए। जबकि सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज में कृषि से लेकर उद्योग जगत में ढांचागत सुधार की घोषणाएं की है। इस सुधार से लंबे समय के बाद देश के उद्योगपतियों को तो लाभ मिलेगा, लेकिन आम जन को शायद ही बहुत लाभ मिले। वहीं इन घोषणाओं से तुरंत रोजगार पैदा नहीं होगा। तुरंत लोगों के जेब में पैसे नहीं आएंगे।
आशंका है कि कोविड-19 के कारण शहरी क्षेत्र से हुए पलायन से ग्रामीण इलाकों में 7 से 8 करोड़ लोगों की संख्या बढेगी। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ेगा। इससे निपटने के लिए सरकार को मनरेगा योजना में इस वित्त वर्ष में वर्तमान घोषणाओं के अलावा कम से कम 1 लाख करोड़ रुपये और खर्च करना होगा। मनरेगा की दिहाड़ी बढ़ानी होगी। अभी मनरेगा का न्यूनतम पारिश्रमिक 202 रुपये प्रतिदिन तय है। इसे बढ़ाकर 300 रुपये करने की जरूरत है। इससे ग्रामीण इलाकों में लोगों की परेशानी कम होगी। इससे ग्रामीण इलाकों के विकास में भी मदद मिलेगी। अगर गांवों में मांग बढ़ गई तो निश्चित तौर पर उधोग जगत की आपूर्ति और उत्पादन में इजाफा शुरू हो जाएगा।
(संजीव पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं और चंडीगढ़ में रहते हैं।)